महाराष्ट्र की ईवी नीति से पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: May 1, 2025 07:40 IST2025-05-01T07:40:01+5:302025-05-01T07:40:05+5:30
इलेक्ट्रिक वाहन सबसे अच्छे विकल्प के रूप में तो उभरे लेकिन कई कारणों से उसे लोकप्रिय बनाने की प्रक्रिया धीमी रही.

महाराष्ट्र की ईवी नीति से पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी
महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को इलेक्ट्रिक वाहन नीति को मंजूरी देकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अनुकरणीय पहल की है. इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देने के लिए महाराष्ट्र सरकार की इस पहल के निश्चित रूप से सकारात्मक नतीजे निकलेंगे और वायु प्रदूषण कम करने में अपेक्षित सफलता हासिल होगी.
अपनी नीति में महाराष्ट्र सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने पर सब्सिडी प्रदान करने तथा राजमार्गों पर टोल टैक्स में छूट देने का प्रावधान किया है. महाराष्ट्र देश के उन राज्यों में से है जहां पेट्रोल तथा डीजल से चलने वाले वाहनों की संख्या सबसे ज्यादा है. मुंबई, नागपुर, पुणे, अहमदनगर, औरंगाबाद, नाशिक जैसे बड़े शहर ही नहीं बल्कि अमरावती, अकोला, नांदेड़, रत्नागिरि, जालना, लातूर जैसे मध्यम स्तर के शहरों तक को प्रदूषण अपनी चपेट में लेने लगा है.
डीजल तथा पेट्रोल से चलने वाले वाहनों से निकलने वाला धुआं महाराष्ट्र के वायु मंडल में जहर घोल रहा है. वैकल्पिक ईंधनों से वाहन चलाने के प्रयोग महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर हो रहे हैं लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे विकल्प की तरह सफलता नहीं मिल सकी है. वास्तव में इलेक्ट्रिक वाहन पेट्रोल तथा डीजल से चलने वाले वाहनों के सबसे अच्छे विकल्प के रूप में अपनी क्षमता को साबित कर चुके हैं.
इसीलिए लोग उन्हें तेजी से अपना रहे हैं. उन्हें पेट्रोल-डीजल वाहन का शत-प्रतिशत विकल्प बनाने में कुछ बाधाएं हैं. मसलन इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत बहुत बड़ी समस्या है. पेट्रोल-डीजल वाहनों की तुलना में ईवी (इलेक्ट्रिक वाहन) महंगे हैं. उनका रख-रखाव भी अपेक्षाकृत जटिल है. इसके अलावा सबसे बड़ी समस्या उन्हें चार्ज करने की है. बैटरी से चलने वाले इन वाहनों को चार्ज करने में बहुत वक्त लगता है. दूसरी बड़ी समस्या है कि उन्हें चार्ज करने के लिए चार्जिंग स्टेशनों की बहुत कमी है.
ये वाहन फिलहाल शहर के भीतर या आसपास पचास-सौ किमी के दायरे तक यात्रा करने के लिए ही उपयुक्त हैं. लंबी दूरी की यात्रा के लिए इन वाहनों में क्षमता तो है लेकिन समस्या यह है कि बैटरी की चार्जिंग खत्म हो जाने पर उन्हें चार्ज करने के लिए राष्ट्रीय और प्रादेशिक राज मार्गों पर सैकड़ों किमी तक चार्जिंग स्टेशन ही नहीं मिलते. इलेक्ट्रिक वाहन नीति तैयार करते वक्त महाराष्ट्र सरकार ने इन मामलों को ध्यान में रखा है.
नई ईवी नीति में हर 25 किमी के दायरे में चार्जिंग प्वाइंट बनाने का प्रावधान है. इससे लंबी दूरी की यात्रा करने पर ईवी को चार्ज करने की समस्या का समाधान हो जाएगा. ईवी की ज्यादा कीमतों पर भी राज्य सरकार ने गौर किया है. उसने ईवी की बिक्री बढ़ाने के लिए उनकी खरीद पर ग्राहकों को 10 से 15 प्रतिशत की छूट देने का प्रावधान भी किया है. इससे ईवी की बिक्री को निश्चित रूप से प्रोत्साहन मिलेगा. भारत दुनिया के उन मुल्कों में शामिल है जहां कार्बन उत्सर्जन सबसे ज्यादा होता है और इस अप्रिय मामले में महाराष्ट्र भी पीछे नहीं है.
औद्योगिकीकरण तथा वाहनों की विशाल संख्या एवं राख व धुआं उगलने वाले बिजलीघरों के कारण वायु और ध्वनि प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है. इससे तापमान में भी असामान्य वृद्धि दर्ज की जा रही है. राज्य में वायु प्रदूषण के महत्वपूर्ण कारणों में वाहन भी हैं.
पेट्रोल तथा डीजल का विकल्प ढूंढ़ने के प्रयास वर्षों से चल रहे हैं. जो विकल्प मिले हैं, उनसे पेट्रोल तथा डीजल की खपत कम करने में कोई खास मदद नहीं मिल रही थी. इलेक्ट्रिक वाहन सबसे अच्छे विकल्प के रूप में तो उभरे लेकिन कई कारणों से उसे लोकप्रिय बनाने की प्रक्रिया धीमी रही. चार्जिंग तथा कीमत से जुड़ी समस्याओं के कारण ईवी को अपनाने में लोगों को वक्त लगा लेकिन एक बार उसकी उपयोगिता समझ में आ जाने के बाद ईवी की बिक्री में तेजी से वृद्धि होने लगी है.
एक अनुमान के मुताबिक अगले दस वर्षों में महाराष्ट्र देश के उन राज्यों में शामिल हो जाएगा जहां ईवी की संख्या डीजल-पेट्रोल से चलने वाले वाहनों से ज्यादा रहेगी. पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में ईवी काफी मददगार साबित हो सकते हैं. इन वाहनों से जहरीला धुआं नहीं निकलता और ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है. ईवी पेट्रोल-डीजल वाहनों की तरह शोर नहीं करते.
ईवी की बिक्री को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न राज्य सरकारें अपनी ओर से कुछ कदम उठा रही हैं लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने ईवी को लेकर एक समग्र नीति बनाई है जो अन्य राज्यों के लिए निश्चित रूप से अनुकरणीय साबित होगी.