खबर यह आई है कि एक नए तरह के मधुमेह का वैज्ञानिकों ने पता लगाया है. इसे टाइप 5 मधुमेह कहा जा रहा है. इस तरह के मधुमेह से वो लोग प्रभावित हैं जिन्हें बचपन में पर्याप्त पोषण नहीं मिला. अब जरा इस बात पर गौर करिए कि ग्रामीण भारत का कितना बड़ा हिस्सा आज भी कुपोषण का शिकार है. यानी हम भविष्य के मधुमेह रोगियों की संख्या में और इजाफा करने को तैयार हैं या यूं कहें कि इजाफा कर रहे हैं. यह पहले से जगजाहिर है कि पूरी दुनिया में भारत मधुमेह से सबसे ज्यादा पीड़ित है.
मधुमेह के मरीजों की संख्या के हिसाब से देखें तो हर चौथा मधुमेह पीड़ित भारतीय है. यानी भारत की हिस्सेदारी वैश्विक आंकड़े में करीब 25 प्रतिशत है. यह कोई ऐसा आंकड़ा नहीं है कि हम इस पर गर्व करें बल्कि यह रूह कंपाने वाला आंकड़ा है.
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के करीब 11 प्रतिशत लोग मधुमेह से पीड़ित हैं और इससे ज्यादा संख्या उन लोगों की है जिन्हें प्री-डायबिटिक कहा जाता है यानी जिन्हें मधुमेह निकट भविष्य में हो सकता है. यदि आप आंकड़े देखें तो शहरी क्षेत्र ज्यादा प्रभावित है. शहरी क्षेत्रों में मधुमेह 16 प्रतिशत से ज्यादा है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 9 प्रतिशत से नीचे है. सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य हैं, गोवा (26.4 प्रतिशत), पुडुचेरी (26.3 प्रतिशत) और केरल (25.5 प्रतिशत). उत्तर प्रदेश का आंकड़ा है 4.8 प्रतिशत.
ऐसे लोगों की भी बहुतायत है जिन्हें यह पता भी नहीं कि मधुमेह होता क्या है, यानी वे अपनी स्थिति से अनभिज्ञ हैं या फिर उन तक हमारी चिकित्सा प्रणाली या जागरूकता पहुंची ही नहीं है. विशेषज्ञ कहते हैं कि मधुमेह का सबसे बड़ा कारण बढ़ता हुआ मोटापा है और अनुमान है कि भारत की करीब 27 प्रतिशत आबादी मोटापे की शिकार है. आंकड़े बताते हैं कि भारत में मधुमेह का प्रकोप बढ़ता जा रहा है और अब स्थिति महाप्रकोप की तरफ बढ़ने लगी है. सोचने वाली बात है कि हम चिंता प्रकट करने के अलावा क्या ऐसा कोई कदम उठा रहे हैं जिससे मधुमेह के प्रकोप को कम किया जा सके?
हो सकता है, कागजों पर कई योजनाएं चल रही हों लेकिन धरातल पर कुछ भी होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. न घर-परिवार, न समाज और न ही शासन की तरफ से कुछ ठोस किया जा रहा है. बच्चों को मोटापे का शिकार होने से बचाने की पहली जरूरत है कि उन्हें घर के भोजन की तरफ आकर्षित किया जाए और स्वस्थ शरीर की महत्ता को वो समझें.
मगर हो ये रहा है कि मध्यमवर्गीय परिवार भी सप्ताहांत पर होटलों में भोजन करना पसंद करता है, अब तो विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से घर पहुंच सेवा भी है तो बच्चों की फरमाइश तत्काल पूरी हो जाती है. माता-पिता यह ध्यान नहीं रखते कि बच्चा कौन सा खाना खाए कि उसके शरीर पर चर्बी न चढ़े! जब मधुमेह घेर लेता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. फिर दवाइयों और इंसुलिन का दौर शुरू होता है. लेकिन क्या आपने गौर किया है कि इंसुलिन उपचार का खर्च क्या है?
यदि आप डॉक्टर की, बड़ी कंपनियों की, लिखी दवाइयां खरीदते हैं तो वह महंगा मिलेगा. हां यदि आप जेनेरिक दवाइयां खरीदते हैं तो कीमत काफी कम हो जाती है लेकिन हर जगह जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध कहां हैं और डॉक्टर भी तो जेनेरिक दवाइयों के उपयोग को प्रोत्साहित नहीं कर रहे हैं! वैसे सबसे बड़ी समस्या इंसुलिन की है. कुछ प्रकार के इंसुलिन की कीमतें हाल के वर्षों में कम हुई हैं लेकिन कुछ इंसुलिन आज भी बहुत महंगे हैं जिस कारण लोगों का उपचार प्रभावित हो रहा है.
सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए क्योंकि मधुमेह यदि नियंत्रण में नहीं रहता है तो हृदय से लेकर किडनी और लीवर तक की बीमारियां जन्म लेती हैं. सरकार को एक समग्र मधुमेह रोकथाम की योजना बनानी चाहिए क्योंकि हमारे युवाओं का स्वास्थ्य यदि अच्छा नहीं होगा तो हम स्वस्थ देश की कल्पना कैसे कर सकते हैं?