अवधेश कुमार का नजरियाः आजादी के उद्देश्यों को पूरा करें
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 15, 2018 02:07 PM2018-08-15T14:07:55+5:302018-08-15T14:07:55+5:30
यह आजादी के बाद की यात्रा का सम्यक मूल्यांकन करने के साथ जो कुछ छूट गया या नहीं किया जा सका उसे पूरा करने का संकल्प लेने का भी दिवस होता है। इसका आधार क्या हो सकता है?
अवधेश कुमार
अंग्रेजों से आजाद हुए हमें 71 वर्ष हो गए। यह किसी देश की जीवन यात्र में छोटा समय नहीं होता। इस दौरान देश और दुनिया ने अनेक बदलाव देखे हैं। आजादी का महान दिवस निस्संदेह एक बड़ा उत्सव होता है। यह दिन आजादी के लिए संघर्ष करने वाले दीवानों को याद करने तथा उनसे प्रेरणा लेने का भी होता है। यह आजादी के बाद की यात्रा का सम्यक मूल्यांकन करने के साथ जो कुछ छूट गया या नहीं किया जा सका उसे पूरा करने का संकल्प लेने का भी दिवस होता है। इसका आधार क्या हो सकता है?
जब हम आजादी के दीवानों को याद करते हैं तो वे केवल चेहरे नहीं विचार थे। यानी आजादी के बारे में उनके कुछ विचार थे जिसके लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। तो मूल बात यह है कि स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान हमारे उन मनीषियों ने जो सपने देखे, स्वतंत्रता का जो उद्देश्य घोषित किया वे पूरे हुए या पूरे होने की दिशा में हम संतोषजनक प्रगति कर पाए हैं? यह ऐसा प्रश्न है जिस पर हर भारतीय को मंथन करना चाहिए।
निस्संदेह, यदि 15 अगस्त 1947 से तुलना करेंगे तो हमारी आर्थिक, सामरिक शक्ति बहुगुणित हुई है। 193 करोड़ के बजट से हम 24 लाख करोड़ से ज्यादा के बजट तक पहुंच गए हैं। एक समय गरीब और पिछड़ा भारत आज दुनिया का छठा सबसे अमीर और छठी अर्थव्यवस्था के आकार वाला देश बन गया है। निश्चय ही सामान्य अर्थो में यह हर भारतीय के लिए गर्व का विषय होना चाहिए। जो महाशक्तियां एक समय हमें हेय दृष्टि से देखती थीं आज हमसे समानता के आधार पर दोस्ती कर रही हैं, सामरिक साझेदारी कायम कर रही हैं। विश्व पटल पर भारत की बात को आज ध्यान से सुना जाता है। भारतीयों ने हर क्षेत्र में अपना झंडा गाड़ा है। भारत इतना आगे बढ़ जाएगा इसकी कल्पना भी करने वाला कोई नहीं था। विन्स्टन चर्चिल ने तो भविष्यवाणी की थी कि आजादी मिलने के बाद भारत खंडित हो जाएगा, वह लोकतांत्रिक देश नहीं रह पाएगा। उसे भारत की क्षमता पर विश्वास ही नहीं था। वह उस मानसिकता का अंग्रेज प्रधानमंत्री था जो मानता था कि वे भारत को सभ्य बनाने के लिए उस पर शासन कर रहे हैं। उनके शासन में ही भारत की एकता बनी हुई है। आज भी ऐसे अंग्रेज हैं जो मानते हैं कि भारत को लोकतंत्र, आधुनिक प्रशासन, आधुनिक अर्थव्यवस्था सब उनकी देन है। अगर ऐसा ही है तो भारत के साथ ही उन्होंने एक और देश पाकिस्तान बना दिया था। उसका ढांचा भी वही था। वह क्यों नहीं भारत जैसा बन सका? वह आजादी के 24 साल बाद ही टूट गया और आज एक अराजक देश के रूप में दुनिया के लिए नासूर बनकर खड़ा है। ठीक इसके विपरीत पूरी दुनिया भारत को एक सफल संसदीय लोकतांत्रिक देश मानती है।
वास्तव में यह भारत की अंत:शक्ति थी जिसके बारे में महात्मा गांधी से लेकर हमारे सभी महान नेताओं को कोई शंका नहीं थी। वे आजादी को सिर्फ अंग्रेजी राज से मुक्ति नहीं मानते थे, बल्कि भारत को दुनिया के लिए प्रेरक और आदर्श देश बनाने का उनका सपना था। क्या हम आज आजादी के दिवस पर अपने पूर्वज नेताओं के सपनों को पूरा करने का संकल्प ले सकते हैं? आज हमें गांधीजी की एक बात जरूर याद करनी चाहिए। वे बार-बार कहते थे कि हमारी लड़ाई अंग्रेजों से नहीं है, अंग्रेजियत से है। यानी कुछ अंग्रेज यहां रह जाएं उससे समस्या नहीं, अंग्रेजियत का अंत होना चाहिए। अंग्रेजियत का अर्थ व्यापक था। क्या हम उस दिशा में नए सिरे से काम आरंभ कर सकते हैं?