डॉ. विशाला शर्मा का ब्लॉग: रेणु की कलम से निकली निश्छल प्रेम कथा
By डॉ. विशाला शर्मा | Published: March 4, 2021 02:07 PM2021-03-04T14:07:59+5:302021-03-04T14:07:59+5:30
फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म 4 मार्च, 1921 को हुआ था. ऐसे में ये उनकी जन्म शताब्दी का साल है।

फणीश्वरनाथ रेणु- हिंदी कथा साहित्य के अमूल्य हस्ताक्षर (फाइल फोटो)
फणीश्वरनाथ रेणु हिंदी कथा साहित्य के अमूल्य हस्ताक्षर हैं. प्रेमचंद और रेणु के साहित्य की जमीन तो एक ही है लेकिन उसके रंग अलग हैं. इसी क्रम में रेणु की तीसरी कसम अपने कलेवर में एक विशिष्ट प्रदेश के गंध को लेकर उपस्थित होती है. बाद में ‘मारे गए गुलफाम उर्फ तीसरी कसम’ पर फिल्म बनी.
‘तीसरी कसम’ वह फिल्म है जिसने हिंदी साहित्य की एक अत्यंत मार्मिक कृति को सैल्युलाइड पर पूरी सार्थकता से उतारा. बैलगाड़ी से अपनी आजीविका चलाने वाला देहाती हीरामन तीन प्रतिज्ञाएं लेता है.
नेपाल की सीमा पर चोर बाजारी का माल अपनी गाड़ी में ढोने के कारण पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर अपने बैलों को छुड़ा कर उसे भागना पड़ता है और कसम खाता है कि अब वह अपनी गाड़ी पर चोरबाजारी का सामान कभी नहीं लादेगा.
दूसरी दुर्घटना गाड़ी में लंबे बांस ढोते समय हो जाती है और दूसरी कसम खाता है कि अब कभी अपनी गाड़ी में बांस नहीं लादेगा. आगे ऐसी परिस्थितियों का निर्माण होता है कि वह तीसरी बार कसम खाने के लिए बाध्य होता है.
हीरामन ने सर्कस कंपनी के बाघों को अपनी गाड़ी में ढोकर जो सौ रुपए कमाए थे उससे वह नई टप्पर की गाड़ी बनवा लेता है. बात-बात पर लजाने, शर्माने वाला एक गंवई, गाड़ीवान अब सवारी ढोने का कार्य करता है. आज उसकी गाड़ी में नौटंकी कंपनी में काम करने वाली हीराबाई है.
यहां हीरामन रूढ़िवादी, पारंपरिक मूल्यों के साथ एक बैलगाड़ी चालक है. बिहार के एक छोटे से गांव का देहाती, एक निश्छल स्वभाव का व्यक्ति, तीस कोस का सफर है और इस सफर में हीरामन और हीराबाई के बीच अनाम रिश्ता बन जाता है. उसे तो हीराबाई को मेले तक पहुंचाना है. वह नर्तकी है और दूसरी तरफ हीरामन के वह संस्कार हैं जहां नाचनेवाली को लोग वेश्या के रूप में देखते हैं.
हीरामन का मन अपनी संस्कृति में रचा-बसा है. किंतु फिर भी हीरामन प्रभावित है हीराबाई की सादगी पर, उसके निश्छल स्वभाव पर, उसकी सहजता पर. हीराबाई वस्तुस्थिति को समझने लगी है.
दोनों का एक-दूसरे के प्रति लगाव बढ़ता जा रहा है. किंतु हीराबाई मानती है कि वह हीरामन के निश्छल प्रेम की हकदार नहीं है. वह उसे धोखा नहीं देना चाहती. उसके मन में अंतर्द्वद्व मच जाता है और वह वापस जाने का निर्णय ले लेती है. गांव के एक भोले-भाले नौजवान का जीवन सिर्फ तीन कसमें खा लेने पर सरल हो जाता है.