आलोक मेहता का ब्लॉग: संविधान और कर्तव्यों की कितनी चिंता हुई?

By अनुराग आनंद | Published: December 22, 2019 04:53 AM2019-12-22T04:53:22+5:302019-12-22T04:53:22+5:30

देश में ऐसे लाखों लोग हैं, जिनके पास जन्म का अधिकृत प्रमाणपत्न नहीं है और न ही बच्चा होने पर माता-पिता उसे मूलभूत अधिकार एवं सुविधाएं उपलब्ध करवा पाते हैं. सैकड़ों गांवों में अब भी ऐसे स्वास्थ्य केंद्रों-प्रसूति गृहों का अभाव है, जहां बच्चे को जन्म दिया जा सके. मोदी सरकार ने बिजली-गैस कनेक्शन देने का अभियान जरूर चलाया है, लेकिन अभी भी मंजिल दूर है. चुनावों में   किए गए वादे भी पूरे नहीं हो पाए हैं.

alok mehta blog How worried was the constitution and duties? | आलोक मेहता का ब्लॉग: संविधान और कर्तव्यों की कितनी चिंता हुई?

आलोक मेहता का ब्लॉग: संविधान और कर्तव्यों की कितनी चिंता हुई?

Highlightsभारतीय संविधान के अनुच्छेद 6 के अंतर्गत भारत में जन्मे अथवा भारतीय माता-पिता से परदेस में जन्मे बच्चे को भारतीय नागरिकता का अधिकार है. नागरिकता के साथ संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 में मूल अधिकारों का प्रावधान है. मूल अधिकारों की गारंटी 6 श्रेणियों में है.

आलोक मेहता 

लोकतंत्न में संविधान के अधिकारों की आवाज उठाना स्वाभाविक है. उसमें नागरिकता का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण है. इन दिनों इसी मुद्दे पर बहस और हंगामा मचा हुआ है. कुछ राजनीतिक दलों ने इसे हिंसक आंदोलन से सत्ता उखाड़ने का हथियार भी समझ लिया है. सवाल यह है कि आजादी के 72 साल बाद भी क्या भारत में जन्मे हर नागरिक को भारतीय होने के सभी अधिकार तथा सुविधाएं मिल पा रही हैं?

देश में ऐसे लाखों लोग हैं, जिनके पास जन्म का अधिकृत प्रमाणपत्न नहीं है और न ही बच्चा होने पर माता-पिता उसे मूलभूत अधिकार एवं सुविधाएं उपलब्ध करवा पाते हैं. सैकड़ों गांवों में अब भी ऐसे स्वास्थ्य केंद्रों-प्रसूति गृहों का अभाव है, जहां बच्चे को जन्म दिया जा सके. मोदी सरकार ने बिजली-गैस कनेक्शन देने का अभियान जरूर चलाया है, लेकिन अभी भी मंजिल दूर है. चुनावों में   किए गए वादे भी पूरे नहीं हो पाए हैं.

अमेरिका के रिपब्लिकन नेता देश में जन्मे हर बच्चे की पहचान अमेरिकी नागरिक के रूप में होने और उसे सभी अमेरिकी अधिकार मिलने की अपनी संवैधानिक व्यवस्था को बदलने की मांग करते रहे हैं. अमेरिका में गुलामी की अमानवीय पुरानी व्यवस्था खत्म करते समय यह प्रावधान हुआ था कि जिसका जन्म इस देश में हो गया, वह अमेरिकी नागरिक हो गया.

नतीजा यह हुआ कि भारत-चीन सहित दुनिया के कई देशों के लोग अपने बच्चे का जन्म वहां कराने के तरीके निकालते रहे. फिर कानूनी या अवैध रूप से प्रवेश करने वालों की संख्या बढ़ती चली गई. हाल के वर्षो में अमेरिकी प्रशासन सख्त होता गया है और अवैध प्रवेश रोकने के लिए मैक्सिको सीमा पर तो दीवार ही खड़ी की जा रही है.

नागरिकता देना दूर रहा, अमेरिका तो दस-पंद्रह वर्षो से काम कर रहे भारतीय या अन्य देशों के परिवार के दूसरे सदस्य को काम और स्थायी वीजा देने के बजाय देश से निकल जाने को बाध्य करने लगा है. इसलिए भारत के नागरिकता कानून या अन्य आंतरिक मसलों पर उंगली उठाने का उसका कोई अधिकार नहीं बनता. कुछ वर्ष पहले तक अमेरिका में हिस्पैनिक समुदाय के लोगों की बदतर स्थिति को तो हम जैसे पत्नकार देखकर लिख चुके हैं.

बहरहाल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 6 के अंतर्गत भारत में जन्मे अथवा भारतीय माता-पिता से परदेस में जन्मे बच्चे को भारतीय नागरिकता का अधिकार है. नागरिकता के साथ संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 में मूल अधिकारों का प्रावधान है. मूल अधिकारों की गारंटी 6 श्रेणियों में है - (1) समानता का अधिकार, जिसमें धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिबंध (2) जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्नता, अभिव्यक्ति और किसी भी क्षेत्न में रहने-बसने, काम करने का अधिकार (3) शोषण के विरुद्ध अधिकार - बालश्रम और अमानवीय व्यवहार के निषेध (4) अंत:करण का और किसी भी धर्म को मानने और उसके प्रचार का अधिकार (5) अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति, भाषा-लिपि बनाए रखने, अपने शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार मिले हुए हैं.

आज अल्पसंख्यकों के नाम पर आंदोलन कर रहे नेताओं-सांसदों ने संविधान की शपथ लेने के बावजूद इन मूलभूत अधिकारों के संरक्षण के लिए कितना काम किया है ? क्या असमानता की खाई घटने के बजाय बढ़ती नहीं गई है? कांग्रेस के राज में सलमान खुर्शीद जैसे शिक्षित और काबिल अल्पसंख्यक मंत्नालय के मंत्नी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्नी रहे, फिर भी अल्पसंख्यकों के लिए बजट के 650 करोड़ रुपए खर्च क्यों नहीं हुए? बिहार के लालू या नीतीश राज में अल्पसंख्यकों की स्थिति क्यों नहीं सुधरी?

भाजपा सरकार को हिंदुत्ववादी कहकर पूर्वाग्रही होने का आरोप लगाया जाता है, लेकिन गैर-भाजपा शासित राज्यों में अल्पसंख्यक छात्नों की शिक्षा और रोजगार की स्थिति बदतर क्यों है?  

जातिगत राजनीति क्या संविधान सम्मत कही जा सकती है? इससे भी महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि अमेरिका या यूरोपीय देशों के लोकतांत्रिक अधिकारों से तुलना करने और उनकी अर्थव्यवस्था से प्रतियोगिता करने वाले नेता और संगठन संविधान पर अमल के लिए आवश्यक कर्तव्यों के पालन और उनको व्यापक जागरूकता के साथ निभाने के लिए कितने प्रयास करते हैं? संसद द्वारा पारित कानूनों को नहीं स्वीकारने की घोषणा करने में भी उन्हें कोई हिचक नहीं होती.

कई दलों ने अपने संविधान में मद्य निषेध और सादगीपूर्ण जीवन की अनिवार्यता लिखी है, लेकिन कितने नेता उनका पालन कर रहे हैं? धूम्रपान निषेध और सड़क परिवहन के नए नियम-कानून के सामान्य कर्तव्य का पालन दूर रहा, उनका प्रतिकार और शराब की अधिकाधिक बिक्री से राज्य सरकार की आमदनी बढ़ाने का प्रयास होता है. कर्तव्य नहीं स्वीकारने की पराकाष्ठा यह है कि संविधान की शपथ लिए हुए मुख्यमंत्नी सड़क पर धरना-आंदोलन और संसद द्वारा पारित कानून के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के जरिए जनमत संग्रह तक की शर्मनाक मांग करने लगे हैं?

दुनिया के किस देश में राज्यों में बैठे सत्ताधारी इस हद तक अपनी ही राष्ट्रीय सरकार और नीतियों का विरोध करते हैं? अपनी सेना को भड़काते हैं? जब नेता स्वयं अधिकारियों, शिक्षकों, डॉक्टरों, इंजीनियरों को अपने कर्तव्यों से हटकर गलत काम करवाते रहेंगे तो अप्रत्यक्ष रूप से संविधान के तहत सामान्य नागरिकों के हितों को नुकसान नहीं पहुंचेगा? अधिकारों के साथ कर्तव्यों की याद दिलाकर उसके पालन के लिए भी अभियान निरंतर चलना चाहिए.

Web Title: alok mehta blog How worried was the constitution and duties?

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