न्याय व्यवस्था की शुचिता बनाए रखना जरूरी  

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 28, 2025 07:23 IST2025-03-28T07:22:20+5:302025-03-28T07:23:47+5:30

हार्पर कॉलिंस द्वारा 2018 में प्रकाशित इस पुस्तक में समाज के व्यापक हित में भारतीय न्यायिक प्रणाली का एक उत्कृष्ट विश्लेषण किया गया है और सुधार सुझाए गए हैं.

It is important to maintain the integrity of the justice system | न्याय व्यवस्था की शुचिता बनाए रखना जरूरी  

न्याय व्यवस्था की शुचिता बनाए रखना जरूरी  

अभिलाष खांडेकर

मुझे न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा मामले में उनके ‘सुरक्षित और संरक्षित’ घर में भारी मात्रा में नगदी रखने वाले की हिम्मत की सराहना करनी चाहिए. हमें इस कांड का इसलिए भी शुक्रिया अदा करना चाहिए कि इसके बहाने लोगों का न्यायपालिका के कामकाज पर ध्यान केंद्रित हुआ है, जिसके बारे में बहुत कम लिखा गया है, हालांकि लोग कठोर वास्तविकता जानते हैं.

मुझे प्रधान न्यायाधीश जी को भी धन्यवाद देना है कि उन्होंने जल्द कार्रवाई शुरू कर दी. यह बात सर्वविदित है कि भारतीय राजनेता भयंकर रूप से भ्रष्ट हैं और देश का कोई भी कानून उन्हें पर्याप्त रूप से दंडित करने में सक्षम नहीं है. सभी प्रकार के नौकरशाह - विभिन्न अखिल भारतीय सेवाओं से लेकर राज्य सेवाओं तक, और उससे भी नीचे - और पुलिस भी अपवाद नहीं हैं.

पत्रकार, समाजशास्त्री और राजनीतिक टिप्पणीकार अक्सर उन्हें उजागर करने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे काफी हद तक व्यर्थ रह जाती हैं. हमारे कानूनी प्रावधान उन्हें पकड़ पाने में बहुत कमजोर हैं.

राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच गठजोड़ इतना मजबूत है कि वे आसानी से एक-दूसरे की रक्षा कर सकते हैं और ‘आम लोगों’ यानी भोले-भाले मतदाताओं पर शासन करना बदस्तूर जारी रख सकते हैं. हमारे लोकतांत्रिक परिदृश्य में मतदाताओं को बार-बार बताया जाता है कि वे लोकतंत्र में ‘सर्वाधिक’ महत्वपूर्ण अंग हैं और उनका एक मत व्यवस्था को बदल सकता है. वास्तव में यह बात कितनी भ्रामक है, हम सब समझते हैं.

बहरहाल, लोकतंत्र का तीसरा स्तंभ (न्यायपालिका), जो हमारे संविधान द्वारा पूरी तरह संरक्षित है, विधायिका और कार्यपालिका की तुलना में बहुत कम जवाबदेह है. इसके कई कारण हैं.

जस्टिस वर्मा प्रकरण-जिसकी अनेक परतें अभी भी सार्वजनिक होनी बाकी हैं-ने निश्चित रूप से भारतीय न्यायपालिका को झकझोर कर रख दिया है और अगर वरिष्ठ न्यायाधीश, जिनमें नेकनीयत प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना भी शामिल हैं, इस सड़े-गले तंत्र को साफ करना चाहते हैं, तो जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित घर में लगी इस ‘आग’ को बुझने नहीं दिया जाना चाहिए.

चौंकाने वाले खुलासे के बाद खन्ना साहब कानून व्यवस्था की विश्वसनीयता को बहाल करने में मदद करने के लिए तुरंत गंभीर काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं.

जवाबदेही पर बहस, कॉलेजियम प्रणाली की कार्यप्रणाली, न्यायाधीशों के लिए नैतिक मानदंड, न्यायपालिका की स्वतंत्रता आदि पर तार्किक रूप से पहले से कहीं अधिक उत्साह के साथ सार्वजनिक रूप से चर्चा की जा रही है और बदलाव के संकेत हैं.

बेशक, तीन दशक पहले संसद में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश वी. रामास्वामी के असफल महाभियोग ने तब बहुत ज्यादा चर्चा बटोरी थी. उन पर वित्तीय कदाचार का आरोप था, लेकिन दुर्भाग्य से उन पर महाभियोग नहीं लगाया जा सका था. सोशल मीडिया की शक्तिशाली मौजूदगी के इस दौर में हुई यह ताजा घटना सभी संबंधित पक्षों पर काफी दबाव डालने वाली है.

न्यायमूर्ति के घर पर ‘नगदी के ढेर’ के इस विचित्र मामले के सभी पहलुओं की जांच के लिए जांच समिति गठित करने के साथ ही तुरंत कार्रवाई करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस खन्ना की सराहना की जानी चाहिए.
उम्मीद है कि न्यायिक प्रणाली में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए कई बदलाव होंगे और कानूनी प्राधिकारियों को न्यायाधीश के आधिकारिक आवास में लगी आग की वास्तविक ‘जलन’ महसूस होगी.

माननीय न्यायाधीशों को लाखों लोग न्याय पाने की आखिरी उम्मीद के रूप में देखते हैं. जो लोग मुकदमेबाज नहीं भी हैं, वे भी अदालतों का सम्मान करते हैं. मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली की विश्वसनीयता अभी भी काफी हद तक बरकरार है, हालांकि अक्सर इसमें कुछ खामियां सामने आती रहती हैं.

‘मजबूत बांध’ के रूप में जानी जाने वाली अदालतें बीते वर्षों में लोगों और शासकों की ज्यादतियों के बीच मजबूत रूप से खड़ी नजर आई हैं.

प्रसिद्ध पत्रकार और भारत के शीर्ष लेखकों में शामिल अरुण शौरी की गंभीर रूप से बीमार पत्नी अनिता की 2013 में गिरफ्तारी के लिए जब गलत तरीके से गैर-जमानती वारंट जारी किया गया, तो शौरी ने न केवल चुनौती स्वीकार की, बल्कि कई वर्षों तक बार-बार अदालतों में जाकर दलील दी कि उन्हें कभी वारंट नहीं दिया गया और न ही उन्होंने अरावली पर्वत में कोई घर बनाया.

उन्होंने उस दोषपूर्ण न्याय व्यवस्था की गहन जांच की जिसने उनकी पत्नी पर हर उस चीज का आरोप लगाया जो उन्होंने कभी किया ही नहीं था. उन्होंने अपनी अद्भुत किताब इसलिए नहीं लिखी क्योंकि वे पीड़ित थे, बल्कि उन्होंने इसे लोगों को भारतीय न्यायालयों के कामकाज को तथ्यात्मक तरीके से समझने में मदद करने के लिए लिखा.

शौरी, जो एक बहुत ही गंभीर पाठक और एक नामी लेखक हैं, ने अपनी किताब ‘अनिता गेट्‌स बेल’ में दो सवाल पूछे हैं: हमारी अदालतें क्या कर रही हैं और हमें उनके बारे में क्या करना चाहिए? हार्पर कॉलिंस द्वारा 2018 में प्रकाशित इस पुस्तक में समाज के व्यापक हित में भारतीय न्यायिक प्रणाली का एक उत्कृष्ट विश्लेषण किया गया है और सुधार सुझाए गए हैं.

हाल ही में अखबारों के पहले पन्ने की सुर्खियां बने न्यायमूर्ति वर्मा के बारे में पढ़ते समय मुझे इस किताब की याद आई. इस मामले के बारे में पहले ही बहुत कुछ लिखा जा चुका है, हालांकि कोई निर्णायक सबूत सामने नहीं आया है. उम्मीद है कि तीन न्यायाधीशों की समिति देश के सामने सारी सच्चाई सामने लाएगी, जो वास्तविकता जानने का इंतजार कर रहा है.

लेकिन चिंता की बात यह है कि जिस भ्रष्टाचार ने राजनीतिक और नौकरशाही व्यवस्था में गहरी पैठ बना ली है वह अब न्यायिक व्यवस्था को भी निशाना बनाने की कोशिश करता दिखाई दे रहा है. अब समय आ गया है कि सभी ईमानदार न्यायाधीश, जो इस पवित्र पेशे की परवाह करते हैं, वे इसे आम आदमी के लिए और देश के लिए खराब होने से बचाएं.

Web Title: It is important to maintain the integrity of the justice system

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