ब्लॉग: नए संसद भवन से लोकतांत्रिक मूल्यों के नए भारत की उम्मीदें

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: May 29, 2023 02:41 PM2023-05-29T14:41:54+5:302023-05-29T14:43:26+5:30

उद्घाटन को रस्मी आयोजनों की तरह मान भी लिया जाए तो सामान्य वर्ग की आकांक्षाओं को प्रमुखता देनी ही होगी. आज भी देश में विकास का लाभ हर वर्ग-हर तबके तक नहीं पहुंचा है.

New India's expectations of democratic values ​​from the new Parliament House | ब्लॉग: नए संसद भवन से लोकतांत्रिक मूल्यों के नए भारत की उम्मीदें

ब्लॉग: नए संसद भवन से लोकतांत्रिक मूल्यों के नए भारत की उम्मीदें

करीब सौ वर्ष बाद भारत को नया संसद भवन मिल गया, जिसकी करीब दो दशक से जरूरत महसूस की जा रही थी. कभी अंग्रेजी सत्ता के केंद्र के रूप में ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर का तैयार ‘काउंसिल हाउस’ स्वतंत्रता के 75 साल तक चला, जो करीब 83 करोड़ रुपए खर्च कर छह साल बाद वर्ष 1927 में तैयार हुआ था और लंबे समय तक भारतीय पहचान रहा. किंतु 862 करोड़ रुपए खर्च कर ढाई साल में तैयार हुआ नया भवन आधुनिकता और विरासत के केंद्र के रूप में विकसित किया गया है. 

इसे विकसित भारत की ओर बढ़ते कदम की निशानी बताया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को नए संसद भवन का भारतीय विधि-विधानों के साथ उद्घाटन किया. हालांकि इस कार्यक्रम को लेकर विपक्ष ने खासा विवाद खड़ा कर दिया था, जो कार्यक्रम तक जारी रहा. मगर सरकार ने उसे अधिक महत्व न देते हुए अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किया. नतीजा निर्धारित समय पर उद्घाटन के रूप में आया. इस मौके पर प्रधानमंत्री ने साफ किया कि आज नया भारत एक नया लक्ष्य तय कर रहा है. 

उन्होंने संसद भवन के निर्माण में करीब 60 हजार श्रमिकों के योगदान को भी रेखांकित किया. समूचे आयोजन और विपक्ष की राजनीति के बीच नए भवन से नई उम्मीदों का जागना स्वाभाविक है. विशालता और व्यापकता के नाम पर इससे लोकतांत्रिक मूल्यों पर आंच न आने की अपेक्षा रखना लाजमी है. यह ध्यान में रखना भी जरूरी है कि पूरे राष्ट्र की संसद के अंतिम छोर पर एक सामान्य नागरिक इसके भीतर जाने वालों का भविष्य तय करता है. 

उद्घाटन को रस्मी आयोजनों की तरह मान भी लिया जाए तो सामान्य वर्ग की आकांक्षाओं को प्रमुखता देनी ही होगी. आज भी देश में विकास का लाभ हर वर्ग-हर तबके तक नहीं पहुंचा है. शिक्षा, स्वास्थ्य के लिए आम आदमी का कठिन संघर्ष जारी है. आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान भी उसकी समस्याओं से सरकारें पूरी तरह दो-चार नहीं हो पाई हैं. इस परिदृश्य में अनेक ऊंची इमारतें उसे मुंह चिढ़ाती हैं. ऐसे में देश में भव्यता भवन से देखने वालों के आकर्षण का केंद्र बन सकते हैं, किंतु पास से अपेक्षा रखने वालों के लिए उनमें जीवंतता लानी होगी. 

अवश्य ही संसद की नई इमारत में वर्तमान लोकसभा के सभी सांसद कम से कम तीन सत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे, लेकिन जब तक जनकल्याण के नए रास्ते भीतर से बाहर नहीं आएंगे, तब तक नए-पुराने का अंतर जन-जन को नजर नहीं आएगा. इसलिए आवश्यक यही होगा कि बदलाव का असर निर्जीव के अलावा सजीव स्वरूप में भी दिखाई दे. तभी ऐसी इमारतों की बुलंदियां इतिहास में दर्ज हो पाएंगी. वर्ना वे वास्तुकला की किताबों तक ही सीमित रह जाएंगी.

Web Title: New India's expectations of democratic values ​​from the new Parliament House

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