ब्लॉग: गैर-इरादतन हत्या का अजीब मामला
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 1, 2024 13:51 IST2024-08-01T13:49:42+5:302024-08-01T13:51:17+5:30
कोचिंग सेंटर के सामने के प्रवेश द्वार को तोड़कर कथित तौर पर बेसमेंट में पानी भरने का कारण बनीं। पुलिस ने कथूरिया पर अन्य आरोपों के अलावा, गैर इरादतन हत्या और जान-बूझकर चोट पहुंचाने का आरोप लगाया है।

ब्लॉग: गैर-इरादतन हत्या का अजीब मामला
संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा की तैयारी कर रहे तीन अभ्यर्थियों की असामयिक मृत्यु से देशवासी अभी उबरे नहीं कि पुलिस ने मनोज कथूरिया नामक एक एसयूवी(कार) चालक को उस जलमग्न सड़क पर वाहन चलाने के आरोप में गिरफ्तार करने की कार्रवाई की है। यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का स्पष्ट रूप से हनन है।
खबरों में बताया गया है कि कथूरिया की एसयूवी कोचिंग की भूमिगत लाइब्रेरी स्थित जल-जमाव वाली सड़क से गुजरते समय पानी में लहरें पैदा कर रही थी, जो कोचिंग सेंटर के सामने के प्रवेश द्वार को तोड़कर कथित तौर पर बेसमेंट में पानी भरने का कारण बनीं। पुलिस ने कथूरिया पर अन्य आरोपों के अलावा, गैर इरादतन हत्या और जान-बूझकर चोट पहुंचाने का आरोप लगाया है।
कथूरिया की गिरफ्तारी भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचना अंधेर नगरी चौपट राजा की याद दिलाती है, जो एक राजा और उसके अराजक साम्राज्य के बारे में है, जहां एक बकरी की मौत के बाद यह तय करने का तर्कहीन प्रयास किया जाता है कि फांसी का फंदा किसके गले में डाला जाए। यह घटना न केवल कथूरिया की गिरफ्तारी से जुड़े तथ्यों और परिस्थितियों को लेकर चिंता जगाती है, बल्कि जवाबदेही तय करने के नाम पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हनन की खतरनाक प्रवृत्ति को भी उजागर करती है।
कथूरिया पर गैर-इरादतन हत्या का आरोप लगाना बेतुका तो है ही, मामला इस तथ्य से और भी जटिल हो जाता है कि माननीय मजिस्ट्रेट ने इन क्रूर और दूरगामी दुष्परिणामों वाले आरोपों को सिरे से खारिज करने और कथूरिया को जमानत पर रिहा करने के बजाय,14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।
समाचारों से यह स्पष्ट है कि कथूरिया उस जलमग्न सड़क से होकर गाड़ी चला रहे थे, बाकी उनकी ओर से किसी भी तरह की गड़बड़ी का संकेत नहीं मिलता है। यह समझ से परे है कि किसी व्यक्ति पर केवल जलमग्न सड़क से होकर गाड़ी चलाने के लिए गैर इरादतन हत्या के गंभीर अपराध का आरोप कैसे लगाया जा सकता है। कथूरिया को मौतों के लिए जिम्मेदार ठहराने या न ठहराने के पीछे का तर्क, दिल्ली के पुलिस आयुक्त पर भी लागू होगा, क्योंकि वह जलमग्न सड़क को बंद करना सुनिश्चित करने में विफल रहे।
नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हनन के पुलिस के इतिहास को देखते हुए दिल्ली पुलिस की यह कार्रवाई भले ही आश्चर्यजनक न लगे, परंतु कथूरिया को जमानत देने से इनकार करना और 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजना वास्तव में चौंकाने वाला है।
अंधेर नगरी नाटक में चौपट राजा की निरंकुश और तर्कहीन शासन व्यवस्था का अंत तब होता है जब गुरु, राजा को ही फांसी पर लटकने के लिए फुसलाता है। समाज को ऐसे गुरु की बेसब्री से प्रतीक्षा है, जो सही राह दिखा सके।
अमित आनंद तिवारी
(लेखक सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं)