संपादकीयः यूपी में ‘बुआ-बबुआ’ की जोड़ी रंग लाएगी! 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 14, 2019 01:32 AM2019-01-14T01:32:52+5:302019-01-14T01:32:52+5:30

पिछली बार उत्तर प्रदेश  में भाजपा ने 71, अपना दल ने 2, सपा ने 5, कांग्रेस ने दो सीटें जीती थीं और बसपा अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी. पिछले चुनाव के मतदान के अनुसार भाजपा और अपना दल को 43.63 प्रतिशत मत मिले थे, जो सपा और बसपा के कुल मतदान 42.12 प्रतिशत से ज्यादा थे.

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संपादकीयः यूपी में ‘बुआ-बबुआ’ की जोड़ी रंग लाएगी! 

आगामी लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की जोड़ी ‘बुआ-बबुआ’ के तौर पर दिखेगी. दोनों ने सीटों का बंटवारा कर लिया है. पिछले चुनावों में मिले मतों के हिसाब से साफ है कि नया गठबंधन मजबूत स्थिति में रहेगा और भारतीय जनता पार्टी को कड़ी टक्कर देगा. यदि इस बार भी हालात पिछले लोकसभा चुनाव की तरह ही रहते हैं तो नया गठबंधन भाजपा की आधे से ज्यादा सीटों को कम करने में सक्षम होगा. 

पिछली बार उत्तर प्रदेश  में भाजपा ने 71, अपना दल ने 2, सपा ने 5, कांग्रेस ने दो सीटें जीती थीं और बसपा अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी. पिछले चुनाव के मतदान के अनुसार भाजपा और अपना दल को 43.63 प्रतिशत मत मिले थे, जो सपा और बसपा के कुल मतदान 42.12 प्रतिशत से ज्यादा थे. इस तथ्य को अधिक गहराई से देखा जाए तो राज्य की 41 सीटों पर नए गठबंधन की ताकत अधिक है. 

यदि उसे राष्ट्रीय लोकदल का साथ मिल जाता है तो वह भाजपा को अच्छी तरह से पीछे छोड़ सकता है. लोकसभा के बाद यदि पिछले विधानसभा चुनाव का हिसाब लगाया जाए तो भाजपा और उसके सहयोगी दलों के कुल मत 41.35 प्रतिशत पहुंचते हैं, जबकि बसपा-सपा के संयुक्त मत 44.05 प्रतिशत तक हो जाते हैं. ऐसे में साफ है कि नए गठबंधन ने भले ही कांग्रेस को किनारे कर दिया हो, लेकिन आंकड़ों के हिसाब से उसकी ताकत अच्छी खासी है. ऐसे में भाजपा को कड़े मुकाबले के लिए तैयार रहना होगा. 

हालांकि बसपा-सपा का मतदाता आम तौर पर भाजपा का मतदाता नहीं होता है, लेकिन दोनों दलों के बीच आपस में मतों का आदान-प्रदान आसान नहीं होगा. बसपा के परंपरागत दलित मत पार्टी के हिसाब से चलते हैं, लेकिन सपा के यादवी मतों में हृदय परिवर्तन की संभावना बनी रहती है. 

वर्ष 1993 में गठबंधन के बाद राज्य में दोनों दलों के बीच आई अदावत से उबर पाना शीर्ष नेतृत्व के लिए आसान हो सकता है, लेकिन निचले स्तर पर संघर्ष को कम कर पाना मुश्किल होगा. यह भाजपा के लिए सीधी और कांग्रेस के लिए अप्रत्यक्ष चुनौती है इसलिए दोनों दल भी अपनी ताकत लगाएंगे. ऐसे में बसपा-सपा के लिए एकजुट रहकर विजय हासिल करना गणितीय खेल की तरह आसान नहीं होगा. फिर भी एक नजर में तो राजनीति के तराजू पर ‘बुआ-बबुआ’ का पलड़ा भारी है, हालांकि मतदाताओं को उसे तौलना बाकी है. वे ही नई जोड़ी के असली राजनीतिक रंग बताएंगे.

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