ऐसे सबूतों से पाकिस्तान की साख नहीं बढ़ती, राजेश बादल का ब्लॉग

By राजेश बादल | Published: November 17, 2020 04:28 PM2020-11-17T16:28:56+5:302020-11-17T16:30:48+5:30

दुनिया को यह याद दिलाने की जरूरत है कि कुख्यात उग्रवादी ओसामा बिन लादेन को अरसे तक पाक सेना ने खुफिया ठिकाने पर छिपा कर रखा था और जनरल परवेज मुशर्रफ सारे संसार को बता रहे थे कि ओसामा उनके मुल्क में नहीं है. जब अमेरिका ने उसे मार गिराया, तब पोल खुली.

aaj ka taja samachar Pakistan imran khan terrorist international credibility increase Rajesh Badal's blog | ऐसे सबूतों से पाकिस्तान की साख नहीं बढ़ती, राजेश बादल का ब्लॉग

पाकिस्तान को इस संगठन ने ग्रे सूची में डाला तब इसकी अगुवाई पाकिस्तान का मित्न देश चीन ही कर रहा था. (file photo)

Highlightsघर में खतरनाक आतंकवादियों को पालने-पोसने को अब तक बहादुरी मानता आया यह देश अब उससे पल्ला झाड़ रहा है.अतीत की स्लेट पर उसने बीते सत्तर साल में जो अमिट इबारत लिखी है, वह किसी भी रसायन से साफ होने वाली नहीं है. काली सूची में नाम आते ही पाकिस्तान को लेने के देने पड़ जाएंगे.

पाकिस्तान ने एक नया चुटकुला गढ़ा है. अंतरराष्ट्रीय बिरादरी चाहे तो उस पर ठहाके लगा सकती है. ‘नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली’ वाली कहावत इस मुल्क पर एकदम सटीक बैठ रही है.

अपने घर में खतरनाक आतंकवादियों को पालने-पोसने को अब तक बहादुरी मानता आया यह देश अब उससे पल्ला झाड़ रहा है, लेकिन उसे समझना चाहिए कि अतीत की स्लेट पर उसने बीते सत्तर साल में जो अमिट इबारत लिखी है, वह किसी भी रसायन से साफ होने वाली नहीं है. क्या दुनिया को यह याद दिलाने की जरूरत है कि कुख्यात उग्रवादी ओसामा बिन लादेन को अरसे तक पाक सेना ने खुफिया ठिकाने पर छिपा कर रखा था और जनरल परवेज मुशर्रफ सारे संसार को बता रहे थे कि ओसामा उनके मुल्क में नहीं है. जब अमेरिका ने उसे मार गिराया, तब पोल खुली.

इसके बाद पाक संसद ने ओसामा को शहीद का दर्जा दिया था. जनरल मुशर्रफ कई बार मीडिया को बता चुके हैं कि उनके देश ने ही वर्षो तक आतंकवादियों को प्रशिक्षण दिया है. खुद प्रधानमंत्नी इमरान खान ने भी माना था कि पाक में चालीस हजार से अधिक दहशतगर्द मौजूद हैं. इसके बाद वहां के एक काबीना मिनिस्टर ने पुलवामा में भारतीय जवानों के नृशंस हत्याकांड में भी पाकिस्तान का हाथ गर्व के साथ स्वीकार किया था. क्या यह भी पाकिस्तान के मुंह पर तमाचा नहीं है कि वह लगातार कई साल से फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की ग्रे सूची में बना हुआ है.

इसका कारण यह है कि उसने अपने देश में आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की है. तीन सप्ताह पहले ही पेरिस में इस प्रतिष्ठित संस्था की बैठक हुई थी. बैठक में तुर्की को छोड़कर बाकी सारे देश पाकिस्तान के विरोध में थे. इसमें फैसला हुआ था और बताने की आवश्यकता नहीं कि इसमें भारत का कोई हाथ नहीं था.

जब पाकिस्तान को इस संगठन ने ग्रे सूची में डाला तब इसकी अगुवाई पाकिस्तान का मित्न देश चीन ही कर रहा था. स्मरण कराने की जरूरत नहीं कि चीन भारत के इशारे पर काम नहीं करता. गनीमत तो यह रही कि पाकिस्तान को कुछ महीनों की मोहलत कोरोना के कारण मिल गई और उसे ब्लैकलिस्ट नहीं किया गया. काली सूची में नाम आते ही पाकिस्तान को लेने के देने पड़ जाएंगे.

पिछले एक सप्ताह के दरम्यान सीमा पर गोलीबारी में दोनों देशों के करीब डेढ़ दर्जन फौजी और नागरिक मारे गए हैं. आमतौर पर दिवाली और ईद जैसे त्यौहारों पर मिठाई और शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करने की परंपरा रही है. मगर इस बार पाकिस्तान की खूनी आतिशबाजी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दोनों देशों के रिश्तों में सद्भावना की संभावनाएं दिनोंदिन बारीक और महीन होती जा रही हैं. इसका आधार गोलीबारी के बाद विदेश मंत्नी शाह महमूद कुरैशी और मेजर जनरल बाबर इफ्तिखार की पत्नकार वार्ता है, जिसमें उन्होंने हिंदुस्तान पर ही आतंकवाद को संरक्षण देने का आरोप लगाया है.

उनका कहना है कि भारत आतंकवादियों को प्रशिक्षण दे रहा है. ये आतंकवादी उनके देश में अस्थिरता फैला रहे हैं. पाकिस्तान का आरोप है कि हिंदुस्तान उसके सभी प्रदेशों में आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा दे रहा है. सिंध में अल्ताफ हुसैन को वह भारत का एजेंट बताता है, जो अलग सिंध के लिए आंदोलन बरसों से चला रहा है. आज तक पाकिस्तान को उसमें भारत की भूमिका नजर नहीं आई. बलूचिस्तान में चल रहे अलगाववादी आंदोलन को पाकिस्तान ने अपनी फौज के जरिये जिस तरह कुचला है, उसे किसी सभ्य देश की कार्रवाई नहीं माना जा सकता.

उसने बलूचिस्तान में वायुसेना से हमले किए हैं, थलसेना वहां टैंक लेकर चढ़ाई करने गई थी. क्या अपनी ही जनता के साथ किसी देश ने इतिहास में ऐसी क्रूर कार्रवाई की है? बलूचिस्तान में भारत प्रेम के बीज तो सदियों पुराने हैं.

वहां बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को लोग आज भी मानते हैं. संदर्भ के तौर पर बता दूं कि जब 1971 में बांग्लादेश युद्ध हुआ और पाकिस्तान का बंटवारा हो गया तो बलूचिस्तान में भी आजादी के नारे लगे थे. वहां जुलूस निकले, जिनमें भारतीय प्रधानमंत्नी इंदिरा गांधी और तत्कालीन थल सेनाध्यक्ष जनरल मानेक शॉ की तस्वीरों को लेकर हजारों की तादाद में लोग सड़कों पर उतरे थे और भारतीय नेताओं और सेना की जय-जयकार कर रहे थे. ऐसा उन्होंने कोई भारत के दबाव में नहीं किया था. इसके बाद से बलूचिस्तान के प्रति पाकिस्तान की फौज नृशंस होती गई है.

दरअसल पाकिस्तानी प्रधानमंत्नी इमरान खान नियाजी अपने राष्ट्र की समस्याओं से निपटने में नाकाम रहे हैं. वे अपनी विफलताओं पर परदा डालने के लिए भारत पर ऐसे आरोप लगा रहे हैं. इसके अलावा मुल्क में अपने खिलाफ संयुक्त विपक्ष के आंदोलन को मिल रही कामयाबी से वे बौखलाए हुए हैं.

असुरक्षा बोध से ग्रस्त इमरान खान अपने तख्ता पलट की आशंका से इतने डरे हुए हैं कि वे आईएसआई और फौजी नेतृत्व के हाथ की कठपुतली बन गए हैं. अपने गठन के बाद से ही पाकिस्तानी नेतृत्व अपने बचाव में भारत के प्रति जहर उगल कर अपनी हिफाजत करता रहा है. ऐसी स्थिति में उसे और मुश्किल हालात का सामना करने से कौन बचा सकता है. पाकिस्तान को समझना होगा कि आंतरिक समस्याओं का समाधान हिंदुस्तान के खिलाफनिंदा अभियान में नहीं है.

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