ब्लॉगः अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और भारत सहित दुनिया के कई देश चीनी ‘साइबर वॉर’ से त्रस्त
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 26, 2021 06:03 PM2021-07-26T18:03:27+5:302021-07-26T18:05:04+5:30
पिछले वर्षों में अमेरिका और भारत के कई सैन्य संस्थानों पर कई बार साइबर हमले हुए. यह हमले खुफिया सूचना जुटाने के मकसद से किए गए थे. इन हमलों के पीछे चीनी हैकर्स का हाथ था.
अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और भारत सहित दुनिया के कई देश चीनी ‘साइबर वॉर’ से त्रस्त हैं. साइबर स्पेस में लड़ी जाने वाली जंग को ‘साइबर वॉर’ कहते हैं. पश्चिमी देशों और चीन के माहिर हैकर्स के बीच साइबर वॉर कई वर्षो से चल रही है.
पिछले वर्षों में अमेरिका और भारत के कई सैन्य संस्थानों पर कई बार साइबर हमले हुए. यह हमले खुफिया सूचना जुटाने के मकसद से किए गए थे. इन हमलों के पीछे चीनी हैकर्स का हाथ था. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब चीनी हैकर्स ने पश्चिमी देशों को निशाना बनाया, लेकिन इस बार निशाने पर खुफिया सूचनाएं थीं. लिहाजा नाटो और यूरोपीय संघ ने सभी सदस्य देशों को अलर्ट जारी कर दिया.
इस बार चेतावनी नहीं दी गई है बल्कि साइबर वॉर की औपचारिक रूप से घोषणा की गई है. चीन भविष्य में साइबर युद्ध होने पर खुद को लाभ की स्थिति में रखना चाहता है. यही कारण है कि उसने साइबर स्पेस में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं. चीन अपनी साइबर क्षमता को कई तरह से लैस कर रहा है.
वेबसाइट्स को ब्लॉक करने, साइबर कैफों में गश्त लगाने और मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर निगरानी रखने के लिए बड़ी संख्या में साइबर पुलिस (हैकर्स) तैनात कर रखी है. दुनिया चीन की साइबर मोर्चेबंदी से परेशान है. अमेरिकी अधिकारियों ने हैकिंग के संबंध में सरकार को एक रिपोर्ट पेश की है. इसमें कहा गया है कि चीनी हैकर्स ने अमेरिकी एजेंसियों पर साइबर हमले बढ़ा दिए हैं.
अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने चीन के खिलाफ एक बड़ा साइबर हमला करने का आरोप लगाया है. ये हमला माइक्रोसॉफ्ट एक्सचेंज सर्वर पर किया गया था जिससे दुनिया भर में कम-से-कम 30 हजार सर्वर प्रभावित हुए थे. ब्रिटेन ने इस हमले के लिए चीनी सरकार द्वारा समर्थित पक्षों को जिम्मेदार ठहराया है.
वहीं, यूरोपीय संघ ने कहा है कि ये हमला ‘चीनी क्षेत्र’ से किया गया है. चीन की मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट सिक्योरिटी पर भी व्यापक जासूसी गतिविधियों को अंजाम देने एवं ‘दुस्साहस भरा बर्ताव’ करने का आरोप लगाया गया है. अमेरिका और ब्रिटेन पहले भी दूसरे देशों द्वारा चलाए गए साइबर हमलों के खिलाफ खुलकर सामने आते रहे हैं. लेकिन ताजा मामले में यूरोपीय संघ द्वारा चीन का नाम लिया गया है जो कि बताता है कि हैकिंग की इस घटना को कितनी गंभीरता से लिया गया है.