ब्लॉग: चीन से दुनिया के देशों का दूर होना भारत के लिए फायदेमंद, 'मेक इन इंडिया' पर और जोर देने की जरूरत

By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Published: August 25, 2022 01:31 PM2022-08-25T13:31:44+5:302022-08-25T13:34:21+5:30

भारत गुणवत्तापूर्ण और किफायती उत्पादों के निर्यात के लिहाज से एक बढ़िया प्लेटफॉर्म है. साथ ही भारत सस्ती लागत के विनिर्माण में चीन को पीछे छोड़ सकता है.

India need to take advantage of opportunities in global supply as world reduces interest in China | ब्लॉग: चीन से दुनिया के देशों का दूर होना भारत के लिए फायदेमंद, 'मेक इन इंडिया' पर और जोर देने की जरूरत

वैश्विक आपूर्ति में मौकों का भारत को उठाना होगा फायदा (फाइल फोटो)

इन दिनों चीन-ताइवान के बीच चरम पर पहुंची तनातनी और चीन के द्वारा अपनाई जा रही अमेरिका के विरोध की रणनीति के कारण चीन पर वैश्विक निर्भरता में कमी के बीच भारत के लिए वैश्विक आपूर्ति में नए मौकों का परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है. दुनिया के कई देश आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन से दूर करने का प्रयास कर रहे हैं और भारत से संबंध स्थापित कर रहे हैं. भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने चीन पर निर्भरता को कम करने के लिए त्रिपक्षीय सप्लाई चेन रेजिलिएशन इनिशिएटिव (एससीआर) के विचार-विमर्श को आगे बढ़ाया है. 

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 के बीच चीन के प्रति बढ़ी हुई वैश्विक नकारात्मकता अभी कम नहीं हुई है और इसी वर्ष 2022 में शुरुआती 4-5 महीनों में चीन में कोरोना संक्रमण के कारण उद्योग-व्यापार के ठहर जाने से चीन से होने वाली वैश्विक आपूर्ति में कमी आई है.

स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि कोरोनाकाल के पिछले दो वर्षों में चीन से बाहर निकलते विनिर्माण, निवेश और निर्यात के कई मौके भारत की ओर आए हैं. अब ताइवान और अमेरिका के साथ चीन की शत्रुता के बीच भारत दुनिया के कई देशों और कई वैश्विक कंपनियों के लिए मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और विभिन्न उत्पादों की वैकल्पिक आपूर्ति करने वाले देश के रूप में आगे बढ़ने का अवसर मुट्ठी में ले सकता है. 

अब दुनियाभर में तेजी से बनती हुई यह धारणा भी भारत के लिए लाभप्रद है कि भारत गुणवत्तापूर्ण और किफायती उत्पादों के निर्यात के लिहाज से एक बढ़िय़ा प्लेटफॉर्म है. साथ ही भारत सस्ती लागत के विनिर्माण में चीन को पीछे छोड़ सकता है.

उल्लेखनीय है कि इस समय दुनियाभर में मेक इन इंडिया की मांग बढ़ रही है. आत्मनिर्भर भारत अभियान में मैन्युफैक्चरिंग के तहत 24 सेक्टर को प्राथमिकता के साथ तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है. चूंकि अभी भी देश में दवाई उद्योग, मोबाइल उद्योग, चिकित्सा उपकरण उद्योग, वाहन उद्योग तथा इलेक्ट्रिक जैसे कई उद्योग बहुत कुछ चीन से आयातित माल पर आधारित हैं, ऐसे में चीन के कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले दो वर्ष में सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव (पीएलआई) स्कीम के तहत 13 उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपए आवंटन के साथ प्रोत्साहन सुनिश्चित किए हैं. 

अब देश के कुछ उत्पादक चीन के कच्चे माल का विकल्प बनाने में सफल भी हुए हैं. पीएलआई योजना के तहत देश में 520 अरब डॉलर यानी लगभग 40 लाख करोड़ रुपए मूल्य की वस्तुओं के उत्पादन का जो लक्ष्य है, वह धीरे-धीरे आकार लेता हुआ दिखाई दे रहा है. पीएलआई योजना के तहत कुछ निर्मित उत्पादों के निर्यात भी दिखाई देने लगे हैं.

इस समय रूस-यूक्रेन संकट और चीन-ताइवान तनातनी के कारण दुनिया रूस और चीन तथा अमेरिका व पश्चिमी देशों के दो ध्रुवों के बीच विभाजित दिखाई दे रही है. ऐसे में यह कोई छोटी बात नहीं है कि भारत दोनों ही ध्रुवों के विभिन्न देशों में विदेश व्यापार-कारोबार बढ़ाने की जोरदार संभावनाएं रखता है.  

दुनिया के जिन देशों के साथ चीन के व्यापार समझौते नहीं हैं. उनके साथ भारत के कारोबार की नई संभावनाएं बढ़ गई हैं. अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने क्वाड के रूप में जिस नई ताकत के उदय का शंखनाद किया है, वह क्वाड भारत के उद्योग-कारोबार के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है. 24 मई को अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के रणनीतिक मंच क्वाड के दूसरे शिखर सम्मेलन में चारों देशों ने जिस समन्वित शक्ति का शंखनाद किया है और बुनियादी ढांचे पर 50 अरब डॉलर से अधिक रकम लगाने का वादा किया है, उससे क्वाड देशों में भारत के उद्योग-कारोबार के लिए नए मौके निर्मित होंगे. 

यह भी महत्वपूर्ण है कि अमेरिका की अगुवाई में बनाए गए संगठन हिंद-प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) के सदस्य देशों की 11 जून को पेरिस में आयोजित हुई अनौपचारिक बैठक के बाद इसके सदस्य देशों के साथ भारत के विदेश व्यापार को नई गतिशीलता मिलने की संभावनाएं उभरकर दिखाई दी हैं. 

वस्तुतः आईपीईएफ पहला बहुपक्षीय करार है जिसमें भारत शामिल हुआ है. इसमें अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया ब्रुनेई, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं. इसी वर्ष 2022 में यूरोपीय देशों के साथ किए गए नए आर्थिक समझौतों के क्रियान्वयन से भी भारत का विदेश व्यापार बढ़ेगा.  

हम उम्मीद करें कि इस समय चीन-ताइवान के बीच तनातनी और रूस-यूक्रेन युद्ध की बढ़ती अवधि  तथा चीन पर वैश्विक निर्भरता में कमी आने के बीच आपूर्ति श्रृंखला के पुनर्गठन के मद्देनजर भारत के लिए मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर एवं विदेश व्यापार बढ़ाने के जो अभूतपूर्व मौके निर्मित होते हुए दिखाई दे रहे हैं, उन्हें मुट्ठियों में लेने के लिए सरकार और देश के उद्योग-व्यापार जगत के द्वारा रणनीतिक रूप से आगे बढ़ा जाएगा.

Web Title: India need to take advantage of opportunities in global supply as world reduces interest in China

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