शोभना जैन का ब्लॉगः चीन की विस्तारवादी नीतियों से संभलकर रहना होगा

By शोभना जैन | Published: July 13, 2020 11:28 AM2020-07-13T11:28:15+5:302020-07-13T11:28:15+5:30

चीन भारत के साथ इस बात पर सहमत हुआ है कि दोनों वास्तविक नियंत्नण रेखा का पूरी तरह सम्मान करेंगे और ऐसा कोई एकतरफा कदम नहीं उठाएंगे जिससे यथास्थिति में कोई बदलाव हो. दोनों के बीच कूटनीतिक और सैन्य स्तर, विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता आगे भी जारी रहेगी.

india china tension: Have to be careful with China's expansionary policies | शोभना जैन का ब्लॉगः चीन की विस्तारवादी नीतियों से संभलकर रहना होगा

शोभना जैन का ब्लॉगः चीन की विस्तारवादी नीतियों से संभलकर रहना होगा

भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्नण रेखा पर पिछले दो माह से चले आ रहे अत्यंत चिंताजनक तनाव के बीच प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के अचानक लद्दाख दौरे के बाद तेजी से बदले घटनाक्र म के बाद दोनों देशों के बीच इस तनाव को कम करने की मंशा से हाल ही में एक अहम सहमति हुई. दोनों ने आपसी रिश्तों को बनाए रखने के लिए सीमा पर शांति बनाए रखने को जरूरी बताते हुए एलएसी पर फौरी तनाव वाले फ्लैश प्वाइंटों से अपनी-अपनी फौजें हटाने का फैसला किया.

प्रधानमंत्नी मोदी की लद्दाख यात्ना के फौरन बाद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और चीन के विदेश मंत्नी वांग यी के बीच गत रविवार को टेलीफोन पर हुई लंबी बातचीत के बाद दोनों पक्षों के बीच यह अहम सहमति हुई और फौजें पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू हुई. जिस तरह से दोनों देशों की फौजें पिछले दो माह से आमने-सामने बेहद तनावपूर्ण माहौल में डटी थीं और गत 15 जून को चीनी फौजों के साथ गलवान में हुई खूनी मुठभेड़ में 20 भारतीय जवान शहीद हुए, उस सबके परिप्रेक्ष्य में यह सहमति एक सकारात्मक घटनाक्रम मानी जा सकती है. 

चीन भारत के साथ इस बात पर सहमत हुआ है कि दोनों वास्तविक नियंत्नण रेखा का पूरी तरह सम्मान करेंगे और ऐसा कोई एकतरफा कदम नहीं उठाएंगे जिससे यथास्थिति में कोई बदलाव हो. दोनों के बीच कूटनीतिक और सैन्य स्तर, विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता आगे भी जारी रहेगी. लेकिन चीन की फितरत या यूं कहें कि भारत के साथ उसके लगातार के विश्वासघाती  रवैये और खतरनाक विस्तारवादी मंसूबों को देखते हुए उसके अगले कदम के बारे में अनिश्चय की स्थिति बनी हुई है. यानी बेहद संभल कर चलना होगा. 

जब तक भारत की मांग के अनुरूप वास्तविक नियंत्नण  रेखा पर अप्रैल की पूर्व स्थिति बहाल नहीं हो जाती है, अनिश्चय की स्थिति बनी रहेगी यानी तनाव बना रहेगा. इसी सब के चलते भारत भी इस बार चौकन्ना है और सतर्क सेना इसीलिए चीनी पीएलए - फौज पर भरोसा नहीं कर रही है क्योंकि 1962 में भी चीन गलवान से पीछे हटा था और फिर बाद में हमला कर दिया था. बहरहाल, इस शांति बहाली प्रक्रिया को लेकर दोनों देशों की तरफ से बयान जारी किए गए हैं.

 दरअसल चीन एलएसी के स्पष्ट निर्धारण की स्थिति नहीं होने का लाभ उठाकर अपनी तरफ से कुछ क्षेत्नों को अपना बताकर उन पर कब्जा करने के मंसूबे के तहत यह सब कर रहा है. हालांकि वह भी यह बखूबी जानता है कि सीमा पर शांति और स्थिरता भंग करके वह भारत के साथ सामान्य द्विपक्षीय रिश्ते कायम नहीं कर सकता है. चीन के आक्रामक सैन्य जमावड़े और खास कर 15 जून की उसकी भारतीय सैनिकों के साथ की गई बर्बरता के बाद भारत ने उससे उसी की भाषा में निपटने के लिए एलएसी पर अपनी सैन्य मौजूदगी विस्तृत करने, सीमा क्षेत्न में आधारभूत ढांचा मजबूत करने का काम जारी रखने के साथ चीन के साथ कारोबारी और डिजिटल रिश्तों पर आघात करके उसको स्पष्ट संकेत दिया है कि रिश्ते सामान्य रखने के लिए उसकी आक्रामक विस्तारवादी नीति साथ-साथ नहीं चलेगी.

चीन अपनी विस्तारवादी आक्रामक हरकतों और महाशक्ति बनने  की महत्वाकांक्षा के चलते दुनिया भर में अलग-थलग पड़ता जा रहा है और खास कर जापान व  पश्चिमी देशों की बड़ी ताकतें उसके खिलाफ एकजुट हो रही हैं, जिसका प्रतिकूल असर उसके कारोबारी रिश्तों पर भी पड़ सकता है.

विदेश नीति के अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि जब चीन पांच अप्रैल की स्थिति बहाल  करता है, सीमा पर सही मायने में तनाव तभी कम हो सकता है. चीन भारत का पड़ोसी देश है. युद्ध समस्या का समाधान नहीं है. फिलहाल सीमा पर तनाव के इस माहौल में उसके इशारे पर जिस तरह से भारत-पाक सीमा पर पाकिस्तान सैन्य जमावड़ा बढ़ा रहा है, उससे विश्वास बहाली की उसकी भाषा पर तमाम तरह के सवाल उठते हैं. चीन जिस तरह से एक कदम आगे और तीन कदम पीछे की रणनीति अपनाता रहा है, उसके मद्देनजर विश्वास बहाली के तमाम उपायों के बीच भी हमें सावधान रहना होगा.

Web Title: india china tension: Have to be careful with China's expansionary policies

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