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IMD Rainfall: बरसात में शहरों को पानी-पानी होने से बचाने की चुनौती, बीते 10 वर्षों में 25 हजार करोड़ रुपए खर्च

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: July 8, 2025 05:29 IST

IMD Rainfall Alert, Weather Update: सरकारी रिकार्ड की मानें तो  जुलाई 2024 तक, 100 शहरों ने स्मार्ट सिटी मिशन के हिस्से के रूप में 1,44,237 करोड़ की राशि की 7,188 परियोजनाएं (कुल प्रोजेक्ट का 90 प्रतिशत) पूरी कर ली हैं.

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ठळक मुद्देदुखद तो यह है कि देश के वे 100 शहर, जिन्हें स्मार्ट सिटी घोषित कर दिया गया, पहले से अधिक डूब रहे हैं.समूचे शहर के बनिस्बत शहर के एक छोटे से हिस्से में ही स्मार्ट सिटी परियोजना होने से इसके समग्र परिणाम नहीं दिखे.नदी-नालों, तालाब-जोहड़ों और उन तक पानी लाने वाले मार्ग पर अवैध कब्जे, भूमिगत सीवरों की ठीक से सफाई न होना है.

IMD Rainfall Alert, Weather Update: देश के वे शहर जो कि हमारी प्रगति के प्रतिमान हुआ करते हैं, बरसात की शुरुआत में ही दरिया बन गए. पिछले साल बजट सत्र के आखिरी दिनों में यह बात संसद में स्वीकार की गई थी कि केंद्र सरकार बारिश के पानी की निकासी के लिए शहरों पर बीते 10 वर्षों में 25 हजार करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है. इसके बावजूद हर बारिश के दौरान शहरों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं और पानी उतरने में घंटों लगते हैं. दुखद तो यह है कि देश के वे 100 शहर, जिन्हें स्मार्ट सिटी घोषित कर दिया गया, पहले से अधिक डूब रहे हैं.

यदि सरकारी रिकार्ड की मानें तो  जुलाई 2024 तक, 100 शहरों ने स्मार्ट सिटी मिशन के हिस्से के रूप में 1,44,237 करोड़ की राशि की 7,188 परियोजनाएं (कुल प्रोजेक्ट का 90 प्रतिशत) पूरी कर ली हैं. 19,926 करोड़ की राशि की शेष 830 परियोजनाएं भी पूर्ण होने के अंतिम चरण में हैं. संसद की आवास और शहरी मामलों पर स्थायी समिति ने ‘स्मार्ट शहर मिशन : एक मूल्यांकन’ पर अपनी रिपोर्ट 8 फरवरी 2024  को संसद में पेश की थी जिसमें कहा गया था कि समूचे शहर के बनिस्बत शहर के एक छोटे से हिस्से में ही स्मार्ट सिटी परियोजना होने से इसके समग्र परिणाम नहीं दिखे.

कचरा प्रबंधन, पीने के पानी की आपूर्ति और यातायात प्रबंधन ऐसी चुनौतियां हैं जिन्हें यदि पूरे शहर में एक समान लागू न किया जाए तो उनका असर दिखने से रहा. शहरों में बाढ़ का सबसे बड़ा कारण तो यहां के प्राकृतिक नदी-नालों, तालाब-जोहड़ों और उन तक पानी लाने वाले मार्ग पर अवैध कब्जे, भूमिगत सीवरों की ठीक से सफाई न होना है.

लेकिन इससे बड़ा कारण है हर शहर में हर दिन बढ़ते कूड़े का भंडार व उसके निबटान की माकूल व्यवस्था न होना. महानगरों में भूमिगत सीवर जल भराव का सबसे बड़ा कारण हैं.एक बात और. बेंगलुरु या हैदराबाद या दिल्ली में जिन इलाकों में पानी भरता है यदि वहां की कुछ दशक पुरानी जमीनी संरचना का रिकार्ड उठा कर देखें तो पाएंगे कि वहां पर कभी कोई तालाब, जोहड़ या प्राकृतिक नाला था.

अब पानी के प्राकृतिक बहाव के स्थान पर सड़क या कोलोनी रोपी गई है तो पानी भी तो धरती पर अपने हक की जमीन चाहता है? न मिलने पर वह अपने पुराने स्थानों की ओर रुख करता है. मुंबई में मीठी नदी के उथले होने और सीवर की 50 साल पुरानी व्यवस्था के जर्जर होने के कारण बाढ़ के हालात बनना सरकारें स्वीकार करती रही हैं.

बेंगलुरु में पारंपरिक तालाबों के मूल स्वरूप में अवांछित छेड़छाड़ को बाढ़ का कारक माना जाता है. शहरों में बाढ़ रोकने के लिए सबसे पहला काम तो वहां के पारंपरिक जल स्त्रोतों में पानी की आवक और निकासी के पुराने रास्तों में बन गए स्थाई निर्माणों को हटाने का करना होगा. यदि किसी पहाड़ी से पानी नीचे बह कर आ रहा है तो उसका संकलन किसी तालाब में ही होगा.

शहरों को डूबने से बचाना है तो कूड़ा कम करने, पॉलीथिन पर पाबंदी, सीवरों की नियमित सफाई जरूरी है.  शहरों में अधिक से अधिक खाली जगह यानी कच्ची जमीन हो, ढेर सारे  पेड़ हों. जलभराव वाली जगहों पर भूजल रिचार्ज के प्रयास हों. प्राकृतिक जलाशयों, नदियों को उनके मूल स्वरूप में रखने सहित उसके जलग्रहण क्षेत्र में किसी भी किस्म का निर्माण कार्य न हो.

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