बलवंत तक्षक का ब्लॉगः कैप्टन के पास आखिर विकल्प क्या हैं?
By बलवंत तक्षक | Published: September 25, 2021 11:09 AM2021-09-25T11:09:33+5:302021-09-25T11:12:42+5:30
कैप्टन सबसे ज्यादा नाराज कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू से हैं। उन्होंने अपने मन की टीस को छुपाया भी नहीं है। साफ कहा है कि वे आने वाले विधानसभा चुनाव में सिद्धू को जीतने नहीं देंगे।
मुख्यमंत्नी पद से हटाए गए कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास विकल्प क्या हैं? जिस तरीके से कैप्टन को मुख्यमंत्नी की कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, उसकी कैप्टन तो क्या, किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी। कैप्टन ने कहा भी है कि तीन हफ्ते पहले उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से अपने इस्तीफे की पेशकश की थी, लेकिन उन्हें मना कर दिया गया था। वे इस बात से आहत हैं कि मोदी लहर को रोकते हुए पंजाब में कांग्रेस को 77 सीटों पर जीत दिलवा कर सत्ता में लाने के बावजूद उन्हें जलील किया गया।
कैप्टन सबसे ज्यादा नाराज कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू से हैं। उन्होंने अपने मन की टीस को छुपाया भी नहीं है। साफ कहा है कि वे आने वाले विधानसभा चुनाव में सिद्धू को जीतने नहीं देंगे। सिद्धू को मुख्यमंत्नी नहीं बनने देना ही जैसे उनका लक्ष्य है। सिद्धू के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार मैदान में उतारने की उनकी घोषणा को लोग कैप्टन के खुद उनके खिलाफ खड़े होने से जोड़कर देखने लगे हैं। लोग जानते हैं कि कैप्टन ने देश में मोदी लहर के बावजूद पूर्व केंद्रीय मंत्नी अरुण जेटली को अमृतसर लोकसभा सीट पर एक लाख से ज्यादा वोटों से मात दी थी। कैप्टन के लिए अगला चुनाव ‘करो या मरो’ का है।
लेकिन सवाल फिर वही है कि कैप्टन के पास विकल्प क्या हैं? जिस ढंग से वे सिद्धू को देश और पंजाब के लिए खतरा करार दे रहे हैं, उससे लगता है कि वे भाजपा को सिद्धू के खिलाफ एक चुनावी मुद्दा दे रहे हैं। कैप्टन जिस ढंग से सिद्धू के खिलाफ आक्रामक रुख अपना रहे हैं, उसे देखते हुए अंदाज लगाया जा रहा है कि क्या वे भाजपा में जा सकते हैं? कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन की वजह से पंजाब में भाजपा की हालत इस समय सबसे खराब है। सवाल है कि ऐसे में कैप्टन को भाजपा से क्या फायदा होगा?
कैप्टन के ताल्लुकात भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से अच्छे हैं। अगर मौजूदा हालात में कैप्टन केंद्र सरकार को कृषि कानून वापस लेने के लिए राजी कर लेते हैं तो स्थितियां बदल सकती हैं। राजनीति में कभी भी कुछ भी संभव है। अगर कृषि कानून वापस हो जाएं और कैप्टन भाजपा में नहीं जाएं तो भी नई पार्टी का गठन कर कोई चुनावी समझौता कर सकते हैं।
अभी कांग्रेस आलाकमान की तरफ से चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्नी बनाए जाने के फैसले को मास्टर स्ट्रोक करार दिया जा रहा है। इस फैसले से कांग्रेस ने सचमुच विपक्षी दलों से एक बड़ा मुद्दा छीन लिया है। भाजपा जहां पूर्व केंद्रीय मंत्नी विजय सांपला को मुख्यमंत्नी का चेहरा घोषित कर अनुसूचित जाति के वोट अपनी तरफ खींचने की रणनीति पर काम कर रही थी, वहीं अकाली दल ने बसपा से चुनावी समझौता कर अनुसूचित जाति के विधायक को उपमुख्यमंत्नी का पद देने का ऐलान किया था। आम आदमी पार्टी तो अभी मुख्यमंत्नी पद का चेहरा ढूंढ़ने में ही लगी है।
ऐसे में कांग्रेस ने पहल करते हुए कैप्टन की जगह अनुसूचित जाति के युवा सिख विधायक चन्नी को मुख्यमंत्नी बना कर विपक्षी दलों से यह मुद्दा ही छीन लिया है। कैप्टन भी इस बात को समझ रहे हैं कि अभी चन्नी के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया देना फायदेमंद नहीं है। जाहिर है कि राज्य के करीब 32 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाताओं को वे नाराज नहीं करना चाहेंगे। इसलिए वे सिर्फ सिद्धू पर ही निशाना साध रहे हैं। पंजाब की कुल 117 विधानसभा सीटों में से 34 सीटें आरक्षित हैं। आने वाले दिनों में अगर कैप्टन केंद्र सरकार को कृषि कानून वापस लेने के लिए राजी कर लेते हैं तो राज्य की राजनीति में उनका ग्राफ बढ़ जाएगा और वे इस स्थिति में होंगे कि कांग्रेस में समर्थक विधायकों को अपने पाले में लेकर सरकार गिरवा दें और पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाए। इससे बाजी उनके हाथ में आने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।
चुनावी वादे पूरे नहीं करने की वजह से जनता में सत्ता विरोधी भावना देखी जा रही थी। सिद्धू भी चुनावी वादों को लेकर कैप्टन को कठघरे में खड़ा करते रहे हैं, लेकिन कुर्सी गंवाने के साथ ही लोगों का फोकस कैप्टन से हट गया है और वे सोचने लगे हैं कि आने वाले चार महीनों में चन्नी क्या करेंगे? क्या चन्नी 32 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाताओं को कांग्रेस की तरफ मोड़ पाएंगे? यह भरोसा कांग्रेस को भी नहीं है। यही वजह है कि जातीय संतुलन साधने के इरादे से जट सिख सुखजिंदर सिंह रंधावा और हिंदू चेहरे ओमप्रकाश सोनी को उपमुख्यमंत्नी की कुर्सी दी गई है।
सब जानते हैं कि राजनीति में कोई किसी के साथ नहीं होता। जिस रंधावा ने कैप्टन को हटवाने में सिद्धू का साथ दिया, सिद्धू ने उन्हीं को मुख्यमंत्नी नहीं बनने दिया। अब जिस ढंग से सिद्धू साये की तरह चन्नी के साथ घूम रहे हैं, इससे वे लोगों को यही संदेश दे रहे हैं कि उन्होंने ही चन्नी को मुख्यमंत्नी की कुर्सी पर बैठाया है और चुनावों के बाद वे इस कुर्सी को हासिल कर लेंगे। कैप्टन भी इस बात को समझते हैं, इसीलिए वे सिद्धू को पाक परस्त करार देते हुए पंजाब के लोगों में उनके खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
कुल मिलाकर यह कि कांग्रेस को इस समय विपक्षी दलों से ज्यादा डर कैप्टन से ही है। जहां विपक्षी दल कैप्टन के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं, वहीं कैप्टन भी खुद को कांग्रेस विरोधी रणनीति के लिए तैयार करने में जुटे हैं। इतना तय है कि कैप्टन अपने सिसवां फार्म हाउस में बैठकर चुपचाप चुनावी तमाशा देखने वालों में नहीं हैं। आगे क्या करेंगे? यह जानने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।