एनके सिंह का ब्लॉग: अपनी उद्यमिता के बल पर चीन को पछाड़ें
By एनके सिंह | Published: June 23, 2020 05:49 AM2020-06-23T05:49:21+5:302020-06-23T05:49:21+5:30
भारतीय सैनिक जो बुलेटप्रूफ जैकेट या सुरक्षा-कवच सीमा पर युद्ध के समय इस्तेमाल करते हैं उनमें चीन का माल लगा हुआ है. देश में बच्चे से बूढ़े तक बुखार व दर्द कम करने के लिए जिस पैरासिटामॉल का इस्तेमाल करते हैं उसका कच्चा माल चीन से आता है. देश में बनने वाली दवाओं के लिए 67 प्रतिशत कच्चा माल इसी देश का होता है. भारत में स्मार्टफोन का बाजार करीब दो लाख करोड़ रु पए का है जिसमें 72 फीसदी शेयर चीन का है. टीवी बाजार में 45 फीसदी, टेलिकॉम सेक्टर में 25 फीसदी, सौर ऊर्जा में 90 फीसदी और घरेलू उपकरणों में 12 फीसदी हिस्सा सीमा पार के इस देश का है जिससे आज हम 58 साल में दूसरी बार युद्ध की स्थिति में हैं. यानी चीन हमारी अर्थव्यवस्था में दूध में पानी की हद तक मिला हुआ है. देश में क्या एक भी उद्यमी दुर्गा, शिव, गणेश की मूर्तियां चीन से बेहतर बनाने में सक्षम नहीं है? निदान क्या है : चीनी माल का बहिष्कार या अपना परिष्कार?
हमारी सोच में विरोधाभास का यह नमूना देखें. देश में चीन के खिलाफ गुस्सा है और राजनीतिक वर्ग इसे राष्ट्रभक्ति से जोड़ कर देख रहा है. यानी चीनी सामान के बहिष्कार का नारा सड़कों-चौराहों पर लगा रहा है. जो ऐसा नहीं कर रहा है वह ‘राष्ट्र द्रोही’ माना जा रहा है. लेकिन जरा हकीकत देखें. एक ताजा सर्वे में 87 प्रतिशत लोगों ने कहा कि चीनी माल का बहिष्कार होना चाहिए लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या आपके हाथ में जो चाइनीज स्मार्टफोन है उसे फेंक कर भारतीय उत्पाद लेंगे, तो उनमें से आधे ने कहा, ‘नहीं, इसे तो इस्तेमाल करेंगे लेकिन आगे नहीं खरीदेंगे.’
इस भावना के वशीभूत हो शायद ही कुछ मूल हकीकत पर गौर किया जा रहा है. पहला, चीन यहां तक कैसे पहुंचा? ज्यादा दिन नहीं हुए, सन 1990 तक भारत और चीन की जीडीपी यानी अर्थव्यवस्था का आकार बराबर था और भारत की प्रति व्यक्ति आय बेहतर थी क्योंकि आबादी चीन के मुकाबले कम थी, लेकिन पिछले तीन-चार दशकों में चीन की जीडीपी भारत के मुकाबले चार गुना ज्यादा है और उम्मीद है कि अगले कुछ वर्षों में यह अमेरिका को भी पछाड़ देगा. यह कैसे हुआ? जैसे ही अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण शुरू हुआ, चीन ने विश्व व्यापार (निर्यात-आयात) को अपने विकास की रीढ़ बना लिया. जो चीन वैश्विक व्यापार में मात्र एक फीसदी हिस्सा रखता था इन छह दशकों में दुनिया में होने वाले कुल निर्यात का 13 फीसदी और आयात का 11 फीसदी हिस्सा उसने अपने खाते में कर लिया. इसके मुकाबले भारत की विश्व व्यापार में हिस्सेदारी जो आजादी के समय 2.2 फीसदी थी, घट कर 1.7 फीसदी रह गई.
हमने यह भी नहीं सोचा कि जापान जैसा स्वाभिमानी और ‘देश-प्रेमी’ देश भी चीन का परंपरागत जानी दुश्मन होने के बावजूद चीन के कुल विदेश व्यापार का सात फीसदी हिस्सा यानी भारत का तीन गुना आयात करता है. उसने कभी बहिष्कार का नारा नहीं दिया. जबकि चीन के कुल व्यापार का मात्र 2.1 हिस्सा ही भारत के साथ है. इसके उलट चीन भारत के विदेश व्यापार का 10.7 फीसदी योगदान के साथ दूसरा सबसे बड़ा पार्टनर है. अगर बहिष्कार हुआ तो नुकसान भारत के निर्माताओं (जो कच्चा माल चीन से लेते हैं), उपभोक्ताओं और निर्यातकों का होगा क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा माल करीब 45-65 फीसदी ज्यादा महंगा मिलेगा.
ध्यान रहे कि हमारी सरकारों ने ही हमारी उद्यमिता को बढ़ावा नहीं दिया. नतीजा यह हुआ कि हम दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादक तो हैं लेकिन हमारा दूध विश्व-बाजार में नहीं बिकता क्योंकि हमारी लागत 340 रुपया प्रति किलो (पाउडर) आती है जबकि न्यूजीलैंड हमें अपने घर पर 240 रुपए में देने को तैयार है.
पिछले छह साल में सरकार ने उद्यमिता को लेकर नारे तो बहुत दिए जैसे मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया से लेकर अब ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ लेकिन इनमें से किसी पर भी वास्तविक अमल नहीं हुआ. एक उदाहरण देखें. झारखंड की प्रवासी युवतियों ने भारत सरकार की स्किल इंडिया योजना (कौशल विकास योजना) के तहत अपने गृह-राज्य में सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग ली. लेकिन कुछ काम नहीं मिल सका. फिर स्थानीय दलाल इन्हें नौ हजार रु पए महीने देने के वादे पर केरल के सिलाई कारखाने में ले गया. लेकिन इनके अनुसार इन्हें आधा पेट भोजन देकर महीने के आखिर में दो हजार रुपए ठेकेदार पकड़ा देता था. ‘स्किल इंडिया’ नीति के पीछे मंशा यह थी कि गांव से युवाओं/युवतियों को निकाल कर उन्हें कौशल देकर उद्योग या सेवा क्षेत्र में रोजगार दिया जाए. लेकिन न तो स्किल इंडिया आगे बढ़ पाई, न ही उसे हासिल करने वाले गृह-राज्य में रोजी पा सके.
ऐसे में उचित होगा कि चीन से हम सामरिक शक्ति में बेहतर बनें, बजाय उसके माल का बहिष्कार कर अपनी अर्थव्यवस्था को और चौपट करने के. असली राष्ट्र प्रेम तब होगा जब सरकारें सिस्टम को भ्रष्टाचार मुक्त करें और हमारे युवा उद्यमिता से चीन को पछाड़ें. और इसका मौका उपलब्ध है.