गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: शिक्षा क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की जरूरत

By गिरीश्वर मिश्र | Published: January 31, 2023 09:36 AM2023-01-31T09:36:00+5:302023-01-31T09:36:54+5:30

आज यदि शिक्षा के प्रति संशय और अन्यमनस्कता है तो इसका एक बड़ा कारण शिक्षा की विषयवस्तु और प्रक्रिया की दुर्बलता और देश के संदर्भ से उसका कटा होना भी है. 

Need to pay special attention to the education sector | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: शिक्षा क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की जरूरत

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsहमारी पूरी शिक्षा ज्यादातर अनुकरणमूलक होती गई जिसमें यांत्रिक बुद्धि ने सर्जना शक्ति को हाशिये पर रख दिया.बाहर से आरोपित होने की स्थिति में शिक्षा और समाज का ठीक तालमेल भी नहीं हो सका.शिक्षा के साथ सरकारी नीति में लगातार उपेक्षा और भेदभाव भी बना रहा.

आज के युग में किसी देश की उन्नति बहुत हद तक वहां की शिक्षा की गुणवत्ता पर ही निर्भर करती है. सूचना, ज्ञान और प्रौद्योगिकी की स्पर्धा में ज्यादा से ज्यादा बढ़त पाने को सभी देश आतुर हैं. आज जब देश 'सशक्त' और 'आत्मनिर्भर' बनने को आतुर है तो शिक्षा की दशा दिशा पर विचार और भी जरूरी हो जाता है हालांकि भारत ने विद्या, ज्ञान और शिक्षा का भौतिक और परमार्थिक दोनों स्तरों पर महत्व बहुत पहले से पहचान रखा था. 

ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में जितनी प्रगति थी उसकी बदौलत भारत को विश्व गुरु का दर्जा भी मिला था. परंतु औपनिवेशिक काल में शिक्षा पर ताला ऐसा पड़ा कि हम ज्ञान के क्षेत्र में अनुकरण करने वाले होते गए. गौरतलब है कि उपनिवेश बनने के पहले भारत विश्व के समृद्ध देशों में से एक था और कभी यहां विश्वस्तरीय शिक्षा केंद्र भी थे जिन्हें आक्रांताओं ने नष्ट किया था. 

हमारी पूरी शिक्षा ज्यादातर अनुकरणमूलक होती गई जिसमें यांत्रिक बुद्धि ने सर्जना शक्ति को हाशिये पर रख दिया. बाहर से आरोपित होने की स्थिति में शिक्षा और समाज का ठीक तालमेल भी नहीं हो सका. आज यदि शिक्षा के प्रति संशय और अन्यमनस्कता है तो इसका एक बड़ा कारण शिक्षा की विषयवस्तु और प्रक्रिया की दुर्बलता और देश के संदर्भ से उसका कटा होना भी है. 

साथ ही शिक्षा के साथ सरकारी नीति में लगातार उपेक्षा और भेदभाव भी बना रहा. बजट में जो बचा-खुचा होता है, वह शिक्षा को मिलता है. आज आंगनवाड़ी, प्राथमिक विद्यालय, हाईस्कूल, माध्यमिक विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं की स्थिति संसाधनों और अव्यवस्था के चलते नाजुक होती जा रही है. यह खेदजनक है कि यह जानते हुए भी कि शिक्षा सामाजिक परिवर्तन, आर्थिक प्रयत्न, रोजगार के अवसर और सांस्कृतिक विकास की कुंजी है, इसे देश की विकास-योजना में कभी भी वह जगह नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी. 

फलतः शिक्षा में जरूरी निवेश नहीं हुआ, सरकार यानी सार्वजनिक क्षेत्र इससे हाथ खींचने लगा, निजी क्षेत्र हावी होने लगा, शिक्षा बाजार के हवाले होती गई, वह बाजार का हिस्सा बन गई. फिर शिक्षा का व्यापार शुरू हो गया, सभी बड़े व्यापारी शिक्षा की दूकानें खोलने लगे और शिक्षा की जो भी संरचना थी वह ध्वस्त होने लगी. निजी क्षेत्र में शिक्षा का विस्तार जिस तरह हो रहा है उसके कई परिणाम हो रहे हैं. 

सम्पन्न घरों के छात्र ऊंची फीस देकर वहां पढ़ाई कर रहे हैं. निजी विश्वविद्यालय सरकारी विश्वविद्यालयों की तुलना में कई-कई गुना फीस ले कर विभिन्न पाठ्यक्रमों की पढ़ाई करा रहे हैं. उनकी नीति और नियम अपने ही ढंग के हैं. संविधान द्वारा शिक्षा का अधिकार सबको देने के बावजूद शिक्षा के अवसर अभिभावक की आर्थिक स्थिति से मजबूती से जुड़ते गए. 

आज की एक कटु सच्चाई यही है कि हर स्तर पर भारतीय शिक्षा संस्थाओं की कई-कई जातियां, उपजातियां खड़ी होती जा रही हैं. शिक्षालय के साथ कोचिंग की विराट संस्थाएं खड़ी होती गईं. शिक्षा का आयोजन ज्ञान की अभिवृद्धि, समाज के मानस-निर्माण, उत्पादकता तथा सांस्कृतिक और सर्जनात्मक उन्मेष जैसे कई सरोकारों से सीधे-सीधे जुड़ा हुआ है. इसलिए शिक्षा को लेकर सबके मन में आशाएं पलती रहती हैं. 

पिछले सात दशकों में शिक्षा केंद्रों की संख्या तो बढ़ी है पर उतनी नहीं जितनी चाहिए. शिक्षा से जुड़े मुख्य सवाल जैसे शिक्षा किसलिए और कैसे दी जाए? शिक्षा का भारतीय संस्कृति और वैश्विक क्षितिज पर उभरते ज्ञान-परिदृश्य से क्या संबंध हो? शिक्षा की विषयवस्तु क्या और कितनी हो? बार-बार उठते रहे हैं. भारत में शिक्षा की गहराती चुनौतियों पर विचार कर वर्तमान सरकार ने शिक्षा नीति लाने की पहल की. 

उसके तहत इन प्रश्नों पर ध्यान दिया गया है, पर कार्ययोजना पर अमल भी करना होगा. कथनी और करनी में अंतर को मिटाना होगा. गौरतलब है कि सरकार की ओर से शिक्षा में न पर्याप्त निवेश हो सका और न व्यवस्था ही कारगर हो सकी. नई शिक्षा नीति के तहत अमल करते हुए कई कदम उठाए जा रहे हैं. बन रहे पाठ्यक्रम से ज्ञान, कौशल और मूल्य को संस्कृति और पर्यावरण के अनुकूल ढालने का उद्यम हो रहा है.

उससे अपेक्षा है कि नए पाठ्यक्रम नौकरी, नागरिकता, संस्कृति और प्रकृति सभी के लिए प्रासंगिक होंगे. वह भारतकेंद्रित होने के साथ-साथ वैश्विक दृष्टि से भी संपन्न होंगे. मातृभाषा को माध्यम के रूप में और भारतीय ज्ञान परंपरा को अध्ययन-विषय के रूप में मुख्यता से स्थान मिलेगा. यह सब कैसे और कब होगा यह भविष्य के गर्भ में है. अगले 25 वर्ष के 'अमृत काल' की अवधि में एक नए भारत (न्यू इंडिया!) के स्वप्न को साकार करने के लिए अच्छी शिक्षा बेहद जरूरी है.

यह एक निर्णायक दौर होगा जिसे अवसर में बदलने के लिए शिक्षा को ठीक रास्ते पर लाना होगा और यह गुणात्मक सुधार से ही हो सकेगा. अमृत-काल का लाभ तभी होगा यदि मरणशील शिक्षा को संजीवनी मिलेगी. आशा है आगामी बजट शिक्षा को वरीयता देगा और उसके विभिन्न अवयवों के लिए समुचित संसाधन उपलब्ध कराने की व्यवस्था करेगा. नए भारत के लिए शिक्षा की सुधि लेनी ही होगी.

Web Title: Need to pay special attention to the education sector

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