जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव पर निश्चय ही पड़ोसी पाकिस्तान तथा चीन के साथ विश्व के अनेक देशों और उनमें काम करने वाले कई संगठनों और व्यक्तियों की गहरी दृष्टि होगी. पाकिस्तान और चीन दोनों नहीं चाहेंगे कि जम्मू कश्मीर में भारत निष्पक्ष, शांतिपूर्ण और सफल चुनाव संचालन कर पाए.
जम्मू क्षेत्र में बढ़ रही आतंकवादी घटनाएं इसका प्रमाण हैं कि हमारा पड़ोसी किस तरह लोकसभा चुनाव के पूर्व से ही परेशान है. लोकसभा चुनाव में लोगों ने जितनी बड़ी संख्या में मतदान किया, वह इस बात का प्रमाण था कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद वहां लोगों के अंदर सुरक्षा को लेकर भय काफी हद तक खत्म हुआ है और आश्वस्ति का सामूहिक मानस कायम हो चुका है. उम्मीद है विधानसभा चुनाव में भी यही स्थिति कायम रहेगी.
लोकसभा चुनाव के बारे में भी यही कहा गया कि यह अभी तक का सबसे सफल, शांत और सर्वाधिक मतदाताओं की भागीदारी वाला चुनाव साबित हुआ. विधानसभा चुनाव की तस्वीर इससे अलग नहीं होगी. प्रदेश में लंबे समय से रुका परिसीमन का काम पूरा हो चुका है. इसमें जम्मू की सीटों को 37 से 43 तथा कश्मीर की सीटों को 46 से 47 किया जा चुका है. इस तरह 90 सीटें हैं.
पहली बार वहां अनुसूचित जनजाति के लिए सात सीटें आरक्षित हुई हैं तथा पांच का नामांकन किया जाएगा. तो विधानसभा के अंकगणित और संरचना की दृष्टि से यह बहुत बड़ा बदलाव है. भारत विरोधी निश्चित रूप से लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की उपस्थिति से परेशान हैं.
किंतु बदले हुए वातावरण और सुरक्षा की वर्तमान स्थिति में अब उनके लिए पहले के चुनावों की तरह इसे बाधित करना या लोगों को डराकर घर में सिमटा देना संभव नहीं है. इस चुनाव में किस पार्टी की क्या हैसियत रहेगी, राजनीतिक दृष्टि से इसका महत्व है किंतु इसके साथ पिछले 5 वर्षों में जम्मू-कश्मीर में हुए आमूल बदलाव और उसके प्रभाव भी कम महत्व के नहीं हैं.
जम्मू-कश्मीर जैसे लंबे समय तक असामान्य और अशांत रहे प्रदेश के पूरे वातावरण को पटरी पर लाने की कल्पना भी देश में नहीं थी. कोई सोच भी नहीं सकता था कि कभी लाल चौक पर 15 अगस्त और 26 जनवरी को इतने शानदार और खुले कार्यक्रम होंगे.
यह भी कल्पना मुश्किल था कि पूरे प्रदेश के विद्यालय समय से खुलेंगे, बंद होंगे. इसका यह अर्थ नहीं है कि लंबे समय से पैदा किया गया अलगाववाद या भारत से नफरत और विरोध का भाव वहां पूरी तरह खत्म हो गया है. किंतु बदले हुए माहौल में इन सबके लिए संगठित होकर पहले की तरह काम करना संभव नहीं है.