पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉगः क्या किसानों की खुदकुशी रोक पाएगा बजट?
By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Published: July 5, 2019 06:10 AM2019-07-05T06:10:35+5:302019-07-05T06:10:35+5:30
भारत की इकोनॉमी इन सबसे बेहतर है. लेकिन खुदकुशी करते किसानों की तादाद भी भारत में नंबर एक है. सिर्फ महाराष्ट्र में हर तीसरे घंटे एक किसान खुदकुशी कर लेता है. चार साल में 12000 किसानों ने खुदकुशी की. देश में हर दूसरे घंटे एक किसान की खुदकुशी होती है.
वाकई ये सवाल तो है कि जब देश की सियासत में किसान-किसान की आवाज सुनाई देती है, सत्ता परिवर्तन से लेकर सत्ता बचाने के लिए किसान राग देश में गाया जा रहा हो, तब कोई पूछ बैठे कि क्या 2019 का आम बजट ये वादा कर पाएगा कि आने वाले वक्त में किसान खुदकुशी नहीं करेगा? ये ऐसा सवाल है जिसे बजट के दायरे में देखा जाए या न देखा जाए अर्थशास्त्री इसे लेकर बहस कर सकते हैं.
एक तरफ जब सरकार 2022-23 तक देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का वादा कर रही हो तब उसका आधार क्या होगा, कैसे होगा ये तो कोई भी पूछ सकता है. दुनिया में भारत खेती पर टिकी जनसंख्या को लेकर नंबर एक पर है. विश्व बैंक की एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 44 फीसदी जनसंख्या खेती पर टिकी है. जबकि अमेरिका-ब्रिटेन की सिर्फ एक फीसदी आबादी खेती से जुड़ी है और एशिया में पाकिस्तान के 42, बांग्लादेश के 40 और श्रीलंका के 26 फीसदी लोग खेती से जुड़े हैं.
भारत की इकोनॉमी इन सबसे बेहतर है. लेकिन खुदकुशी करते किसानों की तादाद भी भारत में नंबर एक है. सिर्फ महाराष्ट्र में हर तीसरे घंटे एक किसान खुदकुशी कर लेता है. चार साल में 12000 किसानों ने खुदकुशी की. देश में हर दूसरे घंटे एक किसान की खुदकुशी होती है. देश का अनूठा सच यह भी है कि भारत की जीडीपी में 48 प्रतिशत योगदान उसी ग्रामीण भारत का है जहां 75 प्रतिशत लोग खेती से जुड़े हैं.
तो फिर बजट से उम्मीद क्या की जाए. 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी का मतलब है उत्पादन की विकास दर 14.6 फीसदी हो जाए. कृषि विकास दर 10.1 फीसदी हो जाए. सर्विस क्षेत्र की विकास दर 13.7 प्रतिशत हो जाए और जीडीपी की विकास दर 11.7 फीसदी हो. पर ये कैसे होगा कोई नहीं बताता. हालांकि किसान की आय 2022 तक दुगुनी हो जाएगी इसका राजनीतिक ऐलान पांच बरस पहले ही किया जा चुका है. सच तो ये भी है किसान की फसल उगाने में जितनी रकम खर्च होती है, देश में समर्थन मूल्य उससे भी कम रहता है. मसलन हरियाणा को ही अगर आधार बना लें तो वहां प्रति क्विंटल गेहूं उगाने में किसान का खर्च होता है 2047 रुपया लेकिन एमएसपी है 1840 रु. प्रति क्विंटल. एक क्विंटल कॉटन उगाने में खर्च आता है 6280 रु. लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य है 5450 रुपए.
देश में 5 करोड़ किसान बैंक से कर्ज लेने पहुंचते हैं लेकिन कर्ज की रकम दस हजार पार नहीं करती कि उनके घर से बकरी-गाय तक उठाने बैंककर्मी पहुंच जाते हैं. यहां तक कि जमीन पर भी बैंक कब्जा कर लेते हैं. बैंक के बाहर किसानों की तस्वीर भी चस्पा कर दी जाती है. इसी दौर में कोई कार्पोरेट-उद्योगपति या व्यापारी बैंक से कर्ज लेकर न लौटाने का खुला जिक्र कर न सिर्फ बच जाता है बल्कि सरकार ही उसकी कर्ज ली हुई रकम अपने कंधों पर ढोने के लिए तैयार हो जाती है.
आलम यह है कि बैंकों से कजर्लेकर न लौटाने वालों की तादाद बरस दर बरस बढ़ रही है. 2014-15 में 5349 लोग थे तो 2016-17 में बढ़कर 6575 हो गए और यह संख्या बढ़ते बढ़ते 2018-19 में 8582 हो चुकी है. और तो और मुद्रा लोन के तहत भी एनपीए बीते एक बरस में 9769 करोड़ से बढ़कर 16,480 करोड़ हो गया. तो क्या बजट सिर्फ रुपए के हेर-फेर का खेल होगा जिसमें कहां से रुपया आएगा और कहां जाएगा इसको लेकर ही बजट पेश कर दिया जाएगा. अमेरिका की कतार में खड़े होने की चाह लिए भारत यह भी नहीं देख पा रहा है कि जिस अमेरिका में सिर्फ एक फीसदी लोग कृषि से जुड़े हैं उनके लिए भी 867 बिलियन डॉलर का विधेयक लाया गया, जिसमें पोषण से लेकर बीमा व जमीन संरक्षण से लेकर सामुदायिक समर्थन का जिक्र है.
ऐसा भी नहीं है कि सरकार की समझ अब किसानी छोड़ टेक्नोलॉजी पर जा टिकी हो. सच तो ये है कि टॉप 15 इंटरनेट कंपनियां 30 लाख करोड़ का कारोबार कर रही हैं और उनसे टैक्स वसूलने की हिम्मत सरकार कर नहीं पा रही है. अगले दो बरस में ई-कॉमर्स का बजट भारत में 200 बिलियन डॉलर हो जाएगा लेकिन बजट बेफिक्र रहेगा और ईस्ट इंडिया की गुलामी से उबर चुका भारत अब इंटरनेट कंपनियों की गुलामी के लिए तैयार है. और आखिरी सच तो देश का यही है कि जिस महाराष्ट्र में बारिश ने कहर बरपा दिया, मुंबई पानी-पानी हो गई, फ्लाइट रुक गई, रेलगाड़ी थम गई, सत्ता का गलियारा बारिश में तैरता दिखा, बिजली के करंट और दीवार गिरने से 50 से ज्यादा मौत हो गई, उस मुंबई के मेयर यह कहने से नहीं चूकते कि मुंबई में पीने का पानी खत्म हो चला है. मराठवाड़ा-विदर्भ में भी पानी नहीं है.
तो फिर किसानों की खुदकुशी का जिक्र किए बगैर कैसे किसानों का हित साधने वाला बजट आने वाला है, इसका इंतजार आप भी कीजिए..हम भी करते हैं.