ब्लॉग: दुनियाभर में चुनाव और भारत के लिए संकेत

By राजेश बादल | Published: January 3, 2024 04:00 PM2024-01-03T16:00:25+5:302024-01-03T16:00:32+5:30

यदि ऐसा हुआ तो संभवत: लेबर पार्टी भारत को लेकर बहुत सहज नहीं रहेगी। यूं भी हिंदुस्तान के आकाश पर ब्रिटेन को लेकर अतीत के प्रेत हमेशा मंडराते रहते हैं।

Elections around the world and signals for India | ब्लॉग: दुनियाभर में चुनाव और भारत के लिए संकेत

ब्लॉग: दुनियाभर में चुनाव और भारत के लिए संकेत

नया साल संसार की आधी से अधिक आबादी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। लगभग सत्तर देशों में इस बरस निर्णायक निर्वाचन होंगे। इसके बाद नई सरकारें या संसदें अपनी विदेश नीति का नया चेहरा प्रस्तुत करने पर मजबूर होंगी। वर्तमान परिस्थितियों में लगभग प्रत्येक देश अपनी विदेश नीति की धुरी बदलने के लिए बाध्य है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मद्देनजर नई विदेश नीतियों का रूप समूचे विश्व को प्रभावित करेगा। इन नीतियों में सैद्धांतिक और नैतिक आधार नदारद सा होगा।

अलबत्ता आर्थिक आधार प्रधान होगा। आम चुनावों के बाद भारत के लिए अपनी नीतियों की समीक्षा भी आवश्यक हो जाएगी, क्योंकि जिन देशों में चुनाव होंगे, उनमें एशिया के भी कई देश शामिल हैं।भारत में इस साल लोकसभा चुनाव होने हैं। इसके अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, भूटान और रूस जैसे पड़ोसी देशों में भी निर्वाचन संपन्न होंगे। इन राष्ट्रों के आपसी संबंधों में यह साल बदलाव का संकेत दे रहा है। इसके अलावा भारतीय नजरिये से देखें तो ब्रिटेन, रूस और अमेरिका के चुनाव भी खास हैं, जिनसे भारतीय हितों पर असर पड़ता है।

हालांकि पाकिस्तान में तो चुनाव के बाद भी भारत के साथ संबंधों में कोई खास सुधार की संभावना नहीं है क्योंकि वहां चुनाव तो फौज के दिल बहलाने का खिलौना मात्र है। सरकार उसी दल की बनेगी, जिसे सेना चाहेगी और जो सरकार बनेगी, उसे फौजी अधिकारियों के इशारे पर नाचना पड़ेगा। इतना तो पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि इस बार वहां सत्ता किसी भी पार्टी को मिले, अवाम का कोई खास भला नहीं होने वाला है। वहां का ताजा घटनाक्रम इस मायने में दिलचस्प है।

जिस इमरान खान को पिछले चुनाव में सेना ने बड़े उत्साह से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाया था, आज वे जेल में हैं। आरोप है कि पद पर रहते हुए उन्हें जो उपहार मिले, उन्हें सरकारी खजाने से उन्होंने नियमानुसार खरीद लिया। बाद में उन उपहारों को महंगे दामों पर बेच दिया। जाहिर सी बात है कि जब कोई इंसान एक वस्तु खरीद लेता है तो उसका वह मालिक हो जाता है। बाद में वह चाहे तो ज्यादा दाम लेकर बेच सकता है।

सस्ते में खरीदने के बाद अवसर मिलते ही ऊंची कीमत पर बेचना कोई अपराध नहीं है लेकिन सेना की भृकुटि तनी थी इसलिए इमरान तीन साल के लिए जेल में हैं और पांच साल के लिए चुनाव के अयोग्य ठहराए गए हैं। निर्णय को इमरान ने चुनौती दी है। चूंकि फैसला नहीं आया है, इसलिए तब तक तो वे चुनाव लड़ने के अधिकारी हैं पर विडंबना यह कि उन्होंने दो निर्वाचन क्षेत्रों से नामांकन भरा तो चुनाव आयोग ने नैतिक आधार पर निरस्त कर दिया।

विश्व में नैतिक आधार पर चुनाव नामांकन पत्र खारिज करने की संभवतया यह पहली घटना है. दूसरी तरफ जो पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ फौज के चहेते होने के कारण सत्ता में आए थे, फौज के तेवर बदलते ही सींखचों के भीतर पहुंचा दिए गए। यही नहीं, उन्हें जिंदगी भर चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया।

क्या ही दिलचस्प नजारा है कि चुनाव के लिए अयोग्य ठहराए जाने के बाद चुनाव आयोग ने उनका नामांकन दो स्थानों से स्वीकार कर लिया, क्योंकि अब सेना उन पर मेहरबान है। जो सेना पूर्व प्रधानमंत्री भुट्टो को सरेआम फांसी पर लटका दे और उसका कवरेज करने के लिए दुनिया भर के पत्रकारों को आमंत्रित करे तो उसकी जम्हूरियत का ऊपर वाला ही मालिक है।

इस प्रसंग का मकसद यह स्थापित करना है कि चुनाव के बाद भी पाकिस्तान और हिंदुस्तान के बीच रिश्ते सामान्य होने की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती और अब तक के आम चुनाव यह निष्कर्ष निकलने के लिए काफी हैं कि पाकिस्तान लोकतंत्र के दृष्टिकोण से शापित मुल्क है।

दूसरा प्रमुख चुनाव अमेरिका का है। उसके नतीजे यकीनन भारत को विदेश नीति पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य करेंगे। डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार और वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन और रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प आमने-सामने हो सकते हैं। ट्रम्प के कार्यकाल में भारतीय विदेश नीति का पलड़ा अमेरिका की ओर झुका हुआ था। इससे किरकिरी हुई, जब बाइडेन सत्ता में आए। उनका पूरा कार्यकाल बेरुखी भरा रहा।

भारतीय कश्मीर नीति के वे स्थाई आलोचक हैं। उनके साथ भारतीय मूल की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भी ऐसी ही आलोचक रही हैं। पर, इन दिनों जो बाइडेन के साथ उनका सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। यदि डोनाल्ड ट्रम्प जो बाइडेन को अगली बार सत्ता में आने से रोकते हैं तो भारत के लिए चुनौती होगी कि वह संबंधों में संतुलन किस तरह बनाए रखेगा।

पाकिस्तान इन दिनों अमेरिका की प्राथमिकता सूची में है। बाइडेन भारत के मुकाबले पाकिस्तान को तरजीह दे रहे हैं। वैसे तो यूरोप के अनेक देशों में चुनाव होने हैं, मगर मैं ब्रिटेन के चुनाव का जिक्र करना चाहूंगा। वहां कंजर्वेटिव पार्टी चौदह साल से सरकार चला रही है. भारतीय मूल के ऋषि सुनक ने जब प्रधानमंत्री पद संभाला तो आर्थिक चुनौतियां विकराल आकार में थीं। उनमें कोई बहुत चमत्कारिक सफलता तो नहीं मिली है।

लेकिन सुनक का भारत प्रेम वहां के मतदाताओं को रास नहीं आ रहा है इसलिए नाकामियों के अलावा ऋषि का भारतीय रिश्ता भी उनकी पार्टी की कामयाबी को कठिन बना रहा है। ऐसे में लेबर पार्टी के सत्ता में आने की प्रबल संभावना है। यदि ऐसा हुआ तो संभवत: लेबर पार्टी भारत को लेकर बहुत सहज नहीं रहेगी। यूं भी हिंदुस्तान के आकाश पर ब्रिटेन को लेकर अतीत के प्रेत हमेशा मंडराते रहते हैं। आने वाले दिनों में ब्रिटेन और भारत के संबंध कठिन दौर से गुजरेंगे, इसमें दो राय नहीं है। 

Web Title: Elections around the world and signals for India

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे