ब्लॉग: वन्यजीव संरक्षण को लेकर अतिरिक्त सतर्कता जरूरी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 8, 2024 10:20 AM2024-11-08T10:20:40+5:302024-11-08T10:21:33+5:30
वन विभाग की लापरवाही के कारण देश के अन्य टाइगर रिजर्व पर भी इसका असर पड़ सकता है.
पहले मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से दस हाथियों की मौत की खबर आई और अब राजस्थान के रणथंबौर नेशनल पार्क से बाघों के रहस्यमयी ढंग से गायब होने के समाचार आ रहे हैं. मध्य प्रदेश सरकार ने सक्रियता दिखाते हुए हाथियों की मौत के बाद उनके बचाव और पुनर्वास के काम के बेहतर प्रबंधन के लिए एलीफेंट एडवाइजरी कमेटी का गठन कर दिया है. सूबे के वन अधिकारियों को इस जीव की अधिक आबादी वाले राज्यों में प्रशिक्षण के लिए भी भेजा जाएगा.
वहीं बाघों की रहस्यमयी गुमशुदगी को लेकर भी वन विभाग ने एक तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया है. अभी तक की जांच में सामने आया है कि हाथियों ने बड़ी मात्रा में खराब कोदो खा लिया था. वहीं प्राकृतिक वातावरण के लिए दुनियाभर में मशहूर रणथंभौर नेशनल पार्क से बाघों के गायब होने पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये बाघ शिकारियों का शिकार हो गए हैं, या फिर इसमें रणथंभौर के कर्मचारियों की लापरवाही शामिल है?
रणथंभौर देश के 55 टाइगर रिजर्व में से एक ऐसा स्थान है, जिसे बाघों के लिए सबसे प्राकृतिक स्थल माना जाता है. ऐसे में यहां 25 बाघों का गायब होना बेहद चिंता का विषय है. पहले भी रणथंभौर में बाघों की मौतें होती रही हैं, जिनमें से कई मामलों में वन विभाग बाघों के शवों को खोज नहीं पाया.
इससे विभाग की निगरानी व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़े हो गए हैं. हाथियों और बाघों सहित दुनिया की कुछ सबसे प्रतिष्ठित प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में है. इसका प्रमुख कारण है मानव-वन्यजीव संघर्ष. इंसानों और वन्यजीवों के संघर्ष में संपत्ति, आजीविका और यहां तक कि जीवन का नुकसान भी होता है. इंसान अपनी सुरक्षा को लेकर अतिरिक्त सतर्क हो जाता है और प्रतिशोध की भावना के कारण भी वन्य जीवों की हत्या करने लगता है.
यही प्रतिशोध प्रजातियों को विलुप्ति की कगार पर खड़ा कर रहा है. जैसे-जैसे मानव आबादी और स्थान की मांग बढ़ती जा रही है, लोगों और वन्यजीवों के बीच संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है. ईंधन, चारा, चराई और अन्य वन उत्पादों के लिए ग्रामीणों की जंगलों पर निर्भरता न केवल कुछ क्षेत्रों में वन और आवास क्षरण का कारण बनती है, बल्कि वन कर्मचारियों और स्थानीय समुदायों के बीच तनाव भी पैदा करती है.
मानव-वन्यजीव संबंधों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना ही होगा. मामला केवल रणथंभौर या बांधवगढ़ तक सीमित नहीं है, बल्कि देशभर में वन्यजीव संरक्षण औैर हमारी कार्यप्रणाली पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है. वन विभाग की लापरवाही के कारण देश के अन्य टाइगर रिजर्व पर भी इसका असर पड़ सकता है.
यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यह संकट और गहरा सकता है. वन्यजीव संरक्षण के मामले में देश भर में अतिरिक्त सतर्कता बरतनी जरूरी है.