ब्लॉग: विपक्षी दलों की एकता में क्या बाधक है कांग्रेस?

By शशिधर खान | Published: August 4, 2022 03:28 PM2022-08-04T15:28:40+5:302022-08-04T15:28:40+5:30

गैर-भाजपा विपक्षी एकता की कोशिश तो समझ में आती है क्योंकि भाजपा केंद्र के साथ-साथ कई राज्यों में सत्ता में है. टीआरएस नेता चंद्रशेखर राव ने लेकिन गैर-भाजपा के साथ-साथ गैर-कांग्रेस विपक्षी एकजुटता की बात कही.

Is congress obstacle in the unity of opposition parties | ब्लॉग: विपक्षी दलों की एकता में क्या बाधक है कांग्रेस?

विपक्षी दलों की एकता में क्या बाधक है कांग्रेस? (फाइल फोटो)

तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) सुप्रीमो और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव गैर-कांग्रेस विपक्षी एकता के प्रयास में जिस समय समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से दिल्ली में मिल रहे थे, उसी समय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) महासचिव डी. राजा विपक्षी एकता में कांग्रेस को बाधक बता रहे थे.

केसीआर (के. चंद्रशेखर राव) के लोकप्रिय संबोधन से पुकारे जाने वाले तेलंगाना के मुख्यमंत्री गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए दिल्ली आए. इस सिलसिले में तेलंगाना राष्ट्र समिति प्रमुख केसीआर ने समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और वरिष्ठ सपा नेता रामगोपाल यादव से इस हफ्ते दिल्ली में मुलाकात की. उनकी मुलाकात के दिन 29 जुलाई को ही कांग्रेस गठजोड़ के एक पुराने सहयोगी दल सीपीआई महासचिव डी. राजा ने विस्तृत बयान जारी कर कांग्रेस की तीखी आलोचना की. 

सीपीआई नेता ने कांग्रेस को ‘वैचारिक स्तर पर कुंद और असामयिक’ हो चुकी पार्टी बताते हुए कहा कि विपक्ष को साथ लेकर चलने लायक अब यह पार्टी नहीं रह गई है. डी. राजा ने यों तो क्षेत्रीय दलों को भी भाजपा के खिलाफ तगड़ा विपक्ष बनने में नाकामयाबी के लिए जिम्मेदार ठहराया लेकिन सीपीआई महासचिव ने मुख्य रूप से कांग्रेस पर ही हमला बोला और कहा कि अंदरूनी कलह, दल-बदल के कारण कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों को एकजुट करने में विफल साबित हुई है. उन्होंने कांग्रेस की विपक्षी एकजुटता नीति को ‘एड-हॉक’ करार दिया.

सीपीआई नेता का दिल्ली में जारी यह बयान पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की जुलाई के पहले सप्ताह में हुई बैठक में पारित राजनीतिक प्रस्ताव का दस्तावेज था. विजयवाड़ा में अक्तूबर में होने वाली सीपीआई की 24वीं कांग्रेस में यह दस्तावेज पेश किया जानेवाला है. कांग्रेस के साथ कहीं तालमेल और कहीं घालमेल गठजोड़ जारी रखते हुए सीपीआई खुद देश भर में हाशिए पर जा चुकी है. कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर अभी-भी मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की निंदा थोड़ी बेतुकी जरूर मगर अर्थहीन नहीं लगती है. 

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) का भी पश्चिम बंगाल के बाद त्रिपुरा में भी सत्ता से बाहर होने के बाद अपने ‘सौतेले भाई-सीपीआई’ वाला हाल हो चुका है. अब ये दोनों वाम दल एकमात्र केरल में अस्तित्व बचाए हुए हैं. सीपीएम भी कांग्रेस की निंदा का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देती. सीपीएम के नेतृत्व वाली केरल की वाम मोर्चा सरकार में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है. सीपीआई नेता डी. राजा ने ‘कम्युनिस्ट आंदाेलन की एकता’ पर बल दिया, जो कई दशकों से आपसी दरारों में फंसी है.

गैर-भाजपा विपक्षी एकता की कोशिश तो समझ में आती है  क्योंकि भाजपा केंद्र के साथ-साथ कई राज्यों में सत्ता में है. लेकिन तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) नेता चंद्रशेखर राव ने गैर-भाजपा के साथ-साथ गैर-कांग्रेस विपक्षी एकजुटता की बात कही. इससे इतना तो अंदाजा लग ही जाता है कि टीआरएस सहित जितनी क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय मंच तैयार करने में जुटी हैं, उनमें ज्यादातर कांग्रेस के साथ मंच साझा नहीं करना चाहतीं. 

केसीआर की तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस प्रमुख की हैसियत से विपक्षी एकजुटता में जुटी हैं. ममता बनर्जी (दीदी) और केसीआर दोनों ऐसी मजबूत क्षेत्रीय पार्टियों के नेता हैं, जिनकी विपक्षी एकजुटता के प्रयासों के पीछे अपनी भी राष्ट्रीय नेतृत्व के रूप में उभरने की महत्वाकांक्षा है. 

कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी बनाए रखकर केसीआर तथा दीदी की विपक्षी एकता के एजेंडे में कांग्रेस की छवि बाधक के रूप में उभरी है. ये दोनों कांग्रेस को विपक्षी मोर्चा के संयोजक या नेतृत्वकर्ता के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. सीपीआई ने तो इसे कांग्रेस के एकजुटता प्रयास की विफलता करार दिया, जो अपने अंदरूनी कलह से ही उबर नहीं पा रही है.

Web Title: Is congress obstacle in the unity of opposition parties

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