प्रवासी भारतीयों का भारत की समृद्धि में योगदान, गौरीशंकर राजहंस का ब्लॉग

By गौरीशंकर राजहंस | Published: January 13, 2021 12:27 PM2021-01-13T12:27:54+5:302021-01-13T12:32:01+5:30

प्रवासी भारतीय दिवस भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 9 जनवरी को मनाया जाता है. इसी दिन महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश वापस आये थे. इस दिवस को मनाने की शुरुआत सन 2003 से हुई थी.

Pravasi Bharatiya Divas 9 January Government of India Overseas Indians prosperity Gaurishankar Rajhans blog | प्रवासी भारतीयों का भारत की समृद्धि में योगदान, गौरीशंकर राजहंस का ब्लॉग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार के प्रवासी भारतीय सम्मेलन का उद्घाटन किया. (file photo)

Highlightsपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने इस तरह के सम्मेलन के लिए जी-जान से प्रयास किया था.हर दो वर्ष में 9 जनवरी को प्रवासी भारतीयों का सम्मेलन आयोजित किया जाता है.1915 में 9 जनवरी को ही महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे.

हाल ही में प्रवासी भारतीयों का सम्मेलन हुआ जिसमें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने भी भाग लिया. प्रवासी भारतीयों का सम्मेलन कई वर्ष पहले शुरू हुआ था.

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने इस तरह के सम्मेलन के लिए जी-जान से प्रयास किया था. हर दो वर्ष में प्रवासी भारतीयों का सम्मेलन या तो भारत में होता है या उन देशों में जहां भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में जाकर बस गए हैं. हर दो वर्ष में 9 जनवरी को प्रवासी भारतीयों का सम्मेलन आयोजित किया जाता है.

इस सम्मेलन में भारत के विदेश मंत्रलय का योगदान सर्वोपरि रहता है. प्रवासी भारतीय सम्मेलन के लिए 9 जनवरी का दिन इसलिए चुना गया था क्योंकि 1915 में 9 जनवरी को ही महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे.

भारतीय मूल के लोग वर्षों से विदेशों में जाकर रह रहे हैं. अंग्रेजों के समय में बिहार और उत्तर प्रदेश से सैकड़ों लोग समुद्री जहाजों से उन देशों में गए जहां गन्ने की खेती होती थी. अंग्रेज इन्हें फुसलाकर भेड़-बकरियों की तरह कलकत्ता बंदरगाह से पुराने समुद्री जहाजों में चढ़ाकर इन देशों में यह कहकर ले गए कि इन देशों में उन्हें सोने की खानों में काम मिलेगा और वहां वे भरपूूर सोना बटोर कर भारत लौट सकते हैं. परंतु वहां जाकर उन्होंने देखा कि अंग्रेजों ने उनके साथ धोखा किया. इन्हें भेड़-बकरियों की तरह बंधक बना कर रखा और उनसे काम लिया.

समय बदलता गया और ये लोग आजाद हुए. इनमें से कई लोग इन देशों के प्रधानमंत्री भी हुए. इन देशों की तरह सूरीनाम में भी भारतीय मजदूर गए और वहीं पर बस गए. हाल ही में भारत में जो प्रवासी दिवस मनाया गया उसके मुख्य अतिथि सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी थे. उन्होंने बहुत ही प्रभावशाली भाषण इस सम्मेलन में दिया. इस सम्मेलन में न्यूजीलैंड सरकार की कैबिनेट मंत्री प्रियंका राधाकृष्णन भी आई थीं. सबों ने भारत सरकार की जी भरकर प्रशंसा की और बार-बार इस बात को दोहराया कि मुसीबत की हर घड़ी में भारत उनके साथ खड़ा रहा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार के प्रवासी भारतीय सम्मेलन का उद्घाटन किया और इस बात को रेखांकित किया कि भारत अपनी कठिनाइयों के बावजूद किस तरह प्रवासी भारतीयों के साथ खड़ा रहा. कोरोना संक्रमण के काल में भारत ने भारतीय मूल के हजारों लोगों को उन देशों से निकाला जहां वे फंसे हुए थे. प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रवासी भारतीयों ने विदेशों में हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है. इसी कारण विदेश के लोग भारत को बहुत ही सम्मान से देखते हैं.  

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने संबोधन में कहा कि आज की तारीख में भारत आत्मनिर्भर होने का पूरा प्रयास कर रहा है और इसमें प्रवासी भारतीयों का बहुत योगदान है. विदेश मंत्री जयशंकर ने प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए कहा कि वे भारत के निर्माण में सहयोग करें और कोरोना के बाद उद्योगों को बढ़ावा देने तथा अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए भारत की भरपूर मदद करें.

विदेश मंत्री ने महामारी के दौरान जरूरतमंदों तक पहुंच स्थापित करने के भारत के विभिन्न प्रयासों का भी उल्लेख किया. विदेश मंत्री ने कहा कि कोरोना के संकट के दौरान भारत ने 35 लाख प्रवासी भारतीयों को घर पहुंचाया. इसके अतिरिक्त भारत ने 150 देशों को दवाओं की आपूर्ति की. इन देशों में भारतीय समुदाय के लाखों लोग रहते हैं. 

जैसा कि ऊपर कहा गया है कि अंग्रेजों के समय में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग बहुत बड़ी संख्या में मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी और दूसरे अन्य देशों में गए और कालांतर में समृद्ध होते गए. 60 के दशक में जो लोग अन्य पश्चिमी देशों में भी गए, वे समय के साथ-साथ समृद्ध होते गए और उनके तकनीकी ज्ञान का लाभ भारत ने भरपूर उठाया. कहने का अर्थ है कि सदियों से भारत के लोग विदेश जाते रहे हैं.

परंतु उन्होंने भारत से अपना नाता नहीं तोड़ा और आज भी ये लोग अपने आपको भारतीय मानते हैं. संक्षेप में प्रवासी भारतीयों के सम्मेलन का आयोजन दो वर्ष की बजाय प्रतिवर्ष किया जाना चाहिए और भारत के स्कूल और कॉलेजों के छात्रों को यह बताना चाहिए कि कितनी कठिनाइयों के बाद ये लोग विदेश गए. उन्होंने उन देशों की तरक्की में चार चांद तो लगाए ही, भारत की भी हर तरह से मदद की. यह सिलसिला जारी रहना चाहिए.

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