कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: पंडित नेहरू, जिन्होंने भारत को आधुनिक बनाया
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 27, 2019 09:02 AM2019-05-27T09:02:00+5:302019-05-27T09:02:00+5:30
स्वतंत्नता के बाद चर्चिल की भविष्यवाणी सर्वथा गलत सिद्ध हुई तो इसका सर्वाधिक श्रेय देश के पहले प्रधानमंत्नी पं. जवाहरलाल नेहरू और उनकी प्रगतिशील नीतियों को ही जाता है. उनकी इन नीतियों का ही फल था कि नव स्वतंत्न भारत आधुनिक बना और नेहरू को उसके निर्माता के रूप में पहचाना गया.
क्या आप जानते हैं कि हमें ‘कुली’ कहकर अपमानित करने वाले अंग्रेज इस देश पर शासन करते थे तो उनकी हमारे बारे में क्या राय थी और वे हमारी स्वाधीनता की मांगों को नकारने के लिए कैसी-कैसी बातें कहते थे? ब्रिटिश संसद में विपक्ष के तत्कालीन नेता विंस्टन चर्चिल का तो यहां तक मानना था कि भारतवासी स्वशासन के लिहाज से पूरी तरह अयोग्य हैं.
उन्होंने भविष्यवाणी कर डाली थी कि अंग्रेजों के चले जाने के बाद उनके द्वारा भारत में निर्मित न्यायपालिका, स्वास्थ्य सेवा, रेलवे व लोकनिर्माण आदि की संस्थाओं का पूरा तंत्न खत्म हो जाएगा और देश बहुत तेजी से शताब्दियों पहले के बर्बरता व मध्ययुगीन लूट-खसोट के दौर में वापस चला जाएगा क्योंकि भारतीय नेताओं की जो पीढ़ी हमसे लड़ रही है, यह खत्म होगी तो भारतीय अपने ‘असली रंग’ में आ जाएंगे.
स्वतंत्नता के बाद चर्चिल की भविष्यवाणी सर्वथा गलत सिद्ध हुई तो इसका सर्वाधिक श्रेय देश के पहले प्रधानमंत्नी पं. जवाहरलाल नेहरू और उनकी प्रगतिशील नीतियों को ही जाता है. उनकी इन नीतियों का ही फल था कि नव स्वतंत्न भारत आधुनिक बना और नेहरू को उसके निर्माता के रूप में पहचाना गया.
आजादी के तुरंत बाद के वर्षो में धार्मिक संकीर्णतावादियों से निपटने में उन्होंने कतई यह नहीं देखा कि उनका धर्म कौन-सा है और वे कांग्रेस पार्टी के अंदर के हैं अथवा बाहर के. सितंबर, 1950 में पुरुषोत्तमदास टंडन की अध्यक्षता में नासिक में कांग्रेस का सम्मेलन हुआ तो पं. नेहरू ने उसके मंच से संकीर्णतावादियों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर जुल्म हो रहे हैं तो क्या हम भी यहां वही करें? यदि इसे ही जनतंत्न कहते हैं तो भाड़ में जाए ऐसा जनतंत्न.’’ फिर उन्होंने सम्मेलन के प्रतिनिधियों से कहा, ‘‘आप मुङो प्रधानमंत्नी के रूप में चाहते हैं तो बिना शर्त मेरे पीछे चलना होगा. नहीं चाहते तो साफ-साफ कहें. मैं पद छोड़ दूंगा और कांग्रेस के आदर्शो के लिए स्वतंत्न रूप से लडूंगा.’’ उन्होंने यह भी कहा कि हमारे जीवन में ऐसे कुतर्को की जगह तभी बनती है, जब हम अपने आदर्शो, उद्देश्यों और सिद्धांतों को भूल जाते हैं. साथ ही नसीहत भी दी कि महान कार्य और छोटे लोग एक साथ नहीं चल सकते.
संपन्न परिवार से होने के बावजूद उन्होंने विलासितारहित जीवनशैली अपना रखी थी. कहते हैं कि प्रधानमंत्नी रहते हुए वृद्धावस्था की बढ़ती अशक्तताओं के बावजूद पं. नेहरू ने अपने कार्यालय की ऊपरी मंजिलों में जाने के लिए लिफ्ट लगवाने से इसलिए इनकार कर दिया था कि उनको उस पर होने वाला खर्च अनावश्यक लगता था. इसकी मंजूरी उन्होंने तब दी थी, जब एक दिन उन्हें पता चला कि सरदार वल्लभभाई पटेल आए थे और नीचे से ही कर्मचारियों से यह कहकर चले गए कि मेरे घुटने सीढ़ियां चढ़ने की इजाजत नहीं दे रहे वर्ना जवाहरलाल से मिलता.