बुजुर्गों को आज भी नहीं भूला है आजादी के बाद का पहला महाकुंभ, 3 फरवरी 1954 को मौनी अमावस्या और शाही स्नान

By कृष्ण प्रताप सिंह | Updated: January 4, 2025 05:40 IST2025-01-04T05:38:32+5:302025-01-04T05:40:09+5:30

Mahakumbh 2025: साक्षी बनने की लालसा में राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू जैसे ही त्रिवेणी रोड से बांध के नीचे उतरते हुए मुगल बादशाह अकबर के बनवाए ऐतिहासिक किले की ओर बढ़े (जिसके बुर्ज में उनके आतिथ्य सत्कार की व्यवस्था की गई थी) स्नानार्थियों में अव्यवस्था उत्पन्न हो गई.

Mahakumbh 2025 first 1954 Mahakumbh after independence not forgotten elders even today blog krishna pratap singh | बुजुर्गों को आज भी नहीं भूला है आजादी के बाद का पहला महाकुंभ, 3 फरवरी 1954 को मौनी अमावस्या और शाही स्नान

सांकेतिक फोटो

Highlights2-3 फरवरी के बीच की रात गंगा का जलस्तर अचानक बहुत बढ़ गया, जिससे साधुओं  के संगम के किनारे स्थित आश्रमों में पानी भरने लगा. सुरक्षित जगह कब्जाने की हड़बड़ी में उनके बीच मारपीट होने लगी तो घबराहट फैली और लोग भागने लगे. हाथी अचानक भड़ककर भगदड़ का कारण बन गया तो रेतीले मैदान ने भी कुछ कम कहर नहीं बरपाया.

Mahakumbh 2025: इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में जब भी महाकुंभ आता है, बड़े-बुजुर्गों को 1954 के महाकुंभ में तीन फरवरी को मौनी अमावस्या के शाही स्नान के दौरान अचानक हुई भगदड़ से मचे हाहाकार की याद आ जाती है. उस हाहाकार में जरा-सी देर में बच्चों, महिलाओं व वृद्धों समेत कोई आठ सौ (कुछ स्रोतों के अनुसार एक हजार से ज्यादा) लोगों ने जानें गंवा दी थीं. इसमें यह बात अभी भी कई हल्कों में बहुत जोर देकर कही जाती है कि इस महाकुंभ के साक्षी बनने की लालसा में राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू जैसे ही त्रिवेणी रोड से बांध के नीचे उतरते हुए मुगल बादशाह अकबर के बनवाए ऐतिहासिक किले की ओर बढ़े (जिसके बुर्ज में उनके आतिथ्य सत्कार की व्यवस्था की गई थी) स्नानार्थियों में अव्यवस्था उत्पन्न हो गई.

दूसरी बात, 2-3 फरवरी के बीच की रात गंगा का जलस्तर अचानक बहुत बढ़ गया, जिससे साधुओं  के संगम के किनारे स्थित आश्रमों में पानी भरने लगा. सुरक्षित जगह कब्जाने की हड़बड़ी में उनके बीच मारपीट होने लगी तो घबराहट फैली और लोग भागने लगे. तीसरी बात यह कही जाती है कि एक हाथी अचानक भड़ककर भगदड़ का कारण बन गया तो रेतीले मैदान ने भी कुछ कम कहर नहीं बरपाया.

इस मैदान में, जो महाकुंभ क्षेत्र का चालीस प्रतिशत था, जगह-जगह रेत के दलदल थे. उनपर लोहे की प्लेटें बिछाकर रास्ते बनाए गए थे. लेकिन  जान संकट में आई तो स्नानार्थी दलदलों की ओर भी भागे और उनमें फंस व धंसकर मौत के शिकार हुए. गौरतलब है कि उन दिनों कुंभ क्षेत्र और स्नान घाटों की संख्या दोनों बहुत कम थे. लेकिन प्रयागराज निवासी और उक्त भगदड़ के प्रत्यक्षदर्शी रहे वरिष्ठ पत्रकार नरेश मिश्र इन बातों से इत्तेफाक नहीं रखते. उनके मुताबिक शाही स्नान के बीच लगभग साढ़े आठ बजे संगम चौराहे पर शहर की तरफ से आती स्नानार्थियों की भीड़ इकट्ठी हो गई.

इधर से स्नान के लिए आगे बढ़ने को व्याकुल यह भीड़ और उधर से स्नान कर लौटने वालों की, जबकि बीच में संगम के नीचे की ओर से दशनामी संन्यासियों का पेशवाई जुलूस निकल रहा था. मिश्र बताते हैं कि पुलिस ने दो अखाड़ों को रोककर या उनके बीच समय का अंतराल रखकर आने-जाने वाली भीड़ को रास्ता दे दिया होता, तो कुछ नहीं होता. लेकिन ऐसा नहीं किया गया.

जुलूस निकलता रहा और संगम चौराहे पर व्याकुल भीड़ धीरज खोती रही. एक पेशवाई जुलूस से दूसरे जुलूस के बीच जैसे ही कुछ मिनटों का अवकाश मिला, भीड़ खुद ही वहां से निकलने की कोशिश करने लगी. ऊपर वाले लोग नीचे भागे और नीचे वाले ऊपर की ओर तो पुलिस उन्हें नियंत्रित नहीं कर पाई. इसके बाद पैंतालीस मिनट तक महाकाल का तांडव चलता रहा. मिश्र के अनुसार प्रधानमंत्री नेहरू एक दिन पहले कुंभ की तैयारियों का जायजा लेने आए जरूर थे, लेकिन लौट गए थे.

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