दिनकर कुमार
नागरिकता संशोधन कानून के चलते अपनी भाषायी और सांस्कृतिक पहचान को लेकर आशंकित असमिया जनता तीव्र आंदोलन कर रही है. लोगों के आक्रोश को शांत करने के लिए असम की सर्बानंद सोनोवाल सरकार ने असम के मूल निवासियों के लिए भूमि अधिकार नीति सहित कई लोक लुभावन नीतियों की घोषणा की है.
विधानसभा के अगले सत्र में राज्य सरकार दो नए कानून लाने वाली है. पहले कानून के जरिए मूल निवासियों के भूमि अधिकार को सुरक्षित किया जाएगा. कैबिनेट में इस कानून पर चर्चा हो चुकी है. जैसे ही यह कानून प्रभावी होगा, असम में मूल निवासी ही एक दूसरे को भूमि बेच पाएंगे. बाहरी व्यक्तिको भूमि बेचने पर रोक लग जाएगी. दूसरे कानून के जरिए असम के वैष्णव मठ 'सत्र' सहित अन्य ऐतिहासिक धरोहर वाले स्थलों को अतिक्रमण से बचाने की व्यवस्था की जाएगी.
एक तरफ लोगों के गुस्से को शांत करने के लिए भूमि नीति की घोषणा कर दी है, दूसरी तरफ असम में अभी भी 'मूल निवासी' की परिभाषा निश्चित नहीं हो पाई है. असम समझौते के प्रावधान के तहत गठित एक कमेटी गठित कर परिभाषा तय करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
सरकार ने अपने स्तर पर भी एक परिभाषा को तैयार किया है, जिसके अनुसार मूल निवासी अपनी भूमि किसी मूल निवासी को ही बेच सकता है. 1941 के बाद आए किसी घुसपैठिए को भूमि नहीं बेची जा सकती.
मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा है कि अनुच्छेद 6 के कार्यान्वयन के लिए गठित एक उच्च स्तरीय कमेटी मूल निवासी की परिभाषा तय करने के लिए हर वर्ग के लोगों से सलाह कर रही है. अधिकतर लोग 1951 को कट आॅफ डेट मानने का सुझाव दे रहे हैं. अभी तक कुछ जनजातीय इलाकों में भूमि सुरक्षा का कानून लागू है. जैसे ही मूल निवासी की परिभाषा निर्धारित हो जाएगी, समूचे असम में यह नीति लागू हो जाएगी.
नई भूमि नीति, 2019 को कैबिनेट की तरफ से ग्रहण किए जाने के कई महीने के बाद इसकी घोषणा की गई है. असम में आजादी के बाद 1958, 1968, 1972 और 1989 में भूमि नीतियों की घोषणा हो चुकी है. 2019 की भूमि नीति की तरह 1989 की भूमि नीति में भी भूमिहीन मूल नागरिकों को भूमि देने की बात कही गई थी, लेकिन मूल निवासियों को परिभाषित नहीं किया गया था.