सिर्फ एक स्लॉट का सवाल है रे बाबा, पीयूष पांडे का ब्लॉग
By पीयूष पाण्डेय | Published: June 5, 2021 07:25 PM2021-06-05T19:25:42+5:302021-06-05T19:26:52+5:30
गाजियाबाद से करीब 230 किलोमीटर दूर फिरोजाबाद के पास नगलीसिंघा गांव के एक सरकारी क्लीनिक में स्लॉट खोज निकाला.
आज खुश तो बहुत होगे तुम, हां! जब देश में पहली बार लोग सैनिटाइजर और पीपीई किट के लिए इधर-उधर भटक रहे थे, मैं तुम्हारे मंदिर की सीढ़ियां नहीं चढ़ा.
जब ऑक्सीजन सिलेंडर को लेकर हाहाकार मचा, और जिस तरह मछलियां बिन पानी दम तोड़ देती हैं, लोग बिन ऑक्सीजन दम तोड़ते दिख रहे थे, उस भीषण वक्त भी मैं तुम्हारी दहलीज पर नहीं आया. लेकिन, आज मैं एक ‘स्लॉट’ के लिए तुम्हारे सामने भिखारी की तरह हाथ फैलाए खड़ा हूं. आज खुश तो बहुत होगे तुम..
ना ना.. ये किसी मीम या किसी मिमिक्री वीडियो का दृश्य नहीं, देश के लाखों-पीड़ितों की व्यथा है, जो वैक्सीन लगवाने के लिए मिलने वाले ‘स्लॉट’ को ढूंढ़ रहे हैं. हद ये कि जिस तरह गरीब आदमी रोजी-रोटी की तलाश में गांव से शहर आ जाता है, उसी तरह वैक्सीन आतुर व्यक्ति वैक्सीन के लिए गांव-गांव डोल रहा है. मेरे एक मित्न गाजियाबाद में रहते हैं.
गाजियाबाद में उन्हें ‘स्लॉट’ नहीं मिला तो उन्होंने नोएडा में ‘स्लॉट’ खोजा. वहां नहीं मिला तो मथुरा में ‘स्लॉट’ खोजा. उनका दृढ़ विश्वास था कि खोजने से ईश्वर मिलता है, ‘स्लॉट’ क्या चीज है. विश्वास विजयी हुआ, जब उन्होंने गाजियाबाद से करीब 230 किलोमीटर दूर फिरोजाबाद के पास नगलीसिंघा गांव के एक सरकारी क्लीनिक में स्लॉट खोज निकाला.
जिस तरह वोट देने के बाद कितना भी प्रिय राजनेता क्यों न हो, पांच साल तक अपने इलाके के लोगों को शक्ल नहीं दिखाता, उसी तरह कितने भी वोटर कार्ड, आधार कार्ड, बिजली बिल और रिश्वत के लिए रुपए आप जेब में रखे घूमते रहिए, ‘स्लॉट’ आपकी किस्मत में नहीं आता.
वैक्सीन के लिए स्लॉट आवंटन अब एक सरकारी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बल्कि व्यक्ति की कुंडली में विशिष्ट ज्योतिषीय योगों के समुच्च्य से पैदा हुई अद्भुत संभावना है. वैक्सीन व्यवस्था भाग्य भरोसे है. यहां भी डिमांड एंड सप्लाई का चक्कर फंसा हुआ है. वैक्सीन कुछ करोड़ हैं और आबादी 130 करोड़. फिर, आश्चर्यजनक रूप से हम हिंदुस्तानी हर महीने एक करोड़ की आबादी बढ़ा रहे हैं.
वैसे भी, देश के करोड़ों लोगों तक आज तक सैकड़ों सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच पाई हैं और आप पहली-दूसरी कोशिश में ही स्लॉट चाह रहे हैं तो आपकी मासूमियत पर फिदा होने का मन करता है. मजे की बात यह है कि जिन लोगों को कुछ दिनों पहले तक कोरोना एक पिद्दी वायरस लगता था.
मास्क पहनना जी का जंजाल लगता था. सोशल डिस्टेंस्टिंग एक दकियानूसी कवायद समझ आती थी, जो वैक्सीन के खिलाफ फतवे जारी कर रहे थे, वो सब भी अब जान बचाने के लिए स्लॉट ढूंढ रहे हैं. आखिर, जान बहुत बड़ी चीज है.