Blog: इस आयातित दाल में बहुत कुछ काला है

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: June 26, 2018 03:06 PM2018-06-26T15:06:16+5:302018-06-26T15:06:16+5:30

विश्व में दालों की खपत सबसे अधिक भारत में है। हमारे देश की खाद्य व पोषण व्यवस्था में सदा दालों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

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Blog: इस आयातित दाल में बहुत कुछ काला है

विश्व में दालों की खपत सबसे अधिक भारत में है। हमारे देश की खाद्य व पोषण व्यवस्था में सदा दालों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यहां की कृषि भूमि विविध तरह की दालों के उत्पादन के लिए अनुकूल है तथा किसानों को दलहन की खेती का अच्छा परंपरागत ज्ञान है। भारत अपनी दालों की जरूरतों को पूरा करने में निश्चय ही सक्षम है पर सरकारी स्तर पर दालों का उत्पादन बढ़ाने पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया, अपितु हरित क्रांति के दौर में ऐसी नीतियां अपनाई गईं जिससे अनाज व दलहन की मिश्रित खेती की व्यवस्था अनेक महत्वपूर्ण स्थानों पर बुरी तरह टूट गई।

इसका व अन्य प्रतिकूल नीतियों का असर यह हुआ कि भारत दालों के आयात पर निर्भर होने लगा। हाल के 3-4 वर्षो को देखें तो एक वर्ष में 50 से 70 लाख टन दालों का आयात होता रहा है। सबसे अधिक दालों का आयात कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, म्यांमार, रूस व यूक्रेन से किया गया है। केवल कनाडा व ऑस्ट्रेलिया से कुल दलहन आयात का 56 प्रतिशत हिस्सा आयात हो रहा है। सबसे अधिक आयात पीले मटर या यलो पीस का हो रहा है। पिछले वर्ष इसका 29 लाख टन आयात हुआ है। दूसरे नंबर पर लाल मसूर या रेड लेंटिल का आयात हुआ है।
 हरी मूंग का आस्ट्रेलिया से आयात हो रहा है.

कनाडा व आस्ट्रेलिया में दालों की स्थानीय खपत नहीं के बराबर है। वहां दाल का उत्पादन मुख्य रूप से निर्यात करने के लिए किया जा रहा है अत: इसकी गुणवत्ता को ठीक से नहीं जांचा जा रहा है पर अपने देश के लोगों के स्वास्थ्य के बारे में चिंतित कुछ प्रवासी भारतीयों की पहल पर जांच की गई तो पाया गया कि इन पर कुछ अति हानिकारक केमिकल्स का अत्यधिक उपयोग हुआ है।

विशेषकर ग्लाइफोसेट नामक रासायनिक दवा का अत्यधिक उपयोग बहुत चिंताजनक है। इसका उपयोग पहले खरपतवार नाशक के रूप में होता रहा है, पर बाद में इसका उपयोग तैयार फसलों में गीलापन कम करने व शुष्कता बढ़ाने के लिए भी किया जाने लगा जिससे मशीनीकृत तौर तरीकों से उनकी कटाई में सहायता मिल सके। इस रसायन से शरीर की प्रोटीन व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो सकती है। इतना ही नहीं, इससे कैंसर जैसी कुछ गंभीर बीमारियां से बचाव के लिए मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है।

-भारत डोगरा

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