फहीम खान का ब्लॉग: सिर्फ वाह-वाही लूटने के लिए ‘खाकी' की छवि दांव पर नहीं लगा सकते
By फहीम ख़ान | Published: October 11, 2020 09:30 PM2020-10-11T21:30:19+5:302020-10-11T21:37:24+5:30
नागपुर में पुलिसवालों ने ही एक वारदात में पकड़े गए नाबालिग आरोपियों की अधनंगा कर परेड निकाली. इस परेड की जानकारी सभी को मिली लेकिन किसी ने इस पर आपत्ति नहीं जताई.
‘सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय' यानी अच्छे लोगों की रक्षा और दुष्ट लोगों का विनाश करने का स्लोगन लेकर काम करने वाली महाराष्ट्र पुलिस की छवि हाल की एक घटना से धूमिल हुई.
राज्य की उपराजधानी के महानगर नागपुर में पुलिसवालों ने ही एक वारदात में पकड़े गए नाबालिग आरोपियों की अधनंगा कर परेड निकाली. इस परेड की जानकारी सभी को मिली लेकिन किसी ने इस पर आपत्ति नहीं जताई.
शायद सभी को लगा कि अपराधियों के साथ अब यही होना चाहिए. लेकिन इस परेड का एक वीडियो सोशल मीडिया में ऐसा वायरल हुआ कि उसी दिन शाम तक नागपुर के पुलिस आयुक्त अमितेश कुमार ने अपने एसीपी को मामले की जांच सौंप दी.
कुछ ही दिनों में एसीपी ने अपनी जांच रिपोर्ट सीपी को सौंपी तो इस मामले में थानेदार खुशाल तिजारे, एपीआई धुमाल सहित अन्य सात पुलिसकर्मियों पर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दे दिए गए.
एफआईआर के आदेश जारी होते ही कुछ लोग ‘राष्ट्रप्रथम' के पोस्टर हाथों में लेकर जरीपटका पुलिस थाने के सामने पुलिसवालों के समर्थन में आगे आने लगे. दो दिनों तक ये समर्थन मुहिम चलती रही. सवाल ये है कि क्या आरोपी होने की वजह से नाबालिगों को अधनंगा कर घुमाना पुलिस का सही कदम था?
जो लोग समर्थन करते हुए ये कह रहे है कि इस तरह के कदम से समाज में पुलिस की ऐसी छवि उभरकर आगे आएगी कि भविष्य में अपराधी अपराध करने से भी कतराते नजर आएंगे.
क्या वे लोग इस बात की गारंटी दे सकते है? असल में नाबालिगों को अधनंगा कर घुमाने की हरकत इस लिए समर्थनीय नहीं हो सकती है क्योंकि यदि यही एक तरीका पुलिस के पास अपराधों को रोकने का बच गया है तो फिर इस तरह के तरीके अब से पहले कितने खुंखार अपराधियों के साथ अपनाए गए है?
इसका भी जवाब उन्हें देना होगा. केवल नाबालिग होने की वजह से उनपर रोब झाड़ देने से कुछ लोगों की वाह वाही जरूर लुटी जा सकती है लेकिन इससे पुलिस की छवि कभी सुधर नहीं सकती.
पुलिसवाले जिस ‘खाकी' को पहनकर निकलते है, जबतक उन्हें अपनी इस खाकी की इज्जत करना नहीं आएगा, आप उनकी छवि समाज में सुधरने की उम्मीद नहीं कर सकते है.
असल में नागपुर पुलिस की दोहरी नीति की आलोचना होनी चाहिए. क्योंकि एक ओर तो आप नाबालिगों की अधनंगा कर परेड कराते हो और दूसरी ओर हफ्ता वसूली करने वाले, अपराधियों को बचाने के लिए दिलों जान से जुटे अपने ही लोगों पर रहमदिल बन जाते हो.
नागपुर के पुलिस आयुक्त अमितेश कुमार की इस मामले में तारीफ इस लिए की जानी चाहिए क्योंकि उन्होंने अपने स्लोगन ‘सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय' की इज्जत बरकरार रखी है. किसी ने इस मामले की शिकायत उनसे नहीं की थी.
कोई संगठन इसके खिलाफ में आगे नहीं आया था. लेकिन उन्होंने ‘खाकी' की छवि को धूमिल होने से बचाने के लिए खुद ही इसकी जांच एसीपी को सौंप दी. आज अगर उनके सात कर्मियों पर कार्रवाई होती भी है तो भी ये ‘खाकी' के बेहतरी के लिए ही होगा.
आप ये कहकर अपनी गलत हरकतों का समर्थन कतई नहीं कर सकते है कि अपराधी जब सारे नियम, कानूनों को दरकिनार कर सकते है तो हम क्यों नहीं? आप अपराधी नहीं हो. आप कानून के रक्षक हो. कानून का पालन कराना आपकी पहली जिम्मेदारी है.
आप इस समाज को अनुशासित करने की डयुटी पर तैनात हो. आपसे कानून के विरोधी हरकतों की कतर्ई उम्मीद नहीं की जा सकती है. भविष्य में अपराधियों को सबक सिखाने के लिए आप इस तरह की कोई हरकत ना ही करें तो ज्यादा बेहतर होगा.
सबक सिखाने के पुलिस के अपने तरीके होते है, हम जानते है कि उसका भी इस्तेमाल समय समय पर कर लिया जाता है. फिर इस तरह के प्रदर्शन की जरूरत ही क्या है? समाज के चंद लोगों की वाह वाही लुटने क लिए आप ‘खाकी' की इज्जत से नहीं खेल सकते.
अब बात उन लोगों की जो भावनिक आधार पर सीधे हाथों में पोस्टर लेकर समर्थन में उतर आए. आप किसी पुलिसवाले के व्यक्तिगत समर्थक हो सकते है. ये जायज भी है. लेकिन जब बात ‘खाकी' की छवि की होगी तो आप इस तरह की किसी भी हरकत का समर्थन नहीं कर सकते है.
अपराधियों को ही मानवाधिकार होता है क्या? इस तरह के बेकार के सवाल तो पूछे ही नहीं. क्योंकि मानवाधिकार सभी का होता है, लेकिन पुलिस एक व्यक्ति नहीं बल्कि ऐसा संस्थान है जो कानून से बंधा है और उसे बंधा रहना ही होगा. क्योंकि पुलिस का डर लोगों में हो न हो फर्क नहीं पड़ता, फर्क इस बात से जरूर पड़ता है कि कानून का खौफ कितना है. आप कानून के रक्षक थे, है और आपको सदा ऐसे ही बने रहना है. वरना अपराधियों में और आपमें फर्क ही क्या रह जाएगा?