लाइव न्यूज़ :

अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: रॉकेटों पर टिकी है भारत की नई उड़ान

By अभिषेक कुमार सिंह | Updated: July 23, 2019 07:04 IST

चंद्रयान बेशक हमारे लिए महत्वपूर्ण है, पर उससे ज्यादा जरूरी है कि हमारे रॉकेटों का दम बना रहे. एक साथ 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण करने का कीर्तिमान रचने के अलावा स्पेस मार्केट के बिजनेस और भावी अंतरिक्ष अभियानों का सारा दारोमदार इन्हीं रॉकेटों पर टिका है.

Open in App

कई बार टाले जाने के बाद आखिरकार चंद्रयान-2 अपने बहुप्रतीक्षित मिशन यानी चंद्रमा पर उतरने की योजना को साकार करने की दिशा में रवाना हो गया. योजना के मुताबिक सितंबर के पहले हफ्ते में जब इसरो के चंद्रयान का यह दूसरा मिशन अपने मून लैंडर- विक्रम और मून रोवर- प्रज्ञान को पृथ्वी से 3 लाख 84 हजार किमी दूर चांदी-सी चमकती धरती यानी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार उतारेगा, तो चांद के कई नए रहस्यों के उद्घाटन की उम्मीद पूरी दुनिया कर रही होगी, जिनका इस्तेमाल भविष्य में वहां इंसानी बस्तियां बसाने और लंबी अंतरिक्ष यात्नाओं के पड़ाव के रूप में चंद्रमा के प्रयोग में हो सकेगा. इस मामले में एक बड़ा योगदान असल में उन रॉकेटों और रॉकेट टेक्नोलॉजी का है, जिनके बूते अतीत के महत्वाकांक्षी स्पेस प्रोग्राम सफल रहे हैं और जिन पर आगे भी अंतरिक्ष अभियानों को संचालित करने का जिम्मा है. 

चंद्रयान बेशक हमारे लिए महत्वपूर्ण है, पर उससे ज्यादा जरूरी है कि हमारे रॉकेटों का दम बना रहे. एक साथ 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण करने का कीर्तिमान रचने के अलावा स्पेस मार्केट के बिजनेस और भावी अंतरिक्ष अभियानों का सारा दारोमदार इन्हीं रॉकेटों पर टिका है. ऐसे में कोई एक चूक हमारे अंतरिक्ष अभियानों के लिए बहुत महंगी पड़ सकती है. ध्यान रखना होगा कि जिस अपोलो-11 ने नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन को आज से 50 साल पहले चांद पर उतारा था, उसे वहां तक ले जाने वाले रॉकेट सैटर्न-5 ने इससे पहले 13 नाकामियां ङोली थीं. बल्कि रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) ने तो अपने ताकतवर रॉकेट एन-1 की लगातार चार नाकामियों के बाद चांद पर रूसी वैज्ञानिकों को उतारने के सपने को हमेशा के लिए मुल्तवी कर दिया था, अन्यथा 60 के दशक में स्पेस की होड़ में वह अमेरिका से आगे ही चल रहा था.

बहरहाल, आज अगर भारत एक नई उड़ान पर है, तो इस उड़ान में उसके सपनों को साकार करने में अहम भूमिका इसरो के ताकतवर रॉकेटों की है. ये रॉकेट हाल तक सफलता के नए कीर्तिमान रचते हुए अपनी क्षमता और योग्यता साबित कर रहे हैं. इसमें एक बड़ी कामयाबी 14 नवंबर 2018 को स्पेस में नवीनतम संचार उपग्रह जीसैट-29 को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित करने वाले 640 टन वजनी रॉकेट जीएसएलवी (मार्क-3 डी-2) की है. देश में विकसित इस तीसरी पीढ़ी के रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 ने एक ओर जहां यह आश्वस्त किया है कि इसरो अब 2022 तक चांद पर इंसान भेजने का अपना मिशन पूरा करने के काम में बेहिचक जुट सकता है, दूसरी ओर यह भी साबित किया है कि भारी उपग्रहों को स्पेस में भेजने का जो काम अब तक रूस, अमेरिका जैसे देश करते रहे हैं, उसमें भारत की योग्यता अब बराबरी की है.

टॅग्स :चंद्रयान
Open in App

संबंधित खबरें

भारतChandrayaan-4: अब चंद्रयान-4 की बारी, चंद्रमा पर इंसान भेजने की भी तैयारी, भारत ने महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष परियोजनाओं की घोषणा की

भारतअंतरिक्ष : कल्पना और हकीकत के बीच के मिटते फासले

भारतIndependence Day 2024: 78वें स्वतंत्रता दिवस पर भारत के बारे में जानिए 10 रोचक तथ्य, चौथे वाले के बारे में जानकर हो जाएंगे हैरान

भारतब्लॉग: अंतरिक्ष में नए मुकाम हासिल करने का साल रहा 2023

भारतChandrayaan-3: चंद्रयान-3 के लैंडर ‘विक्रम’ और रोवर ‘प्रज्ञान’ के पुन: सक्रिय होने की अब कोई उम्मीद नहीं, इसरो के पूर्व अध्यक्ष किरण कुमार ने कहा- नहीं-नहीं, अब नहीं

भारत अधिक खबरें

भारतबिहार के मुजफ्फरपुर जिले में अपने पांच बच्चों के साथ फांसी के फंदे से झूल गया अमरनाथ राम, तीन की मौत, दो की बच गई जान

भारतMaharashtra Local Body Elections 2026 Dates Announced: 29 निकाय, 2,869 सीट, 3.48 करोड़ मतदाता, 15 जनवरी को मतदान और 16 जनवरी 2026 को मतगणना

भारत‘ये घटियापन माफी के लायक नहीं’: कांग्रेस ने महिला डॉक्टर का हिजाब हटाने के लिए नीतीश कुमार की आलोचना की, वीडियो जारी कर मांगा इस्तीफा, WATCH

भारतनिकाय चुनावों में भाजपा-शिवसेना का गठबंधन, सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा- अजित पवार से दोस्ताना मुकाबला

भारतभाजपा कार्यकारी अध्यक्ष बनने पर आपकी क्या प्राथमिकता होगी?, नितिन नबीन ने खास बातचीत की