प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के दूसरी बार पद ग्रहण करने के बाद पहली विदेश यात्ना के लिए मालदीव के चयन का विशेष महत्व है. मोदी की पड़ोसी प्रथम नीति के साथ इसके रणनीतिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक महत्व भी हैं. हालांकि मोदी पिछले वर्ष नवंबर में राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलेह के शपथ ग्रहण समारोह में गए थे और उनके साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल सहित एक प्रतिनिधिमंडल भी था, लेकिन वह पूर्ण द्विपक्षीय यात्ना नहीं थी. कायदे से यह पहली द्विपक्षीय यात्ना थी.
अपने पहले कार्यकाल में दक्षिण एशिया में एकमात्न देश मालदीव ही था जहां वो चाहकर भी द्विपक्षीय यात्ना नहीं कर पाए थे. इसका कारण 2013 के चुनाव के बाद वहां आई राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की सरकार थी जिसने चीन के पक्ष में समर्पण करने के साथ खुलेआम भारत विरोधी रु ख अपना लिया था. वर्तमान सरकार ने शपथ ग्रहण के साथ भारत के साथ अपनी परंपरागत घनिष्ठतम संबंधों की नीति को अपनाया और भारत ने आगे बढ़कर प्रत्युत्तर दिया.
सोलेह पद संभालने के बाद पहली विदेश यात्ना के रूप में दिसंबर में भारत आए और उस समय हुए समझौतों से गाड़ी पूरी तरह पटरी पर लौट आई. मालदीव की सबसे बड़ी समस्या अब्दुल्ला यामीन द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के नाम पर चीन से लाखों डॉलर का कर्ज लेना था जिससे देश चीन के कर्ज जाल में फंस गया. सोलेह की यात्ना के दौरान करीब 3 अरब डॉलर के चीनी कर्ज में फंसे मालदीव को 1.4 अरब डॉलर की वित्तीय मदद की घोषणा सहित कई समझौते किए गए. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी की यात्ना के साथ दोनों देशों ने अपने आर्थिक, सामरिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंधों को उससे काफी आगे ले जाकर और सशक्त किया है.
प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी की यात्ना में मुख्य पांच कार्यक्रम थे- राष्ट्रपति सोलेह, अन्य मंत्रियों और अधिकारियों के साथ द्विपक्षीय वार्ता व समझौते, संसद के अध्यक्ष मोहम्मद नशीद के साथ वार्ता, मालदीव का विदेशियों को दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान ग्रहण करना, कुछ परियोजनाओं का उद्घाटन तथा संसद को संबोधन. मोदी की कूटनीति का अपना तरीका है जिसमें वे हर कार्यक्रम को भावनाओं और दोनों देशों की परस्पर एकता दर्शाने वाली सभ्यता-संस्कृति के साथ आबद्ध करके उसे विशेष स्वरूप देते हैं.
इस यात्ना से संबंधों का ज्यादा सुदृढ़ीकरण हुआ तथा स्वाभाविक भाईचारे, दोस्ती और कठिन परिस्थितियों में बिना बुलाए मदद के लिए खड़ा रहने का विश्वास दिला प्रधानमंत्नी मोदी ने मानवता और भावुकता की आवश्यक दीवार, स्तंभ और रंग-रोगन के साथ स्थिर रिश्तेदारी के भवन को पुन: खड़ा कर दिया. अब भारत और मालदीव अपने संबंधों को लेकर निश्चिंत रह सकते हैं.