एन. के. सिंह का ब्लॉगः श्रमिकों को शोषण से बचाने की कवायद
By एनके सिंह | Published: June 1, 2020 01:52 PM2020-06-01T13:52:33+5:302020-06-01T13:52:33+5:30
प्रवासी मजदूरों की संख्या, शहरी-औद्योगिक-सामाजिक जीवन में उनकी अनकही लेकिन बेहद महत्वपूर्ण भूमिका और उनके अचानक भय-जनित पलायन के बाद की स्थिति ने सरकार ही नहीं, उपभोक्ता-संभ्रांत-शोषक समाज को भी हिला दिया है. ‘अगर वे नहीं लौटे तो क्या’ प्रश्न, इन सभी के मन में नया खौफ पैदा कर रहा है. 70 साल से इनकी अनदेखी आज नासूर बन सकती है. ‘रिवर्स माइग्रेशन’ (प्रतिलोम प्रवास) यानी इन मजदूरों की ‘घर वापसी’ अगर स्थायी स्वरूप लेती है तो देश में एक नया संकट हो जाएगा क्योंकि सस्ता श्रम मिलना बंद होगा.
एक अनुमान के अनुसार देश में 200 से ज्यादा राज्य श्रम-कानून हैं और करीब 50 केंद्रीय श्रम-कानून लेकिन इनमें से एक ने भी ‘श्रम कानून’ की परिभाषा नहीं दी, लिहाजा प्रवासी मजदूर का पुरसाहाल कोई भी नहीं रहा. आज की स्थिति में भ्रमद्वंद्व यह है कि उद्यमी श्रम कानून से मुक्ति चाहते हैं और लॉकडाउन खुलने पर लगभग आधा दर्जन सरकारों ने उद्यमियों और कोलोनाइजर्स के दबाव में, श्रम कानून में उद्यमियों के हित में व्यापक बदलाव किए हैं, जो असंगठित क्षेत्न के श्रमिकों को तो छोड़िए, संगठित क्षेत्न के श्रमिकों के लिए भी शोषणकारी बन गया है. इनमें सबसे आगे उत्तर प्रदेश है,
केंद्र की समस्या यह है कि इन प्रवासी मजदूरों के वापस काम पर लौटे बिना उद्योग और सेवा क्षेत्न का चक्र थमा रहेगा. लिहाजा मोदी सरकार दो मोर्चो पर काम करने की सोच रही है. राज्यों को कहा जाएगा कि ऐसे मजदूरों की, जो बाहर जा कर काम करते हैं (यानी प्रवासी मजदूर) की लिस्ट अपने यहां बनाएं और जो राज्य उन्हें रोजी देते हैं उनकी लिस्ट से इस लिस्ट को मिलाएंगे ताकि मजदूरों के एक राज्य से दूसरे में नौकरी करने पर भी केंद्र सरकार द्वारा सुविधाएं बहाल की जा सकें. यूपीए-2 के शासनकाल में एक कानून लाकर अनऑर्गेनाइज्ड वर्कर्स आइडेंटिफिकेशन नंबर (यूविन) का प्रावधान किया गया था ताकि उन्हें भी भविष्य निधि, न्यूनतम वेतन आदि का लाभ दिए जा सके. पर सरकारी तंत्न और उद्यमियों के भ्रष्ट गठजोड़ ने इसकी जगह अनौपचारिक ठेकेदार प्रथा शुरू कर दी जो पहले से ज्यादा शोषक थी. नए ‘यूविन’ में इन मजदूरों के लिए ईएसआईसी यानी स्वास्थ्य-बीमा का प्रावधान भी होगा जिसका बहुत थोड़ा अंशदान मजदूरों से और बाकी उद्यमियों/ठेकेदारों और सरकार से लिया जाएगा.
देखने में यह सब तो अच्छा लगता है पर अभी तक का अनुभव यह रहा है कि भ्रष्टाचार की चौखट पर ऐसी योजनाएं दम तोड़ देती हैं. उद्यमी इन श्रमिकों को रिकॉर्ड पर इस डर से नहीं लेता कि फिर उन्हें निकालने के लिए सरकार की इजाजत लेनी होगी, लिहाजा शोषण मुश्किल होगा.