पीयूष पांडे का ब्लॉग: लिखने के लिए एक अदद विसंगति की तलाश
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 27, 2020 06:27 AM2020-06-27T06:27:50+5:302020-06-27T06:27:50+5:30
व्यंग्य जीवन की विसंगतियों का आईना है. बड़े व्यंग्यकार कह गए हैं कि जिस तरह ईश्वर कण-कण में निवास करता है, उसी तरह विसंगति कण-कण उर्फ मुद्दा, घटना, व्यक्ति, वस्तु वगैरह सब जगह निवास करती है. उसे देखने के लिए सिर्फ व्यंग्य दृष्टि चाहिए. जिस तरह सच्चा जेबकतरा बस-ट्रेन में बंदे की जेब को बिना स्पर्श किए निगाहों से तोल लेता है, वैसे ही सच्चा व्यंग्यकार मुद्दे के तूल पकड़ने से पहले ही विसंगति को धर दबोचता है.
मैं भी लेखन के लिए एक अदद विसंगति की तलाश में हूं. किंतु उलझन में हूं कि किस विसंगति पर लिखूं? डीजल की कीमतें पेट्रोल से आगे निकल गई हैं, ये एक विसंगति है. इमारतें खाली पड़ी हैं और बिल्डर के फ्लैट के साथ एसी-कूलर-पार्किग वगैरह फ्री देने के बावजूद लोग वहां झांकने नहीं जा रहे अलबत्ता श्मशानों में भीड़ लगी है, ये अलग विसंगति है. चीन का मामला तो विसंगतियों से उसी तरह लबालब है, जैसे बाढ़ में कोसी नदी लबालब हो जाती है. चीन के राष्ट्रपति को हम झूला झुलाते हैं और चीन हमारी पीठ पर छुरा भोंकता है, ये एक विसंगति है. चीन का चाऊमीन और मोमोज खाते-खाते एक हाथ में चीन का फोन पकड़कर हम चीन की चीजों के बहिष्कार की बात करते हैं, ये एक विसंगति है. चीन पर हमारे नेता ही आपस में एकमत नहीं हैं तो पूरी दुनिया कैसे होगी, ये अलग विसंगति है. पिद्दी सा नेपाल हमें आंख दिखा रहा है, ये विसंगति है.
विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता जा रहा है लेकिन लोगों की जेब खाली हो रही है, ये विसंगति है. जिस महामारी ने पूरी दुनिया की चूलें हिला दीं, उसका इलाज बाबाजी ने तीन महीने में खोज लिया. ये अपने आप में दिलचस्प विसंगति है. और सरकारें गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भुखमरी जैसी तमाम महामारियों का इलाज 74 साल में नहीं खोज पाईं, इससे अधिक कारुणिक विसंगति क्या हो सकती है. इस मामले में तो हाल यह रहा है कि रोग बढ़ता गया, जैसे-जैसे दवा की. एक वक्त बारातों में 20 लोग तो बारात के आगे चलने वाले जनरेटर की आवाज पर नाच लेते थे, लेकिन अब पूरी शादी में 20-25 लोगों को ही आने की इजाजत है, ये भी एक विसंगति है.
कोरोना काल में मास्क जान बचाने का हथियार है, लेकिन कई लोग अब डिजाइनर मास्क पहन रहे हैं ताकि फैशन स्टेटमेंट बना रहे, ये एक विसंगति है. शराब को हाथ नहीं लगाने की सलाह बड़े-बुजुर्ग हमेशा बच्चों को देते हैं, लेकिन अब दिन में 100 बार एल्कोहल युक्त सैनेटाइजर से हाथ धोने को कह रहे हैं, ये मजेदार विसंगति है. पिद्दी से वायरस ने एटम बम रखने वाले महाशक्तिशाली देशों की हवा निकाल दी, ये उल्लेखनीय विसंगति है. सैकड़ों विसंगतियां आसपास पसरी पड़ी हैं लेकिन मैं किस विसंगति पर लिखूं, ये समझ नहीं आ रहा. निश्चित रूप से ये एक विकट लेखकीय विसंगति है.