एन. के. सिंह का ब्लॉग: समग्र विकास से ही मिटेगी हर तरह की गरीबी

By एनके सिंह | Published: July 19, 2019 05:30 AM2019-07-19T05:30:07+5:302019-07-19T05:30:07+5:30

आर्थिक पैरामीटर्स पर गरीबी मापने की एक गलत अवधारणा से देश के करोड़ों लोग गरीबी की त्नासदी झेलते हुए भी उस श्रेणी में मिलने वाली सहायता से वंचित रहे हैं.

NK Singh Blog: Every Type of poverty can be eliminated from overall development | एन. के. सिंह का ब्लॉग: समग्र विकास से ही मिटेगी हर तरह की गरीबी

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (Image Source: pixabay)

अगर एक व्यक्ति की आय तो ठीक है लेकिन उसके बच्चे दूरी के कारण स्कूल नहीं जाते, या पीने का पानी तीन किमी दूर है, या स्वास्थ्य-चिकित्सा के अभाव में उसके कई बच्चे पांच साल के उम्र से पहले मर चुके हैं या कुकिंग गैस के अभाव में उसकी बीवी को दमे की बीमारी हो जाती है तो क्या उसे गरीबी की रेखा के ऊपर माना जाएगा? अगर इनमें से कुछ सुविधाएं हासिल हैं और कुछ नहीं तो ऐसे परिवार या व्यक्ति को किस श्रेणी में रखा जाएगा? अगर इस व्यक्ति के परिवार में एक बच्चा पोषित हो लेकिन दूसरा कुपोषित तो परिवार की आय के आधार पर उसे गरीब नहीं माना जाएगा? 

आर्थिक पैरामीटर्स पर गरीबी मापने की एक गलत अवधारणा से देश के करोड़ों लोग गरीबी की त्नासदी झेलते हुए भी उस श्रेणी में मिलने वाली सहायता से वंचित रहे हैं. गरीबी निर्धारण के लिए अबतक मान्य तरीके से प्रति-व्यक्ति आय यानी नेट राष्ट्रीय आय को जनसंख्या से भाग देकर निकाल लिया जाता था, बगैर यह सोचे हुए कि इस आय में अरबपतियों की आय के साथ गांव के घुरहू और पतवारू की आय भी शामिल है. बाद में इसमें बदलाव किया गया और स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन की गुणवत्ता के आधार पर बहुआयामी गरीबी को दस पैरामीटर्स पर मापने का सिलसिला शुरू हुआ. लेकिन भारत में अभी भी आर्थिक आधार को प्रमुख कारक माना गया.  

भला हो संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और ऑक्सफोर्ड गरीबी एवं मानव विकास सूचकांक के संयुक्त प्रयास और कुछ अन्य शोधकर्ताओं की मेहनत का कि उन्होंने विश्व का ध्यान आर्थिक गरीबी से हटाकर बहुआयामी गरीबी और उसमें भी कुछ नए पैरामीटर्स पर खींचा. इस ताजा संयुक्त रिपोर्ट में कुछ चौंकाने वाले तथ्य आए हैं जो भारत सहित दुनिया के तमाम अविकसित और विकासशील देशों की सरकारों को जहां अपनी जन-कल्याण नीति को बदलने को मजबूत करेंगे वहीं वहां के समाजों को भी अपनी नकारात्मक सोच बदलने के लिए प्रेरित करेंगे. 

इस रिपोर्ट के अनुसार, एक ही क्षेत्न के दो देशों में गरीबी का स्तर काफी अलग-अलग है. अरब देशों में जहां यमन में बहुआयामी गरीबी की तीव्रता 47.7 प्रतिशत है वहीं पड़ोस के जॉर्डन में मात्न एक प्रतिशत. दक्षिण अमेरिका के हैती में 41.4 फीसदी लेकिन त्रिनिदाद और टोबागो में केवल 0.6 फीसदी. यह भी पाया गया कि किसी देश में गरीबों की संख्या ज्यादा हो (पुराने पैमाने के आधार पर) लेकिन तीव्रता कम जैसे पाकिस्तान और म्यांमार में गरीबी का प्रतिशत (38.3) एक है लेकिन तीव्रता पाकिस्तान में 51.7 प्रतिशत जबकि म्यांमार में 45.9 प्रतिशत, यानी पाकिस्तान में जो गरीब है वह हर पैमाने पर अभाव का दंश झेल रहा है.

कुछ देशों में पाया गया कि एक ही गरीब घर का एक बच्चा कुपोषित है और दूसरा पोषित. इसका कारण सामाजिक है और परिवारों की सोच के स्तर पर है. एक ही क्षेत्न में कुछ सौ किमी के अंतर पर गरीबों में भयंकर गरीबी है और दूसरे ऐसे ही क्षेत्न में यह अंतर काफी कम है. इस ताजा अध्ययन की खास बात यह है कि इसमें गरीबी को न केवल स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन की गुणवत्ता के दस पैरामीटर्स पर मापते हैं बल्कि उस क्षेत्न के लोगों में पानी की अलग-अलग उपलब्धता या हासिल करने में कठिनाई, शिक्षा के लिए स्कूल की दूरी, खाना बनाने के लिए कुकिंग गैस, स्वच्छ पानी, बिजली आदि को भी शामिल किया गया है.

गरीबी की तीव्रता (इंटेंसिटी) और गरीबी की घटना में फर्क यह है कि संभव है एक व्यक्ति को बिजली या गैस तो मिल गया पर स्वच्छ पानी के लिए उसे दो किमी जाना पड़ता हो या बीमारी की वजह से अपने बच्चे का स्कूल से नाम उसने कटवा दिया हो.

अध्ययन में पाया गया कि दुनिया के 123 करोड़ बहुआयामी गरीबों में 88 करोड़ (दो-तिहाई) मध्यम आय वाले देशों में हैं और बाकी निम्न आय वाले देशों में. यानी सरकारों का केवल जीडीपी बढ़ाने पर बल देना कई बार हानिकारक परिणाम भी दे सकता है अगर उसका चौतरफा लाभ आम लोगों तक नहीं पहुंचाया गया. वैसे तो सन 2010 से 2015 तक विश्व बैंक और यूएनडीपी में असली गरीबी मापने के लिए असमानता-समायोजित और फिर बहुआयामी सूचकांक बनाने पर इनसे सही आकलन नहीं हो पा रहा था.

ताजा अध्ययन में  जब गरीबी की तीव्रता और बहुआयामी गरीबी के आंकड़ों को विखंडित करके देखा गया तब पता चला कि कोई व्यक्ति एक आंकड़े में ऊपर है लेकिन अन्य तमाम में काफी नीचे. इन नए आंकड़ों के आधार पर दुनिया के कुल 130 करोड़ गरीबों में आधे 18 साल से कम उम्र के बच्चे हैं और उनमें भी दस साल से कम उम्र वाले बच्चे एक तिहाई हैं.  

क्या इन नए आंकड़ों के आलोक में भारत की सरकार फिर से एक बार कोशिश करेगी अपनी आर्थिक विकास पर आधारित नीतियों की जगह समेकित विकास की नीति लाने की यानी गांवों या शहरों की गरीब बस्ती में आय बढ़ाने के साथ ही बिजली, पानी, शिक्षा, कुकिंग गैस, अस्पताल मुहैया करने की. जो चौंकने वाली बात है वह यह कि नई परिभाषा के तहत गरीबी केवल गरीब निम्न या निम्न-मध्यम आय वाले देशों में नहीं मध्यम आय वाले देशों में भी बड़े प्रतिशत में है यानी 130 करोड़ में 88.6 करोड़ गरीब हैं. सरकारों को संदेश यह है कि आय तो बढ़ाएं, पर बहुआयामी अभाव को भी कम करने के उपक्रम करें. 
 

Web Title: NK Singh Blog: Every Type of poverty can be eliminated from overall development

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