पीयूष पांडे का ब्लॉग: कोरोना काल में कौशल का विकास

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 30, 2020 03:18 PM2020-05-30T15:18:22+5:302020-05-30T15:18:22+5:30

लॉकडाउन के 60 दिन में मेरे भीतर बर्तन मांजने का अद्भुत कौशल विकसित हो चुका है. मैं दो मिनट में बर्तन कैसे मांजें वाली किताब लिखने के मूड में हूं. मेरा मानना है कि पढ़ा-लिखा बर्तन मांजक होने के नाते संभव है कि मुझे ज्यादा पगार मिले.

Piyush Pandey Blog: Skill Development in the Corona crisis Period | पीयूष पांडे का ब्लॉग: कोरोना काल में कौशल का विकास

कोरोना काल और कौशल विकास (प्रतीकात्मक तस्वीर)

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना से कितने लोगों का कितना कौशल विकास हुआ, ये कहना मुश्किल है. तथ्य है कि किसी भी सरकारी योजना से सिर्फ सरकारी बाबुओं की तिजोरी का विकास होता है, बाकी किसी का कुछ भी भला हो जाए तो इसे सिर्फ ईश्वर कृपा माना जाना चाहिए. लेकिन, कोरोना काल में कई लोगों का बिना कौशल विकास योजना में पंजीकरण किए कौशल विकास हो गया है.

कई लोगों में लॉकडाउन के बीच जाले साफ करना, पंखे साफ करना, पोंछा लगाना वगैरह का कौशल विकसित हुआ है. जिस तरह मुहल्ले का सबसे निठल्ला जब कुछ नहीं बन पाता, तब वो जनसेवक बन जाता है, उसी तरह खाली वक्त में पढ़ाकू टाइप के पिता ट्यूशन मास्टर हो लेते हैं. लेकिन, इस लॉकडाउन में उन पिताओं में भी पढ़ाने का कौशल विकसित हो गया, जो खुद कृपोत्तीर्ण अंक लेकर पास हुए थे.    

इसी तरह मेरे पड़ोसी शर्माजी लॉकडाउन में स्वयंभू इंजीनियर बनकर उभरे. जिस तरह कुछ हठधर्मी लॉकडाउन में नियम से नहीं चले तो पुलिसवालों ने उनके अंजर-पंजर ढीले कर दिए, उसी तरह शयनकक्ष के टेलीविजन ने चलने से इंकार किया तो पड़ोसी शर्माजी ने उसके अंजर-पंजर ढीले कर दिए.

इस देश में ढीठता सिर्फ बाबुओं और राजनेताओं की बपौती नहीं है, इलेक्ट्रॉनिक आइटम भी कई बार ढीठ हो जाते हैं. शर्माजी से टीवी सही नहीं हुआ, क्योंकि ढीठ कभी ठीक नहीं होते अलबत्ता अंजर-पंजर जोड़कर शर्माजी ने स्वयं को उसी तरह इंजीनियर घोषित किया, जिस तरह एक व्यक्ति वाली पार्टी का कर्ताधर्ता स्वयं को पार्टी अध्यक्ष घोषित करता है. इसके बाद शर्माजी ने प्रस्ताव दिया कि मैं चाहूं तो वो मुझे ये कौशल सिखा सकते हैं.

लेकिन, मैं इन दिनों अपने भीतर बर्तन मांजने का कौशल विकसित कर रहा था. लॉकडाउन के 60 दिन में मेरे भीतर बर्तन मांजने का अद्भुत कौशल विकसित हो चुका है. जिस तरह कुछ लेखक दो मिनट में गाना कैसे गाएं, दो मिनट में गिटार कैसे बजाएं, दो मिनट में राजनीति सीखें वाली किताबें दो मिनट में लिखकर जीवन में 200-250 किताबें लिख डालते हैं, मैं भी दो मिनट में बर्तन कैसे मांजें वाली किताब लिखने के मूड में हूं.

मेरा मानना है कि पढ़ा-लिखा बर्तन मांजक होने के नाते संभव है कि मुझे ज्यादा पगार मिले. क्या पता कोई पत्रकार मित्र पाकिस्तान और किम जोंग से बोर होने पर बर्तन मांजने के मेरे कौशल पर केंद्रित एक कार्यक्रम चैनल पर प्रसारित करा दे. ढिंचेक पूजा और डब्बूजी के बाद कोई नया हुनरबाज न्यूज चैनल पर आया भी नहीं है. सरकार का कोई बयानवीर मुझे देखकर बयान दे सकता है- ‘देखो, पकौड़ा रोजगार से आगे बर्तन मांजक रोजगार भी पैदा हुआ है.’ टीवी पर आते ही मैं सेलेब्रिटी बर्तन मांजक हो सकता हूं और फिर बर्तन मांजने का कोर्स शुरू कर सकता हूं

Web Title: Piyush Pandey Blog: Skill Development in the Corona crisis Period

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