शशिधर खान का ब्लॉग: नागरिक रजिस्टर झमेले का बंगाल पर असर
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 20, 2019 05:43 AM2019-09-20T05:43:11+5:302019-09-20T05:43:11+5:30
सबसे ज्यादा असंतोष असम की भाजपा यूनिट ने व्यक्त किया. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रंजीत दास ने कहा - ‘फानइल एनआरसी सूची में 19 लाख लोगों के नाम नहीं हैं, जिनमें असली नागरिक ज्यादा हैं और कई अवैध विदेशी घुसपैठियों का नाम शामिल है.
असम के बाद दूसरा सबसे बड़ा राज्य प. बंगाल है, जहां बांग्लादेशी घुसपैठियों के चलते आबादी के साथ-साथ राजनीतिक संतुलन भी बिगड़ा हुआ है. वैसे तो पहले से ही भाजपा पश्चिम बंगाल में नागरिक रजिस्टर तैयार करने पर जोर दे रही है, लेकिन 31 अगस्त को असम में एनआरसी प्रकाशित होने के बाद पूर्वोत्तर से भी ज्यादा घमासान प. बंगाल में छिड़ गया. 6 सितंबर को प. बंगाल विधानसभा में नियम 185 के अंतर्गत इस पर बहस कराने की नौबत आ गई. बहस का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ कह दिया कि वे किसी भी कीमत पर बंगाल में एनआरसी लागू करने की इजाजत नहीं देंगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि हम भाजपा की यह योजना कामयाब नहीं होने देंगे.
उसके चार दिन बाद 10 सितंबर को केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कोलकाता पहुंचकर ममता बनर्जी के कथन का यह कहकर विरोध किया कि भाजपा देश के हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.
उसी दिन यानी 10 सितंबर को ही मेघालय विधानसभा में एनआरसी बहस के दौरान पारिवारिक संतुलन बिगड़ने वाले मुद्दे उठाए जाने की खबर आई. पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा ने सवाल उठाया कि फाइनल एनआरसी में अन्य राज्यों से आई सारी दुल्हनों के नाम हट गए. विधानसभा में विपक्ष के नेता मुकुल संगमा ने कहा कि सबसे ज्यादा दुखद स्थिति ये है कि भारत के असली नागरिकों का ही नाम गोल है. प. बंगाल, नगालैंड, बिहार, मेघालय में जन्मी दुल्हनों का नाम एनआरसी में नहीं है.
उसके दो दिन पहले 8 और 9 सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह नॉर्थ ईस्ट काउंसिल (एनईसी) में 68वें सम्मेलन में भाग लेने गुवाहाटी पहुंचे. पूर्वोत्तर की क्षेत्रीय पार्टियों को मिलाकर भाजपा के नेतृत्व में बनाए गए नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक काउंसिल (नेडा) का भी चौथा सम्मेलन उसी समय आयोजित था. अमित शाह गए तो थे पूर्वोत्तर के लोगों को यह आश्वस्त करने कि कश्मीर से 370 और 35-ए समाप्त किए जाने से उत्तर पूर्व को चिंतित होने की जरूरत नहीं है. केंद्रीय गृह मंत्री ने नॉर्थ ईस्ट काउंसिल सम्मेलन में जुटे सभी मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों को आश्वासन दिया कि नगालैंड समेत पूर्वोत्तर राज्यों को प्राप्त विशेष दज्रे के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी. लेकिन वास्तविकता ये थी कि पूर्वोत्तर राज्यों की चिंता का यह विषय ही नहीं था. सारे मुख्यमंत्री एनआरसी को लेकर चल रहे झमेले का समाधान चाहते थे.
सबसे ज्यादा असंतोष असम की भाजपा यूनिट ने व्यक्त किया. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रंजीत दास ने इस संबंध में अमित शाह को एक ज्ञापन सौंपा. अमित शाह गृह मंत्री के साथ-साथ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं. ज्ञापन सौंपने के बाद रंजीत दास ने कहा - ‘फानइल एनआरसी सूची में 19 लाख लोगों के नाम नहीं हैं, जिनमें असली नागरिक ज्यादा हैं और कई अवैध विदेशी घुसपैठियों का नाम शामिल है. गृह मंत्री और पार्टी अध्यक्ष को हमने अपने असंतोष से अवगत करा दिया है. हम इसलिए भी चिंतित हैं कि गोरखों का नाम हटा दिया गया है और ऐसे लोग भी हैं जिनके पूर्वजों के मुहाजिर दस्तावेज अस्वीकार कर दिए गए. ज्ञापन के अनुसार विदेशी घोषित होने की आशंका वाले मूल बंगाल के असमिया मुसलमान और असम में रह रहे बंगाली हिंदू हैं.
असम के एनआरसी को-ऑडिनेटर कार्यालय से जारी नोट के अनुसार जिनके नाम शामिल नहीं हुए हैं, उन्हें सर्टिफाइड कॉपी दी जाएगी ताकि वे फिर से अपील कर सकें. इसका निदान निकट भविष्य में निकलने के आसार नहीं हैं, क्योंकि 31 अगस्त से पहले प्रकाशित एनआरसी सूचियों में भी यही समस्या सामने आई. 26 जून को इसका मसौदा छपा, फिर 5 जुलाई को छपा. सीधे सुप्रीम कोर्ट की मानीटरिंग में चल रहे काम के बावजूद असंतोष बरकरार रहा. लोग अपील करते रहे और 31 अगस्त को अंतिम सूची के बाद भी यह जारी है.
जिन असली नागरिकों का नाम हटा है, उसका तार बंगाल से जुड़ा है. उनमें बंगाली मुसलमान से ज्यादा हिंदू हैं और गोरखा भी हैं. भाजपा को इसी बिंदु पर ममता बनर्जी ने आड़े हाथों लिया है. एनआरसी का बंगाल में विरोध कांग्रेस, वाम दल भी कर रहे हैं. विधानसभा में विपक्षी नेता अब्दुल मन्नान और सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम विभिन्न रैलियों में एनआरसी के खिलाफ बोले. सिलीगुड़ी में 14 सितंबर को आयोजित सीपीएम रैली में बांग्लादेशी कवि डॉ़ समीम रजा ने भी बंगाल और बंगलाभाषियों पर एनआरसी के प्रभाव की निंदा की.
ममता बनर्जी ने दावा किया कि फाइनल एनआरसी सूची से हटाए गए नाम में से 12 लाख हिंदू हैं. उन्होंने कहा कि बौद्ध और मुसलमानों को भी नहीं बख्शा गया, लेकिन गोरखों का नाम नहीं लिया. उत्तरी बंगाल और गोरखालैंड का एनआरसी चैप्टर शेष बंगाल से अलग है. इसका तार सीधा असम और पूर्वोत्तर से जुड़ा है. यह भाजपा का मामला इसलिए भी है कि दार्जीलिंग लोकसभा सीट से जीते राजू बिस्टा दार्जीलिंग के नहीं मणिपुर के हैं. ये गोरखालैंड आंदोलन पार्टी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के समर्थन से भाजपा के टिकट पर जीते हैं. गोरखों का नाम फाइनल लिस्ट से हटने का जिक्र असम भाजपा यूनिट ने अमित शाह को सौंपे ज्ञापन में किया है.