ब्लॉग: राज्यपाल-मुख्यमंत्री में टकराव ठीक नहीं
By विश्वनाथ सचदेव | Published: September 20, 2024 10:39 AM2024-09-20T10:39:36+5:302024-09-20T10:40:43+5:30
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने राज्य की मुख्यमंत्री की तुलना लेडी मैकबेथ से की है. यह तो नहीं पता कि ऐसी तुलना करके वह क्या बताना-जताना चाहते थे, पर सवाल उठ रहे हैं कि कोई राज्यपाल इस तरह की बात कैसे कह सकता है.
शेक्सपियर का एक चर्चित नाटक है मैकबेथ. स्कॉटलैंड के राजा के दो जनरल उसके खिलाफ हैं. लेडी मैकबेथ इनमें से एक की पत्नी है. ये लोग मिलकर राजा की हत्या का षडयंत्र रचते हैं, पर मैकबेथ हत्या के लिए साहस नहीं जुटा पा रहा. पत्नी उसकी मर्दानगी को चुनौती देती है, उसे कायर, नामर्द और न जाने क्या-क्या कहती है और अंततः मैकबेथ अपने आपको प्रमाणित करने के लिए राजा की हत्या के लिए तैयार हो जाता है... लेकिन लेडी मैकबेथ की आत्मा उसे धिक्कारती है और वह आत्महत्या कर लेती है.
हाल ही में यह लेडी मैकबेथ अचानक भारत के मीडिया में चर्चा का विषय बन गई थी. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने राज्य की मुख्यमंत्री की तुलना लेडी मैकबेथ से की है. यह तो नहीं पता कि ऐसी तुलना करके वह क्या बताना-जताना चाहते थे, पर सवाल उठ रहे हैं कि कोई राज्यपाल इस तरह की बात कैसे कह सकता है. राज्यपाल और राज्य-सरकार के रिश्तों की खटास किसी से छिपी नहीं है. समय-समय पर सी.वी. आनंद बोस अपने राज्य की मुख्यमंत्री की आलोचना करते रहे हैं. अब एक युवा डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के मामले में ममता बनर्जी की सरकार कठघरे में है. यह सही है कि ममता के विरोधी इस स्थिति का राजनीतिक लाभ उठाना चाह रहे हैं, पर सही यह भी है कि इस निंदनीय प्रकरण में ममता बनर्जी बचाव की मुद्रा में हैं– विरोधी दल तो राज्य सरकार की आलोचना कर ही रहे हैं, राज्यपाल भी खुलकर पश्चिम बंगाल की सरकार की आलोचना में लगे हैं. उनका कहना है कि राज्य की सरकार अपना कर्तव्य निभाने में असफल रही है और राज्य की जनता की भावनाओं को नहीं समझ रही. यहां तक तो बात फिर भी समझ में आती है, पर जब राज्यपाल यह कहते हैं कि ‘ममता बनर्जी लेडी मैकबेथ हैं और उनके साथ कोई मंच साझा नहीं करूंगा’, तो मामला गंभीर बन जाता है.
संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों से एक आदर्श व्यवहार की अपेक्षा की जाती है. किसी मुद्दे पर मतभेद होने का मतलब किसी प्रकार की शत्रुता नहीं माना जाना चाहिए. आज पश्चिम बंगाल में जो कुछ हो रहा है, वह निश्चित रूप से चिंता का विषय है. किसी भी राज्य में ऐसी स्थितियों का बनना अपने आप में एक राष्ट्रीय शर्म का विषय भी है. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल को पूरा अधिकार है कि वे वहां उत्पन्न स्थितियों पर अपनी चिंता प्रकट करें. सच कहें तो यह उनका कर्तव्य भी है. इसी कर्तव्य का एक पक्ष यह भी है कि वह स्थितियों में सुधार के प्रयासों का हिस्सा बनें. लेकिन, जिस तरह माननीय राज्यपाल ने राज्य की निर्वाचित मुख्यमंत्री की तुलना लेडी मैकबेथ से की है, वह अनुचित की परिभाषा में ही आती है. राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री का ‘सामाजिक बहिष्कार’ करने की घोषणा भी गलत संकेत ही देती है.
हमारी संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार राज्यपाल न तो राज्य में केंद्र का एजेंट है और न ही केंद्र सरकार का जासूस. उसकी भूमिका राज्य में शासन चलाने में सहयोग देने वाले की है. उससे यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह अपने विवेक और अनुभव का उपयोग करते हुए राज्य सरकार को सलाह देने का काम भी करेगा. कुल मिलाकर यह भूमिका एक सलाहकार की है. राज्य सरकार और राज्यपाल में एक विवेकपूर्ण संतुलन ही स्थिति को बेहतर बना सकता है.