दिल्ली में दीपावली पर पटाखों के विस्फोट, पराली के जलने और ठंड की दस्तक के साथ ही वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है, अतएव राजधानी क्षेत्र का जन-जीवन स्वास्थ्य कारणों से प्रभावित हो उठता है. इसी समस्या से निपटने के लिए दिल्ली में कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) की गई. परंतु बादलों में पर्याप्त नमी नहीं होने के कारण कृत्रिम बारिश का प्रयोग सफल नहीं रहा. वस्तुतः परीक्षण रोक दिया गया. यह क्लाउड सीडिंग पश्चिमी विक्षोभ के कारण बादलों से घिरे आसमान में दिल्ली के बुराड़ी के क्षेत्र में दो परीक्षण के उपायों के रूप में की गई थी.
इन परीक्षणों में कुल 16 फ्लेयर्स से सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड यौगिकों का मिश्रण चार से छह हजार फुट की ऊंचाई पर बादलों में छोड़ा गया. लेकिन बारिश नहीं हुई. हालांकि थोड़ी-बहुत बूंदें नोएडा और ग्रेटर नोएडा में जरूर धरती को भिगो गईं. कृत्रिम बारिश कराने की कोशिश में लगे कानपुर आईआईटी के निदेशक प्रो. मणीन्द्र अग्रवाल ने दावा किया है कि क्लाउड सीडिंग के असर से ही यह बारिश हुई है. इसी कारण राजधानी के कुछ स्थानों पर कणीय पदार्थ (पीएम) 2.5 और पीएम 10 में कमी दर्ज की गई है. अतएव अभियान सफल रहा. यह बारिश दिल्ली सरकार करा रही है.
इस अभियान के अंतर्गत कानपुर की हवाई पट्टी से सेना के विमान ने उड़ान भरी और एक बहुत बड़े हिस्से में वर्षा कराने वाले मिश्रण का छिड़काव किया गया. यह छिड़काव लंबाई में 25 नाटिकल मील और चौड़ाई में चार नाटिकल मील क्षेत्र में किया गया. पहले चरण में विमान ने करीब चार हजार फुट की ऊंचाई पर उद्देश्य को पूरा किया. इसमें आठ फ्लेयर्स दागे गए. लगभग 18.5 मिनट के इस अभियान के बाद विमान नीचे लाया गया और दूसरा चरण शाम तीन बजकर 55 मिनट पर शुरू हुआ. इस बार छह हजार फुट की ऊंचाई से बादलों में रसायन का छिड़काव आठ फ्लेयर्स से किया गया.
आईआईटी की रिपोर्ट के मुताबिक बादलों में नमी की मात्रा 15 से 20 प्रतिशत तक ही थी, जो कृत्रिम बारिश के लिए उपयुक्त स्थिति नहीं है. लेकिन यह स्थिति कम नमीवाली स्थितियों में सीडिंग की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए उचित थी. इसलिए ये परीक्षण किए गए. दिल्ली राज्य के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि ऐसे प्रयोग राजधानी क्षेत्र में फरवरी 2026 तक किए जाते रहेंगे. अब मौसम विज्ञानी रिपोर्ट के आंकड़ों का गंभीर अध्ययन करने के बाद कृत्रिम बारिश के आगे के उपाय करेंगे.
कृत्रिम बारिश की तकनीक अत्यंत महंगी है. साथ ही इसमें यह संदेह बना रहता है कि पर्याप्त धन खर्च करने के बावजूद कृत्रिम बारिश होगी अथवा नहीं? मणीन्द्र अग्रवाल ने कहा है कि इस उपाय की कुल लागत करीब 60 लाख रुपए आई है. यह मोटे तौर पर प्रतिवर्ग किमी लगभग 20,000 रुपए बैठती है. यदि यह परीक्षण 1000 वर्ग किमी क्षेत्र में किया जाता है तो इसकी लागत 2 करोड़ रुपए होगी. यदि यह परीक्षण पूरे शीतकाल में जारी रखा जाए तो इसकी लागत लगभग 25 से 30 करोड़ रु. आएगी.
हालांकि यह धनराशि इसलिए बहुत बड़ी नहीं है, क्योंकि दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण पर खर्च की जाने वाली कुल धनराशि इससे कहीं ज्यादा है. लेकिन एक बार बारिश के बाद दो-तीन दिन के भीतर प्रदूषण फिर बढ़ जाएगा. अतएव प्रदूषण की स्थायी रोकथाम जमीनी स्तर पर हो जाए तो कहीं बेहतर है.