रामविलास पासवान....जब खाकी हाफ पैंट में 1969 में चुनाव के लिए टिकट मांगने पहुंचे

By पद्मनारायण झा ‘विरंचि’ | Published: October 9, 2020 07:31 AM2020-10-09T07:31:31+5:302020-10-09T07:31:31+5:30

Ram Vilas Paswan: रामविलास पासवान अब इस दुनिया में नहीं हैं। 1969 से जो सफर उन्होंने राजनीति में शुरू किया वो 8 अक्टूबर को थम गया। मैथिली भाषा से प्रेम सहित उनसे जुड़े कई किस्से हैं।

PN Jha blog when Ram Vilas Paswan in 1969 gets ticket for bihar assembly election | रामविलास पासवान....जब खाकी हाफ पैंट में 1969 में चुनाव के लिए टिकट मांगने पहुंचे

रामविलास पासवान का 1969 से सियासी सफर (फाइल फोटो)

Highlightsरामविलास पासवान का मैथिली प्रेम, मैथिली की पत्र-पत्रिका से भरा रहता था ड्राईंग रूम1982 में लोकदल के भीतर कर्पूरी ठाकुर से मतभेद के बाद रामविलास पासवान का अलग सफर

मैंने रामविलास पासवान को पहली बार सन् 1969 में उस दिन देखा था जिस दिन वे विधानसभा चुनाव के लिए टिकट मांगने पटना आए थे। वह कर्पूरी ठाकुर का वीरचंद पटेल पथ स्थिति निवास स्थान था। प्राय: सोशलिस्ट पार्टी का प्रदेश कार्यालय भी कर्पूरी जी के निवास स्थान पर ही था। रामविलास जी खाकी रंग का हाफ पैंट पहने हुए थे। किसी-किसी ने बताया कि वे कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर सीधे आ रहे हैं। 

बाद में पता चला कि उनका घर तो खगड़िया है, लेकिन ननिहाल की तरफ से उनका संबंध कुशेश्वरस्थान (दरभंगा) से है। शायद उनके नाना की तरफ के लोगों का रिश्ता तत्कालीन सोशलिस्ट पार्टी से भी था, ख़ासकर स्वर्गीय सूरज नारायण सिंह से। जो भी हो, रामविलास जी को टिकट मिला और वे अलौली से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए।

रामविलास पासवान और मैथिली भाषा से प्रेम 

चुनाव के बाद विधायक दल के नेता का चुनाव हुआ। जिसमें पहली बार मत-विभाजन हुआ। स्वर्गीय रामानंद तिवारी को  52 सदस्यों में से 43 और उनके प्रतिद्वंदी श्री धनिकलाल मंडल को 9 वोट मिले। पता चला कि रामविलास जी ने भी मंडलजी के पक्ष में मतदान किया। मैं उन दिनों तिवारी जी का घनघोर समर्थक माना जाता था। लेकिन रामविलास जी से जब भी मुलाकात होती थी, तो बहुत सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में बातचीत होती थी। हम लोग आपस में मैथिली को छोड़कर किसी अन्य भाषा में एक दूसरे से बात नहीं करते थे। 

उनका यह मैथिली प्रेम सन् 2000 के बाद भी देखनो को मिला जब मैं एक बार दिल्ली स्थित उनके आवास पर गया। मैंने देखा कि वहां मैथिली की ऐसी कोई भी पत्र पत्रिका नहीं है, जो लोगों के पढ़ने के लिए उपलब्ध न हो। सारा ड्राईंग रूम प्राय: मैथिली पत्रिकाओं से ही भरा पड़ा था।  

आपातकाल के दौरान जब मैं जेल से बाहर आया, तो मेरी मुलाकात रामविलास पासवान से पटना के मुस्सलहपुर हाट स्थित श्री ब्रह्मदेव पटेल के घर पर प्राय: होती रहती थी। क्योंकि उन दिनों रामविलास जी बाहर फरारी का जीवन बिता रहे थे और इसी तरह उस दौरान लोग एक दूसरे से मिला जुला करते थे। जिन ब्रह्मदेव पटेल के घर हमारी मुलाकात होती थी वे कभी सीपीएम में रहे थे लेकिन स्वतंत्र चित्त के होने के कारण कुछ ही दिनों में कम्यूनिस्टों से उनका मोहभंग हो गया था।

उसके बाद रामविलास पासवान सन् सतहत्तर में जनता पार्टी के टिकट पर प्राय: सर्वाधिक मतो से जीतकर लोकसभा के लिए चुन लिए गए।

कर्पूरी ठाकुर से 1982 में मतभेद

सन् 1982 में लोकदल के भीतर स्व. कर्पूरी ठाकुर से उनका मतभेद हो गया और दोनों एक दूसरे से अलग हो गए। इसका कारण यह था कि लोकदल के सहायक संगठन के रूप में कर्पूरी जी जो संगठन बनाना चाहते थे, उसका नाम उन्होंने ‘शोषित सेना’ रखा था, जबकि रामविलास जी ‘दलित सेना’ से कम किसी नाम पर राजी होने को तैयार नहीं थे।  

सन् 1988 में कर्पूरी जी का निधन हो गया। वैसे उस समय तक लोग यही मान रहे थे कि अगर केंद्र में भविष्य में कभी सत्ता परिवर्तन होता है, तो प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार कर्पूरी ठाकुर ही होंगे। 

कांग्रेस सरकार जब 1989 में पराजित हुई, तो वीपी सिंह के नेतृत्व में जो सरकार बनी उसमें रामविलास पासवान श्रम मंत्री बनाए गए। प्राय: लोककल्याण मंत्री भी। एक तो उन दिनों पिछड़ों की राजनीति और पिछड़ों का आन्दोलन जोरों पर था। साथ ही रामविलास पासवान ने भी अथक परिश्रम किया। जिससे तत्कालीन सरकार ने बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर वो सम्मान दिया जो उन्हें सन् 1989 से पहले कुल मिलाकर नहीं मिला था। 

डॉ आम्बेडकर को मरणोपरांत भारत रत्न दिया गया। कैबिनेट मंत्री बनने के हफ्ते भर के भीतर ही रामविलास जी से भेंट हुई और उन्होंने इस पर मुझसे सुझाव मांगा कि डॉ आम्बेडकर के संबंध में सरकार को क्या-क्या करना चाहिए। मैंने उन्हें कहा कि किसी भी महान पुरुष को, जो अपने आप में संस्थान होता है, उसे आने वाले पीढ़ी को निश्चय ही संस्थागत रूप देना चाहिए। और इस तरह का कोई ढांचा तैयार कर अधिक से अधिक बुद्धिजीवियों को उससे जोड़ना चाहिए। यह एक बड़ा काम होगा। 

रामविलास पासवान ने इस दिशा में काम भी किया। कुल मिलाकर उनसे जब भी भेंट-मुलाकात होती थी, तो वे कुछ न कुछ सुझाव अवश्य माँगते थे। उनके मन में हमेशा जिज्ञाशा रहती थी कि लोग सरकार या उनसे क्या-क्या उम्मीदें रखते हैं। 

सहज और सरल रामविलास पासवान

वैसे तो उनसे जुड़ी हुई ढेर सारी यादें हैं लेकिन रामविलास जी कितने सहज और सरल थे, इसका एक उदाहरण देकर ही अपनी बात खत्म करना चाहूँगा। प्राय: मैंने किसी कारोबारी मामले के संबंध में किसी से कभी पैरवी नहीं की। लेकिन मेरे एक मित्र जो उत्तर प्रदेश से हैं, उनका मध्य-पूर्व के देशों में ‘मैन-पॉवर सप्लाई’ का काम था।

इसके लिए श्रम मंत्रालय से कई तरह के लाइसेंस, आदेश, निर्देश इत्यादि लेने पड़ते थे। उस पर मंत्रालय की सख्त निगरानी रहती थी। फिर भी कोई मामला मंत्री तक नहीं जाकर अधिकारी स्तर पर ही निपटता रहता था। 

उक्त कारोबारी ने मुझे अपने संबंधों की वजह से बाध्य कर दिया कि मैं उसके फंसे हुए कामों को सुलझाने के लिए मंत्री से पैरवी कर दूँ। रामविलास जी ने यह तो माना कि उन्हें विभाग ने इस तरह की कोई समस्या अभी तक नहीं बताई गई है, लेकिन उस आदमी से उन्होंने कहा कि मैं इनको व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं और ये जो कह रहे हैं उसे अक्षरश: सत्य मानता हूँ। इसीलिए मैं अधिकारी से पूछे बिना आपके सामने उन्हें बुलाकर आपके काम के संबंध में आदेश दे रहा हूँ और उन्होंने ऐसा ही किया। वो कुछ दौर ही अलग था। वो कुछ लोग ही अलग थे! रामविलासजी को श्रद्धांजलि।    

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