गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए चाहिए जन भाषा

By गिरीश्वर मिश्र | Published: March 9, 2020 11:56 AM2020-03-09T11:56:21+5:302020-03-09T11:56:21+5:30

दुर्भाग्य से वैज्ञानिक ज्ञान प्राय: अंग्रेजी में प्रकाशित होकर उपलब्ध होता है जो गैर अंग्रेजी भाषी अधिकांश भारतीयों के लिए सुगमता से ग्राह्य नहीं हो पाता. साथ ही देशज ज्ञान की उपेक्षा भी दुर्भाग्यपूर्ण है. उसे अर्जित करने के लिए संस्कृत और लोक भाषाओं की ओर ध्यान देना होगा

Girishwar Mishra blog: Public language is needed for scientific approach | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए चाहिए जन भाषा

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

धरती पर मनुष्य की विकास यात्ना कब शुरू हुई, यह अनुमान का विषय है. तमाम कड़ियों को जोड़ते हुए अब यह माना जाता है कि सुदूर अतीत में जब मनुष्य ने घुमंतू जीवन को छोड़कर एक जगह टिक कर कृषि कर्म शुरू किया तो प्रकृति की नैसर्गिक सदस्यता को छोड़ कर अपने पर्यावरण को बदलना शुरू किया. आगे चल कर वैज्ञानिक आविष्कारों के साथ औद्योगिक क्रांति से जो तीव्र बदलाव का दौर चला वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है.

तकनीकी विकास जल, थल और नभ हर कहीं असर दिखा रहा है. अब तो धरती से दूर चंद्रमा और मंगल जैसे दूसरे ग्रहों की ओर भी मनुष्य चहलकदमी कर रहा है. आवागमन और संचार की अप्रत्याशित रूप से तीव्र गति देश और काल दोनों के पैमानों और अनुभवों को बदल रही है. हमारा भौतिक और जैविक परिवेश भी बदल रहा है.

चिकित्सा की दुनिया में नई तकनीकी से शरीर के अंगों का प्रत्यारोपण, क्लोनिंग व शल्यक्रिया द्वारा उपचार में आशातीत सफलता मिल रही है.  इसी तरह विभिन्न तरह के अनाजों और वनस्पतियों को लेकर भी नए प्रयोग हो रहे हैं. पशुओं की नस्लें भी इच्छानुसार बदली जा रही हैं.

रेगिस्तान, पहाड़, पठार, समुद्र और मैदान हर इलाके में अपनी पसंद और सुविधा के अनुसार स्थापत्य रचते मनुष्य की दिग्विजय का कोई ओर-छोर नहीं दिखता. इन परिवर्तनों के चलते निजी और सामाजिक जीवन में भी बदलाव आ रहे हैं जो परिवार, व्यवसाय और शिक्षा की संस्थाओं की संरचना और प्रक्रिया में दिख रहे हैं. विभिन्न क्षेत्नों में ज्ञान का विस्फोट जिस गति से  हो रहा है वह आश्चर्यचकित कर देने वाला है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी के परिणाम हमारे विश्व और अनुभव जगत के खाके को बदल रहे हैं. यह अलग बात है कि यह बदलाव जीवन के लिए पूरी तरह हितकर नहीं है.

मानवीय हस्तक्षेप के चलते प्रकृति से दूर होते हुए हमने कृत्रिम पदार्थो से भरी अपनी दुनिया बनाई. यह दुनिया वायुमंडल के साथ ही मानव-मंडल के रूप में भी उपस्थित है और हम सब उसी में जी रहे हैं. मनुष्य प्रकृति को बदलने, नियंत्रित करने सहित उसकी शक्तियों को अपने उद्देश्य के लिए निरंतर परिवर्धित परिष्कृत करता रहा है. यही  विकास की कुंजी बन गई. पर अनियंत्रित होता विकास खतरनाक ढंग से जीवन के ही विरु द्ध होता जा रहा है.

मानवीय सृष्टि की जटिलता हमसे गंभीर दायित्व और अतिरिक्त तैयारी की अपेक्षा करती है. खास तौर पर प्रकृति के साथ संतुलन मुश्किल हो रहा है. इसमें सफलता पाने और जीवन की गुणवत्ता सुरक्षित करने के लिए सुविचारित विवेकपूर्ण वैज्ञानिक नजरिया जरूरी है.

निजी और सामाजिक जीवन में यह कितना महत्वपूर्ण है यह बताने की जरूरत नहीं है. स्वास्थ्य, स्वच्छता, अच्छी खेती-किसानी, दैनंदिन जीवन की तकनीकी-प्रधान सुविधाओं के उपयोग व सामाजिक भागीदारी जैसे क्षेत्नों में वैज्ञानिक आधार पर काम करने के लिए जिस तरह की चेतना आम जनों में होनी चाहिए वह अभी तक नहीं आ सकी है.

न सिर्फ दूर-दराज के गांवों बल्कि शहरों में भी लोग आज भी अज्ञान और अंधविश्वासों की गिरफ्त में आते रहते हैं. साथ ही आज के पर्यावरण में प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के असर में जिस तरह जीवाणुओं और विषाणुओं का प्रसार हो रहा है उससे निपटने, जीवन रक्षा तथा स्वस्थ रहने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण की शिक्षा के प्रभावी उपाय आवश्यक हैं.

दुर्भाग्य से वैज्ञानिक ज्ञान प्राय: अंग्रेजी में प्रकाशित होकर उपलब्ध होता है जो गैर अंग्रेजी भाषी अधिकांश भारतीयों के लिए सुगमता से ग्राह्य नहीं हो पाता. साथ ही देशज ज्ञान की उपेक्षा भी दुर्भाग्यपूर्ण है. उसे अर्जित करने के लिए संस्कृत और लोक भाषाओं की ओर ध्यान देना होगा. इक्कीसवीं सदी में, जिसे ज्ञान युग  भी कहा जाता है, ज्ञान की इस बढ़ती खाई को पाटने लिए जन-भाषा का अधिकाधिक उपयोग जरूरी है.

Web Title: Girishwar Mishra blog: Public language is needed for scientific approach

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