ब्लॉग: भारत विरोधी शक्तियों को सह देना बंद करे कनाडा
By विवेकानंद शांडिल | Published: September 25, 2023 12:09 PM2023-09-25T12:09:38+5:302023-09-25T12:10:06+5:30
जस्टिन ट्रूडो को यह समझने की आवश्यकता है कि वह केवल सिख समुदाय के वोट बैंक के लिए भारत के साथ अपने संबंधों को ताक पर नहीं रख सकते हैं।
खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की मौत के मामले में इन दिनों भारत और कनाडा के बीच एक टकराव की स्थिति बनी हुई है। गौरतलब है कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में अपने देश की संसद में यह आरोप लगाया कि इस घटना में भारत सरकार के एजेंटों का हाथ है और इसके बाद, कनाडा ने एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक को निष्कासित कर दिया।
इसके जवाबी प्रतिक्रिया में, भारत सरकार ने किसी भी संलग्नता से इंकार करते हुए, कनाडा के भी एक वरिष्ठ राजनयिक को निष्कासित कर दिया।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि जस्टिन ट्रूडो के शासनकाल में कनाडा खालिस्तानी चरमपंथियों के लिए एक बेहद सुरक्षित स्थान बन गया है, जो भारत की सुरक्षा के लिए बेहद ही चिंताजनक है।
भारत में खालिस्तानी आंदोलन एक पृथक, संप्रभु सिख राज्य की लड़ाई है। विशेषज्ञों का यह मानना है कि यहाँ ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’, ‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ जैसे कार्रवाइयों के बदौलत भारत सरकार ने इस आंदोलन को जड़ से मिटा दिया था। लेकिन, वास्तविकता यह है कि आज कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों इस आंदोलन के कई बड़े समर्थक हैं, जो भारत की सुरक्षा और संप्रभुता को पलक देखते ही भारी नुकसान पहुँचा सकते हैं।
भारत ने कई अवसरों पर कनाडा से खालिस्तानी आतंकवादियों के विरुद्ध कार्रवाई की अपील की, लेकिन वह इसमें पूरी तरह से विफल रहा। यहाँ तक भारत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भी कनाडाई प्रधानमंत्री से सिख विरोध प्रदर्शन के विषय में कड़ी चिंता जताई। लेकिन, इसका कोई लाभ नहीं हुआ।
भारत और कनाडा के बीच, 1947 के बाद से ही बेहद अच्छे संबंध रहे हैं और दोनों देशों के बीच वर्तमान समय में द्विपक्षीय व्यापार प्रति वर्ष 6 बिलियन डॉलर से भी अधिक है। अब जब, दोनों देशों के राजनयिक संबंध संकट में हैं, तो इस मुद्दे को लेकर पाकिस्तान और चीन जैसे आतंकी देश भी ख़ूब उछल-कूद मचा रहे हैं। लेकिन, भारत को इसकी चिन्ता बिल्कुल नहीं करनी चाहिए।
वहीं, कनाडा और तमाम पश्चिमी देशों को यह समझना होगा कि आज भारत 1980 के दौर का कोई कमजोर और पिछलगुवा देश नहीं है। हम किसी भी स्थिति में अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से कोई समझौता नहीं करने वाले हैं और हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उन्हें यह जता भी दिया है।
यदि हम हाल के वर्षों में भारत-कनाडा के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लेकर गहन पड़ताल करें, तो पाएंगे कि प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल संभालने के बाद दोनों के रिश्ते ज़्यादा बेहतर कभी नहीं रहे। आज कनाडा विश्व में सबसे बड़ी भारतीय प्रवासी आबादी में से एक की मेजबानी करता है।
इस देश में भारतीय मूल के 16 लाख से भी अधिक लोग हैं, जो कनाडा के कुल आबादी का 3 प्रतिशत से भी अधिक है। ऐसे में, कनाडा के सरकार को किसी भी भारत विरोधी शक्ति के विरुद्ध तत्परता और संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। लेकिन, मामला ठीक इसके विपरीत है।
हमारे विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि भारत बीते कुछ वर्षों में कनाडा सरकार से 20-25 से अधिक लोगों के प्रत्यर्पण या कार्रवाई के लिए अनुरोध किया है। लेकिन, हमें उससे कोई भी मदद नहीं मिली है।
अब जब कनाडा ने भारत पर एक बेहद ही निराधार और बेतुका आरोप लगाया है जो इससे खालिस्तानी आतंकवादियों और चरमपंथियों को लेकर जस्टिन ट्रूडो की निष्क्रियता को झलक ही रही है। इससे हमें यह भी पता चल रहा है कि यह घटनाक्रम पूरी तरह से भारत की नई वैश्विक पहचान और सामर्थ्य को धूमिल करने और अपने राजनीतिक हित को साधने का एक प्रयास मात्र है।
जस्टिन ट्रूडो ने भारत के अंदरूनी मामलों को लेकर कई बार टिप्पणी की है, लेकिन अपने देश में खालिस्तान समर्थकों के प्रति उनकी उदासीनता ने लगातार उनके हौसलों को बढ़ाने का काम किया है।
भारत और कनाडा के बीच राजनयिक विवाद को लेकर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी पश्चिमी देशों की मीडिया की भरपूर आलोचना की और प्रधानमंत्री मोदी के अन्य विरोधी नेताओं से भी अपेक्षा की जाती है कि वे किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले पूरे मामले को ठीक से समझें। यह मामला व्यक्तिगत स्वार्थों से परे हमारे राष्ट्रीय एकता, अखंडता और पहचान का है और इसमें हम कोई भी समझौता नहीं कर सकते हैं।
हमें यह पूरी तरह से ज्ञात है कि कनाडा में रहने वाले हमारे सिख भाइयों का मुठ्ठी भर चरमपंथियों के साथ कोई सहानुभूति नहीं है। लेकिन, अगर कनाडाई सरकार ने चरमपंथियों की गतिविधियों के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाया तो इससे पूरे विश्व में फैले सिख समुदाय की बदनामी होती है। हम इसे भी किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।
जस्टिन ट्रूडो के शासनकाल में चरमपंथी समूहों ने बाहुबल और धन शक्ति का इस्तेमाल करके राजनीति में भी अपनी पहुँच बढ़ाई है। कनाडा की राजनीति के जाने-माने भारतीय विरोधी और खालिस्तानी हमदर्द सांसद जगमीत सिंह का नाम इसी का एक उदाहरण है।
ऐसे में, हमें विदेशों में पनप रहे भारत विरोधी शक्तियों को रोकने के लिए पूरी तरह से तैयार रहना होगा। वहीं, जस्टिन ट्रूडो को यह समझने की आवश्यकता है कि वह केवल सिख समुदाय के वोट बैंक के लिए भारत के साथ अपने संबंधों को ताक पर नहीं रख सकते हैं। इससे कनाडा को एक शांति प्रिय और ज़िम्मेदार राष्ट्र के रूप में कनाडा की छवि भी धूमिल होने वाली है।