अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: महाराष्ट्र पर कोरोना की मार, आखिर कैसे निकलेंगे इस समस्या से बाहर

By अमिताभ श्रीवास्तव | Published: May 1, 2021 02:25 PM2021-05-01T14:25:50+5:302021-05-01T19:22:38+5:30

पूरा देश इस समय कोरोना की चपेट में है। हालांकि सबसे ज्यादा असर महाराष्ट्र पर पड़ा है। कोरोना की पहली लहर से ही महाराष्ट्र पर कोरोना की मार जारी है।

Amitabh Srivastava blog: Maharashtra situation amid Corona epidemic | अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: महाराष्ट्र पर कोरोना की मार, आखिर कैसे निकलेंगे इस समस्या से बाहर

महाराष्ट्र पर कोरोना की मार (फाइल फोटो)

कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने महाराष्ट्र के समूचे तंत्र को तहस-नहस कर दिया है. संकट में किसी को दोष दिया जाए, यह उचित नहीं होगा. मगर लगातार दूसरे साल महाराष्ट्र दिवस का लॉकडाउन और शोकाकुल माहौल में गुजरना केवल वैश्विक महामारी की मार नहीं है. 

यह कहीं न कहीं राज्य की कमजोरियों की ओर इशारा भी है. संभव है कि वे विकास की अंधी दौड़ में कहीं गौण हुई हों या नजरअंदाज कर दी गई हों.

देश में पिछले साल कोविड-19 संक्रमण की शुरुआत केरल से हुई थी, लेकिन बहुत जल्दी महाराष्टÑ भी महामारी की जकड़ में आ गया था. तब सब कुछ नया था, मगर आक्रमण बड़ा था. फिर भी मुकाबला हुआ. इस साल जनवरी-फरवरी तक माना जा रहा था कि महामारी चली गई और बीमारी रह गई है. 

मार्च में अचानक फिर बड़ा हमला हुआ और अप्रैल तक राज्य भयावह स्थिति में आ चुका है. रोजाना देश के नए संक्रमित मामलों में राज्य का स्थान पहला होता है. संभव है कि इसके कारण अनेक हों, जांच प्रक्रिया में अधिक गंभीरता हो, किंतु बीमारी से जुड़ी समस्याएं और उनका निदान नहीं हो पाना क्षमताओं पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है. 

औद्योगिक राज्य होने के बावजूद आॅक्सीजन की कमी, चिकित्सा क्षेत्र में सबसे आगे होकर भी दवाओं की कमी और उनके लिए हाथ फैलते नेता बार-बार स्थितियों को न केवल गंभीर ही बताते हैं, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की कमजोरी की पोल खोलते हैं. 

कोरोना की दूसरी लहर पूरे देश को करीब 11 महीने का अनुभव देने के बाद आई. जब पहली लहर जाने पर अपनी क्षमताओं पर पीठ-थपथपाई जा रही थी तो दूसरी लहर में अव्यवस्थाओं के फैलने पर भी सवाल खड़े होना लाजमी है. स्पष्ट है कि राज्य अपनी विकासगाथा लिखने में कई जमीनी सुधारों और जरूरतों को नजरअंदाज कर गया.

राज्य में बड़ी संख्या में मेडिकल कॉलेज होने के बावजूद 1188 लोगों पर एक चिकित्सक है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक हजार लोगों पर एक चिकित्सक होना चाहिए. 36 जिलों के राज्य में 23 जिला अस्पताल, 19 चिकित्सा महाविद्यालयों से संबद्ध अस्पताल, 9 सिविल अस्पताल हैं. 

इनके अलावा उप जिला अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जैसे अनेक स्तर पर चिकित्सकीय सुविधाएं हैं. यही वजह है कि चिकित्सा का बड़ा बोझ बड़े शहरों पर आता है. हर बीमारी के लिए लोगों को शहरों की तरफ भागना पड़ता है. मगर कोरोना के दौर में सबसे पहले बड़े शहर ही प्रभावित हुए तो छोटे शहरों के मरीजों की सुध कहां ली जाएगी, यह सवाल खड़ा हो गया है. 

यहीं पर व्यवस्था कठघरे में खड़ी हो जाती है. वर्तमान समय में मुंबई, पुणे, नागपुर, नासिक, औरंगाबाद बड़े संकट के दौर से गुजर रहे हैं, वे अन्य शहरों को अपनी सुविधाओं का लाभ कैसे दे पाएंगे?

स्वास्थ्य सेवाओं के ताजा हालात सामने हैं, बावजूद इसके कि राज्य की 45.2 प्रतिशत आबादी शहरी भाग में रहने के लिए मजबूर है. राज्य के गठन के समय यह आंकड़ा 28.2 प्रतिशत था. साफ है कि विकास के असंतुलन से घटते जीविका के साधनों से ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में पलायन हुआ है. 

इसका परिणाम यह हुआ है कि शहरी व्यवस्थाएं चरमरा रही हैं. फिर भी आपात स्थिति में ग्रामीणों के समक्ष शहर में शरण लेने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं है. महाराष्टÑ को कृषि की दृष्टि से भी देश का समृद्ध राज्य माना जाता है. किंतु मराठवाड़ा और विदर्भ जल संकट के चलते कृषि में बुरी तरह पिछड़ गए हैं. उनके लिए कोई ठोस उपाय योजना सतह पर नहीं आ पाई है.

अब तो उद्योगों के विस्तार में भी बाधाएं आ रही हैं. हालांकि महाराष्टÑ वर्षा की दृष्टि से अच्छा क्षेत्र माना जाता है और अनेक इलाकों में प्रचुर मात्रा में जल है. अनेक बार जल प्रबंधन और बंटवारे पर चर्चाएं हुई हैं, लेकिन उनका नतीजा कुछ भी नहीं निकला. इसी कारण लंबित समस्याओं के बीच कोई नई परेशानी आती है तो वह स्वाभाविक रूप से बड़ी दिखने लगती है. कोरोना का संकट भी यही कुछ बयां कर रहा है. स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर आर्थिक मोर्चों पर गंभीर चोट साफ नजर आने आ रही है.

महाराष्ट्र के गठन के 61 साल पूरे होने के अवसर पर आज इतिहास और भूगोल के सहारे पुराने ख्यालों में खोने से बेहतर यह होगा कि आगामी एक दशक की चिंताओं को सूचीबद्ध किया जाए. सौभाग्य से राज्य में अनेक ऐसे नेताओं का जमावड़ा है, जो राज्य के गठन से लेकर वर्तमान चिंताओं के साक्षी हैं. सभी नेताओं को एक साथ बैठकर दलीय भावना को भुलाकर अब राज्य की चुनौतियों पर चर्चा करना आवश्यक हो चला है.

देश महाराष्ट्र को उन्नति और प्रतिष्ठा के साथ देखता है. ऐसे में जब राज्य की अपनी व्यवस्थाएं लड़खड़ाती हैं तो सवाल केवल सत्ताधारी पक्ष पर ही नहीं, बल्कि उस हर व्यक्ति पर उठते हैं, जिसने राज्य की प्रगति में अपना योगदान दिया है. आज आखिर कौन-सी कमियां हैं, जो राज्य को पीछे खींच रही हैं, उनका अध्ययन होना जरूरी है.

संभव है कि अनेक मामलों में राजनीति बाधा बनती हो, लेकिन महाराष्ट्र ने लंबे समय तक केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सत्ता देखी है, इसलिए कुछ सालों का सहारा असफलता से मुंह छिपाने के लिए नहीं लिया जा सकता है.

इसलिए यह मानने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि राज्य को अब ऐसे पुनरुत्थान की आवश्यकता है, जिसमें एक ऐसे संतुलित विकास का खाका बने, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, आधारभूत सुविधा जैसी सामान्य जरूरतों को हर स्तर और हर तबके तक पहुंचाए. तभी राज्य के छह दशकों की बुलंदियों की चर्चा ताजा संदर्भों में जुड़ पाएगी. वर्ना कोरोना की दूसरी लहर जैसी कोई परेशानी एक ही झटके में सारी बातें को बेमायने कर जाएगी.

Web Title: Amitabh Srivastava blog: Maharashtra situation amid Corona epidemic

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