Population News: जनसंख्या संतुलन के बारे में दुनिया को होना होगा सचेत, प्रति महिला जन्म दर धीरे-धीरे घटती जा रही, आखिर क्या है कारण
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: March 27, 2024 02:49 PM2024-03-27T14:49:36+5:302024-03-27T14:50:36+5:30
Population News: रिपोर्ट के अनुसार साल 1950 यानी करीब 74 साल पहले भारत में प्रजनन दर 6.2 थी जो साल 2021 आते-आते घटकर दो से भी कम रह गई है.
Population News: दुनिया के कई हिस्सों में अभी तक इंसानों की बढ़ती आबादी समस्या का कारण बनी हुई थी, लेकिन अध्ययन दिखा रहे हैं कि आने वाले दिनों में जल्दी ही घटती आबादी समस्या का कारण बनने वाली है. अंतरराष्ट्रीय जर्नल द लैंसेट में 20 मार्च 2024 को प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार भारत में भी जनसंख्या को लेकर परिस्थितियां अब काफी बदल चुकी हैं और प्रजनन दर यानी प्रति महिला जन्म दर धीरे-धीरे घटती जा रही है. रिपोर्ट के अनुसार साल 1950 यानी करीब 74 साल पहले भारत में प्रजनन दर 6.2 थी जो साल 2021 आते-आते घटकर दो से भी कम रह गई है.
रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि वर्ष 2050 में प्रजनन दर घटकर 1.29 तो वर्ष 2100 में और भी घटकर 1.04 तक पहुंच सकती है. उल्लेखनीय है कि प्रजनन दर 2.1 को रिप्लेसमेंट लेवल कहा जाता है अर्थात इस दर पर जनसंख्या स्थिर रहती है और इससे कम होने पर घटने लगती है. अगर जनसंख्या बढ़ने से समस्याएं बढ़ती हैं तो इसके घटने के भी कम जोखिम नहीं हैं.
ऐसा होने पर भविष्य में वृद्धों की आबादी बढ़ने और युवाओं की संख्या कम होने से श्रम शक्ति की कमी का सामना करना पड़ सकता है, जैसा कि वर्तमान में दुनिया के कुछ देशों को करना पड़ रहा है. वर्ष 2022 के संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक पिछले दस वर्षों में एक करोड़ से ज्यादा आबादी वाले आठ देशों की आबादी कम हो गई, जिसमें अधिकांश देश यूरोप के हैं.
जापान में भी ज्यादा बुजुर्गों के होने की वजह से देश की कुल आबादी में गिरावट आ रही है. अनुमान है कि वर्ष 2030 तक रूस, जर्मनी, दक्षिण कोरिया, स्पेन की आबादी घटनी शुरू हो जाएगी और इस सदी के उत्तरार्ध में जिन देशों की आबादी घटने लगेगी, उनमें भारत का नाम भी शामिल है. चीन की आबादी तो वर्ष 2100 तक आज के स्तर से आधी यानी 1.4 अरब से घटकर 77.1 करोड़ हो सकती है.
प्रजनन दर में कमी आने के कई कारण हैं, जिनमें पहले की तुलना में देर से हो रही शादियां और उसके बाद बच्चों की प्लानिंग में होने वाली अतिरिक्त देरी भी शामिल है. शिक्षा के प्रति बढ़ती जागरूकता से कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है और वे अपने करियर पर असर पड़ने के डर से बच्चे जल्दी पैदा करना नहीं चाहतीं.
पहले जहां गर्भावस्था की औसत आयु 25-26 वर्ष मानी जाती थी, वहीं अब यह बढ़कर 32-34 वर्ष हो गई है. गंभीर बात यह है कि दुनिया के विकसित और कई विकासशील देशों में जहां जनसंख्या घट रही है, वहीं अविकसित देशों में यह अभी भी बढ़ती जा रही है. अफ्रीका में इस समय दुनिया की कुल आबादी का 18 प्रतिशत रहता है, जिसके वर्ष 2021 तक 38 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है.
इससे दुनिया में अमीरी और गरीबी की खाई के भी और बढ़ने की आशंका है क्योंकि कम संसाधनों वाले क्षेत्र में ज्यादा जनसंख्या का भार होगा. इसलिए समय रहते दुनिया को इस बारे में सचेत होना होगा, ताकि जनसंख्या का संतुलन कायम हो सके.