भरत झुनझुनवाला का ब्लाग: भ्रष्टाचार रोकने में जनता का सहारा लीजिए
By भरत झुनझुनवाला | Published: April 24, 2021 08:17 PM2021-04-24T20:17:23+5:302021-04-24T20:17:23+5:30
देखा गया है कि सरकारी दफ्तरों में यदि कोई ईमानदार अधिकारी होता है तो उसके सहकर्मी घूस नहीं ले पाते हैं और अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए ईमानदार अधिकारी को फंसाने का प्रयास करते हैं अथवा उसकी रपट उच्च अधिकारी से कर देते हैं.
जीएसटी लागू करते समय सरकार द्वारा यह आश्वासन दिया गया था कि इससे टैक्स की चोरी कम हो जाएगी. इसके बाद ई-वे बिल लागू करते समय पुन: विश्वास दिलाया गया था कि सड़क पर चलने वाले वाहनों की जांच हो सकेगी और नंबर दो यानी बिना टैक्स चुकाए माल सड़क पर नहीं आ सकेगा. लेकिन आलम यह है कि टैक्स की चोरी बढ़ती ही जा रही है. हाल में मुझे एक ब्रांडेड पंखा खरीदना था जो किसी बड़ी कंपनी द्वारा बनाया गया था. वह भी मुझे आसानी से बिना जीएसटी अदा किए उपलब्ध हो गया. या तो यह बड़ी कंपनी नंबर दो में माल सप्लाई कर रही है अथवा उसके बिल को घुमाया जा रहा है.
अथवा जिस कंपनी को या तो यह कंपनी नंबर दो में माल सप्लाई कर रही है अथवा उसके बिल को घुमाया जा रहा है, बिल उस कंपनी के नाम काटा जा रहा है जिसे जीएसटी का रिफंड मिल रहा हो; और माल नंबर दो में बिना जीएसटी के बाजार में बेचा जा रहा है. इसके अलावा वर्तमान में एक ही ई-वे बिल पर कई बार माल की ढुलाई की जा रही है. जैसे दिल्ली से गाजियाबाद के बीच का ई-वे बिल 24 घंटे तक मान्य होता है जिसमें उसी ई-वे बिल पर तीन बार माल का आवागमन हो जाता है. जीएसटी की चोरी के लिए हवाई चप्पल का दाम 200 रुपया होता है लेकिन इसका बिल 50 रुपया बनाया जाता है.
इस प्रकार तमाम उपाय हैं जिनसे जीएसटी व्यवस्था को चकमा दिया जा रहा है. नंबर दो की समानांतर अर्थव्यवस्था अभी पूरी तरह चालू है जैसे जीएसटी के पहले चालू थी. संकट यह है कि यदि किसी ईमानदार अधिकारी की शिकायत भ्रष्ट अधिकारी के रूप में कर दी जाए तो ऊपर के अधिकारी अनायास ही ईमानदार अधिकारी को भी सेवामुक्त कर सकते हैं.
फलस्वरूप ईमानदार अधिकारी स्वयं संकट में आ जाते हैं. सरकार में सफलतापूर्वक काम करने का उपाय यह है कि आप स्वयं अन्य भ्रष्ट अधिकारियों जैसे भ्रष्ट हो जाएं तभी आपकी नौकरी सुरक्षित रहती है.विचार करना है कि अमेरिका में भ्रष्टाचार तुलना में कम क्यों है. यूनिवर्सिटी आॅफ मैरीलैंड के प्रोफेसर जॉन जोसफ वालिस के अनुसार मूल कारण यह है कि उनके संविधान निमार्ताओं को प्रमुख चिंता यह थी कि सरकार जनता पर भारी न हो जाए. वे चाहते थे कि प्रत्येक नागरिक को प्रतिनिधित्व और समानता का अधिकार उपलब्ध हो
इसलिए संपूर्ण तंत्र में आम आदमी की भूमिका को प्रमुखता दी गई है. अमेरिकी प्रजातंत्र में विचार यह है कि सरकार पर जनता भारी हो; न कि जनता पर सरकार. लेकिन जैसा ऊपर बताया गया है सरकार जीएसटी को ऊपर से ठीक करना चाहती है. हम ऊपर के अधिकारियों की जानकारी से प्रशासन को चलाना चाहते हैं न कि जनता की भागीदारी से.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट अहमदाबाद के प्रोफेसर एरोल डिसूजा का कहना है कि भ्रष्टाचार के नियंत्रण में प्रेस और सिविल सोसायटी की अहम भूमिका है. जैसे देखा जाता है कि पुलिस की ज्यादती से जनता को राहत दिलाने के पीछे पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज जैसे संगठनों अथवा सरकारों की ज्यादती से जनता को रहत दिलाने के पीछे एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संगठनों की प्रमुख भूमिका है.
यदि ये संगठन प्रभावी होते हैं तो नीचे से भ्रष्ट अधिकारियों पर दबाव बनता है. नीचे से सिविल सोसायटी और ऊपर से ईमानदार प्रशासन के सहयोग से बीच की नौकरशाही को कुछ सीमा तक रोका जा सकता है जैसे चिमटे से गरम रोटी को पकड़ा जाता है.समस्या यह है कि यदि सरकार पीपुल्स यूनियन आफ सिविल लिबर्टी और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संगठनों को मान्यता देती है तो इन संगठनों द्वारा भ्रष्ट नौकरशाही के साथ-साथ भ्रष्ट सरकार पर भी प्रश्न उठाए जाते हैं जो कि सरकार को मान्य नहीं होता है. प्रतीत होता है कि इसलिए सरकार का प्रयास है कि सिविल सोसायटी को समाप्त कर दे जिससे उसके ऊपर स्वयं प्रश्न न उठे.
परिणाम यह है कि सरकार के ऊपर प्रश्न न उठने के साथ-साथ भ्रष्ट अधिकारियों के ऊपर भी प्रश्न नहीं उठ रहा है और ऊपर से ईमानदार सरकार के सारे प्रयास निष्फल हैं. इसलिए सरकार को ऊपर मात्र से भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के स्थान पर प्रेस और सिविल सोसायटी को सबल बनाना होगा तभी भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाया जा सकेगा. केवल तकनीक के माध्यम से जीएसटी अथवा किसी भी अन्य व्यवस्था में भ्रष्टाचार का नियंत्रण संभव नहीं है.