अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: दवाओं के कारोबार की नियमित जांच किए जाने की जरूरत

By अभिषेक कुमार सिंह | Published: October 15, 2022 11:34 AM2022-10-15T11:34:28+5:302022-10-15T11:36:15+5:30

मामला सिर्फ एक फार्मा कंपनी तक सीमित नहीं है। सच्चाई यह है कि देश में बहुत सी फार्मा कंपनियां दवाओं के मामले में छोटी-मोटी हेरफेर करने में लगी हुई हैं। खास तौर से दवाओं में डाले जाने वाले तत्वों की मात्रा या अनुपात के मामले में काफी परदेदारी बरती जाती रही है।

The need for regular checks of the business of drugs | अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: दवाओं के कारोबार की नियमित जांच किए जाने की जरूरत

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsमात्रा के हिसाब से दवाओं के वैश्विक कारोबार की एक तिहाई हिस्सेदारी भारत की है।दो साल पहले फरवरी 2020 में हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी में बना कफ सिरप पीने से जम्मू-कश्मीर में 11 बच्चों की मौत हो गई थी।सितंबर 2022 में चंडीगढ़ स्थित पोस्ट ग्रेजुएशन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च में एनेस्थेटिक इंजेक्शन से पांच मरीजों की मौत हो गई थी।

इसे भारत सरकार की प्रतिष्ठा कहें या विदेश नीति का प्रभाव, एक भारतीय कंपनी के कफ सिरप के इस्तेमाल से 66 बच्चों की मौत के बाद भी छोटे से अफ्रीकी देश गांबिया की पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में सीधे तौर पर किसी भारतीय कंपनी का नाम नहीं लिया है। हालांकि मामले के खुलासे के बाद जारी जांच-पड़ताल के बीच हरियाणा सरकार ने अपने राज्य में कुंडली स्थित ये कफ सिरप बनाने वाली दवा फैक्ट्री में उत्पादन बंद करवा दिया है। 

पर क्या इतने भर से दुनिया की फार्मेसी के रूप में प्रतिष्ठित रहे भारत की साख को बचाया जा सकेगा? यह एक मुश्किल सवाल है क्योंकि जिस साख को कायम करने में वर्षों, दशकों या सदियों का वक्त लगता है, उसे मिटाने के लिए कोई एक घटना ही काफी होती है। कहने को तो मामला प्रकाश में आने के बाद भारत सरकार के सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) ने गांबिया बैच के कफ सिरप के नमूनों की जांच के आदेश दे दिए हैं। इस जांच के नतीजे जल्द ही आ सकते हैं और तब कंपनी पर तद्नुसार कार्रवाई हो सकती है। 

लेकिन यहां हैरानी यह है कि संबंधित फार्मा कंपनी को पहले भी कुछ अन्य मामलों में दोषी पाया जा चुका है, फिर भी उसे अपनी दवा निर्यात करने की छूट मिल गई। मामला सिर्फ एक फार्मा कंपनी तक सीमित नहीं है। सच्चाई यह है कि देश में बहुत सी फार्मा कंपनियां दवाओं के मामले में छोटी-मोटी हेरफेर करने में लगी हुई हैं। खास तौर से दवाओं में डाले जाने वाले तत्वों की मात्रा या अनुपात के मामले में काफी परदेदारी बरती जाती रही है। 

मुनाफा बढ़ाने और उत्पादन लागत कम करने के लिए फार्मा कंपनियां इस किस्म के गड़बड़झाले करती रही हैं। दो साल पहले फरवरी 2020 में हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी में बना कफ सिरप पीने से जम्मू-कश्मीर में 11 बच्चों की मौत हो गई थी। इसी तरह सितंबर 2022 में चंडीगढ़ स्थित पोस्ट ग्रेजुएशन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च में एनेस्थेटिक इंजेक्शन से पांच मरीजों की मौत हो गई थी। 

यहां मुख्य प्रश्न यह है कि क्या देश के अंदर और विदेशों को निर्यात की जाने वाली दवाओं की गुणवत्ता की नियमित तौर पर जांच-निगरानी नहीं हो सकती है? देश में दवाएं बनाने वाली तकरीबन तीन हजार कंपनियां हैं, जिनकी देश के कोने-कोने में मैन्युफैक्चरिंग यूनिटें हैं। ये कंपनियां सिर्फ देश के अंदर ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी जेनेरिक दवाओं की जरूरत को पूरा करती हैं। मात्रा के हिसाब से दवाओं के वैश्विक कारोबार की एक तिहाई हिस्सेदारी भारत की है। इसलिए इस उद्योग की नियमित जांच और निगरानी की जरूरत है।

Web Title: The need for regular checks of the business of drugs

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