अवधेश कुमार का ब्लॉग: नई लोकसभा में विपक्ष के तीव्र होंगे तेवर
By अवधेश कुमार | Updated: June 29, 2024 14:17 IST2024-06-29T14:15:29+5:302024-06-29T14:17:27+5:30

अवधेश कुमार का ब्लॉग: नई लोकसभा में विपक्ष के तीव्र होंगे तेवर
18 वीं लोकसभा के अध्यक्ष के निर्वाचन के दौरान और उसके बाद का दृश्य निश्चित रूप से देश को एक हद तक राहत देने वाला था. आक्रामक मोर्चाबंदी के बाद विपक्ष ने संसद में मत विभाजन की मांग नहीं की. इस कारण ओम बिरला का दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हुआ. विपक्ष अपने पूर्व के तेवर के अनुरूप के.
सुरेश और ओम बिरला के बीच मतदान पर अड़ता तो तस्वीर दूसरी होती. हालांकि संख्या बल के आधार पर सरकार की ओर से लाए गए उम्मीदवार ओम बिरला का निर्वाचन निश्चित था लेकिन विपक्ष भी अपनी ताकत दिखाना चाहता था. लगता है सरकार के रणनीतिकारों ने विपक्ष के साथ अंदर ही अंदर काफी बातचीत की, उन्हें मनाने का प्रयास किया और उसमें एक हद तक सफलता मिली.
सरकार का तर्क यही था कि अध्यक्ष पद को राजनीति से दूर रखने के लिए ओम बिरला का निर्वाचन सर्वसम्मति से होना चाहिए. इसमें सरकारी पक्ष सफल नहीं हुआ लेकिन कम-से-कम मत विभाजन नहीं हुआ यह भी आज की स्थिति को देखते हुए बड़ी बात है.
दूसरे, ओम बिरला के निर्वाचन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें बधाई देने गए तो विपक्ष के नेता के रूप में राहुल गांधी भी आए और प्रधानमंत्री ने स्वयं उन्हें अपने हाथ से आगे आने का इशारा किया. फिर परंपरा के अनुरूप सदन के नेता एवं विपक्ष के नेता तथा साथ में संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजु उन्हें आसन तक ले गए.
आसन पर बैठने के बाद प्रधानमंत्री ने पहले उनसे हाथ मिलाए और फिर राहुल गांधी की ओर मुड़कर उन्हें आगे किया, फिर प्रधानमंत्री एवं राहुल गांधी ने भी हाथ मिलाया. इससे संदेश यह निकलता है कि राजनीति में आपसी दुश्मनी की स्थिति होते हुए भी हमारे राजनेता महत्वपूर्ण अवसरों पर अपनी भूमिका का गरिमा से निर्वहन कर सकते हैं. हालांकि इससे यह मान लेना गलत होगा कि विपक्ष ने सरकार के साथ समन्वय बनाकर काम करने का मन बनाया है.
वास्तव में 18 वीं लोकसभा में शपथ ग्रहण के समय से विपक्ष का तेवर बता रहा है कि वह सरकार को आसानी से काम करने देने की मन:स्थिति में नहीं है. इंडिया गठबंधन के सारे सांसद गांधीजी की प्रतिमा के पुराने स्थल से हाथों में संविधान लहराते हुए जिस तरह नारा लगाते आगे बढ़े वह चिंतित करने वाला दृश्य था. कम-से-कम सांसदों के शपथ ग्रहण के अवसर को प्रदर्शनों से दूर रखा जा सकता था.
सरकार ने अभी ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जिसके लिए विपक्ष को इस तरह विरोध की एकजुटता प्रदर्शित करनी पड़े. विरोध के लिए आगे पूरा अवसर बना हुआ है. सांसदों के शपथ ग्रहण यानी 18वीं लोकसभा की शुरुआत में विपक्ष ने अपनी रणनीति के तहत ही आक्रामक विरोधी चरित्र प्रदर्शित किया है.