पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता के विचार को मजबूत करने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने सभी सरकारी दस्तावेजों में माता का नाम शामिल करना एक मई से अनिवार्य कर दिया है। इसी क्रम में अब भूमि अभिलेख विभाग ने सातबारा पर भी आवेदक के नाम के बाद उनकी मां का नाम जोड़ने का फैसला किया है।
जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल दस्तावेज, संपत्ति दस्तावेज, आधार कार्ड और पैन कार्ड जैसे सभी सरकारी दस्तावेजों पर माता का नाम शामिल करना पहले ही अनिवार्य कर दिया गया है।
महिलाओं के व्यापक और सर्व-समावेशी विकास के मद्देनजर इस फैसले की सराहना की जानी चाहिए। आज भी वैश्विक स्तर पर महिलाओं को पुरुषों की तुलना में आर्थिक भागीदारी के कम अवसर हैं, बुनियादी और उच्च शिक्षा तक उनकी पहुंच कम है। स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए उन्हें अधिक जोखिम उठाना पड़ता है। ऐसे में इस तरह के छोटे-छोटे फैसले बड़ा असर दिखा सकते हैं। इनके दूरगामी परिणाम मिलेंगे।
महिलाओं को उनके अधिकारों की गारंटी देना और उन्हें अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने के अवसर प्रदान करना न केवल लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिए, बल्कि हमारे विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भी जरूरी है। आत्मविश्वास से भरी सशक्त महिलाएं और लड़कियां अपने परिवार, समाज और देश के स्वास्थ्य और उत्पादकता में योगदान देती हैं, जिसका लाभ सभी को मिलता है।
माताओं को पर्याप्त महत्व और अधिकार देना एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है जिससे महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ेगा। उनके लिए सर्वसम्पन्न और विकसित होने हेतु संभावनाओं के नए विकल्प खुल सकते हैं। महिलाएं समाज के लगभग आधे भाग का प्रतिनिधित्व करती हैं लेकिन उनकी कुल-मिलाकर सहभागिता बराबरी की नहीं है। शिक्षा, स्वास्थ्य, खेलकूद, कानून, अभियांत्रिकी, प्रबंधन के साथ-साथ राजनीति के क्षेत्र में भी महिलाएं आगे आ रही हैं और अपनी स्थिति को सुधारने के प्रयास में लगी है।
महिलाएं राष्ट्र के विकास में उतना ही महत्व रखती हैं जितना कि पुरुष। अतः देश का समग्र विकास महिलाओं की भागीदारी के बगैर संभव नहीं है। समाज की प्रत्येक आवश्यकता को पूरा करने में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती है। ऐसे में इस तरह के सरकारी प्रयास देश के विकास में उनकी सहभागिता को सम्मानित करते हैं।