विजय दर्डा का ब्लॉग: जब सीमा पर तनाव तो घर में क्यों बवाल ?

By विजय दर्डा | Published: January 30, 2023 07:31 AM2023-01-30T07:31:14+5:302023-01-30T07:31:14+5:30

पुरानी घटनाओं से हमें सबक जरूर लेना चाहिए लेकिन यह भी ध्यान रहे कि नफरत के पुराने जख्मों को हम जितना कुरेदेंगे तकलीफ उतनी ही ज्यादा होगी। इस वक्त जरूरत प्रगति की राह पर और तेजी से बढ़ने की है, न कि किसी बवाल में उलझकर स्वयं को पीथे धकेलने के हालात पैदा करने की. हमारे दुश्मन हमें पीछे धकेलना चाह रहे हैं. जरा सतर्क रहिए...!

BBC Documentary on Gujrat riots to Pathan boycott, why ruckus in country amid tension at border | विजय दर्डा का ब्लॉग: जब सीमा पर तनाव तो घर में क्यों बवाल ?

विजय दर्डा का ब्लॉग: जब सीमा पर तनाव तो घर में क्यों बवाल ?

बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया : द मोदी क्वेश्चन’ को लेकर इन दिनों देश के कई हिस्सों में बवाल मचा हुआ है. यह डॉक्यूमेंट्री 2002 में गुजरात में हुए दंगों पर आधारित है. हालांकि यूट्यूब और ट्विटर पर इसे ब्लॉक कर दिया गया है लेकिन जिन लोगों ने इसे डाउनलोड कर लिया था वे जगह-जगह इसे दिखाने में जुटे हैं. 

जाहिर सी बात है कि इससे तनाव जैसी स्थिति पैदा हो रही है. हमारे पास वैसे भी समस्याएं कम नहीं हैं. हमारे पड़ोसी चीन, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश से लगे सरहदी इलाकों से लेकर मालदीव तक को विघटनकारी ताकतें उचका रही हैं. सीमा पर जब तनाव है तब हम फिजूल के विषयों में उलझें, यह कहां की अक्लमंदी है?

केवल गुजरात ही क्या, देश या दुनिया के किसी भी हिस्से में यदि दंगे होते हैं तो उससे इंसानियत शर्मसार होती है लेकिन इस वक्त का सबसे बड़ा सवाल यह है कि गुजरात दंगों के करीब दो दशक बाद बीबीसी ने यह डॉक्यूमेंट्री क्यों बनाई? कहा जा रहा है कि यह डॉक्यूमेंट्री ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय की किसी रिपोर्ट पर आधारित है. 

जरा सोचिए कि भारत के किसी अंदरूनी मामले पर ब्रिटेन को नाचने की क्या जरूरत थी? क्या इससे किसी किस्म की आशंका उत्पन्न नहीं होती? गुजरात दंगों को लेकर भारतीय अदालतें पहले ही फैसला सुना चुकी हैं. फिर बीबीसी को बीच में नाचने-कूदने की जरूरत क्यों पड़ी? इस डॉक्यूमेंट्री का निर्माण महज एक घटना है या फिर किसी की सोची-समझी चाल? 

एक पुरानी कहावत है कि अपनी लकीर बड़ी रखने के लिए दूसरों की लकीर छोटी करना सबसे आसान काम है. कुछ विदेशी ताकतें भारत की राह रोकने के लिए भी यही रास्ता अपना रही हैं. बवाल हमारे यहां होगा तो हम ही परेशान होंगे न!

मामला चाहे इस डॉक्यूमेंट्री का हो या कश्मीर फाइल्स का हो या फिर इंदिरा जी की हत्या के बाद फैले उपद्रव का हो, या फिर इस तरह की घटनाओं पर बनी दूसरी डॉक्यूमेंट्री और फिल्मों का हो, इससे तनाव तो हमारी धरती पर फैलता है. ढाई दशक बाद कश्मीर फाइल्स की क्या जरूरत थी? 

मुझे लगता है कि पुरानी घटनाओं को हमें याद रखना चाहिए लेकिन केवल सबक लेने के लिए, न कि पुराने जख्म को कुरेद कर फिर से उसे रक्तरंजित करने के लिए! इस तरह के बवाल हमारी नई पीढ़ी के फ्रेश और इनर्जेटिक माइंड को डायवर्ट करते हैं. उसमें नफरत की गंदगी फैलाने का काम करते हैं. जब हमारा युवा इस तरह के कुचक्र में फंसेगा तो इससे देश का विकास रुकेगा. हमारे दुश्मन यही तो चाहते हैं!

इस वक्त भारत प्रगति की राह पर तेजी से बढ़ रहा है. ब्रिटेन को पछाड़ कर हम दुनिया की पांचवीं बड़ी आर्थिक ताकत बन चुके हैं और देश बहुत जल्दी तीसरी बड़ी आर्थिक ताकत बनने की राह पर निकल पड़ा है. आईटी इंडस्ट्री में हमारे युवा पूरी दुनिया में तहलका मचा रहे हैं. हम गरीबी कम करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. रोजगार के साधन पैदा कर रहे हैं. बेटियों को मुख्य प्रवाह में ला रहे हैं. सारी बाधाएं तोड़ी जा रही हैं और समानता की भावना को शक्तिशाली बनाने की कोशिशें हो रही हैं. 

हम सभी जानते हैं कि प्रगति की राह पर बढ़ने के लिए शक्ति की जरूरत होती है. यह शक्ति हमें शिक्षा, अर्जित धन और बुद्धि से मिलती है. यह शक्ति प्राप्त करने के लिए हम लगातार और भरपूर कोशिश करते रहे हैं ओैर सफलताएं मिल भी रही हैं. आपको जानकर गर्व होगा कि आज अमेरिका में करीब 40 लाख हिंदुस्तानी रहते हैं और प्रति व्यक्ति आय के मामले में वे नंबर वन हैं. वहां हिंदुस्तानियों की प्रति व्यक्ति औसत आय एक लाख पांच सौ डॉलर प्रति वर्ष है जबकि अमेरिकी लोगों की केवल 55 से 60 हजार डॉलर ही है. 

जाहिर सी बात है कि इस सफलता के पीछे भारतीयों की क्षमता है. हमें इस क्षमता को देश के भीतर भी आगे बढ़ाना है लेकिन कुछ ताकतें हिंदुस्तान की जमीन को तनाव और रक्त से भीगा देखना चाहती हैं. वे बाहर से आतंकवाद भेजते हैं तो देश में गड़े मुर्दे उखाड़े जाते हैं ताकि हिंदुस्तान तबाह हो. विकास की उसकी राह में कांटे रोपे जा सकें.

दुर्भाग्य है कि हमारे भीतर भी ऐसे बहुत से लोग बैठे हुए हैं. कभी एक चैप्टर पाठ्यपुस्तक से हटा दिया तो बवाल, कभी धर्म के नाम पर बवाल, कभी जाति के नाम पर बवाल! न जाने कितने बवाल हमारी राह रोकने के लिए बेताब रहते हैं. हम यदि एक मंदिर बना रहे हैं तो अच्छी बात है लेकिन दूसरों के प्रयासों को तो ठोकर न मारें! चाहे जैनियों के तीर्थ स्थल पालिताना का मामला हो या फिर सम्मेद शिखरजी का मामला हो, इस देश को आर्थिक ताकत बनाने में बड़ा योगदान देने वाले जैन समुदाय को आखिर कौन तकलीफ दे रहा है और क्यों दे रहा है? 

पठान नाम की एक फिल्म आ गई तो कुछ सिरफिरे शाहरुख खान का बायकॉट करने की बात करने लगे! अरे भाई! फिल्म है तो उसे मनोरंजन के रूप में स्वीकार कीजिए. मनोरंजन में यदि नफरत का छिड़काव करेंगे तो इससे देश ही तबाह होगा न! ...और ये देश किसका है? यह देश तिरंगे की छांव में रहने वाले हर हिंदुस्तानी का है चाहे उसका मजहब कुछ भी हो! 

भारत माता हम सबकी माता है और अपनी मां से कौन प्यार नहीं करता? मां भी अपनी हर संतान को प्यार से सराबोर करती है. वह चाहती है कि उसका हर सपूत संस्कारी बने. ध्यान रखिए कि केवल धर्मस्थलों में जाना ही संस्कार नहीं है. वास्तव में इंसानियत से बड़ा कोई संस्कार नहीं होता.

अपनी भारत माता को महफूज रखना हम सबकी जिम्मेदारी है. हमें छोटे-छोटे तनावों को दरकिनार करना होगा. हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात याद कीजिए कि हर विषय पर कमेंट करना जरूरी है क्या? बात उनकी सोलह आने सच है कि कमेंट से विषाद फैलता है. जरूरत प्यार बांटने की है. 

मोदी जी जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जी का हाथ अपने हाथ में थाम कर खिलखिलाते हैं तो एक सुखद वातावरण का निर्माण होता है. पूरे देश में अप्रतिम संदेश जाता है. इसलिए पुराने जख्मों को जमींदोज कीजिए और वातावरण में सुखद संदेशों को फैलाइए..!

ब्रिटिश चंगुल से भारत को छुड़ाने वाले गांधीजी की आज पुण्यतिथि है. नफरत ने ही उनकी जान ली थी. उन्होंने न केवल हिंदुस्तान बल्कि पूरी दुनिया को सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा और विश्व बंधुत्व का संदेश दिया था. मत भूलिए कि आप गांधीजी के देश में रहते हैं. यह सद्भाव की धरती है. गर्व से कहिए..सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा!

Web Title: BBC Documentary on Gujrat riots to Pathan boycott, why ruckus in country amid tension at border

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