ब्लॉगः आयात-निर्यात के लिए बने प्रभावी नीति, भारत में दवाओं के उत्पादन में रोजगार बनेंगे

By भरत झुनझुनवाला | Published: December 3, 2021 05:32 PM2021-12-03T17:32:05+5:302021-12-03T17:33:08+5:30

विश्व व्यापार से हमें दूसरे देशों में बना सस्ता माल उपलब्ध हो जाता है लेकिन इससे आर्थिक विकास हो, यह जरूरी नहीं है. ऐसा समझे कि चीन के शंघाई में किसी बड़ी फैक्ट्री में सस्ती फुटबाल का उत्पादन होता है.

economy covid  import-export Effective policy employment created production medicines in India | ब्लॉगः आयात-निर्यात के लिए बने प्रभावी नीति, भारत में दवाओं के उत्पादन में रोजगार बनेंगे

भारत में ही फुटबाल का उत्पादन करें तो भले ही इसका मूल्य चीन की तुलना में अधिक पड़ता हो, फिर भी लाभप्रद होता है.

Highlightsसस्ती फुटबाल का भारत में आयात किया जाता है और हमारे उपभोक्ता को फुटबाल कम मूल्य पर उपलब्ध हो जाती है.भारत में फुटबाल बनाने के उद्योग बंद हो जाते हैं क्योंकि उनके द्वारा बनाई गई फुटबाल महंगी पड़ती है. दुकान में रखी चीन की बनी सस्ती फुटबाल को खरीदने के लिए उनके पास रकम नहीं होती है.

वाणिज्य मंत्नी पीयूष गोयल ने कहा है कि भारत के निर्यात बुलंद हैं और इनके बल पर हम तीव्र आर्थिक विकास हासिल कर लेंगे. यही मंत्न विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और अन्य पश्चिमी संस्थाएं पिछले 50 वर्षो से हमें सिखा रही हैं. लेकिन इस नीति का परिणाम है कि देशों के बीच असमानता बढ़ती ही जा रही है और हम वैश्विक दौड़ में पिछड़ रहे हैं.

विश्व व्यापार से हमें दूसरे देशों में बना सस्ता माल उपलब्ध हो जाता है लेकिन इससे आर्थिक विकास हो, यह जरूरी नहीं है. ऐसा समझे कि चीन के शंघाई में किसी बड़ी फैक्ट्री में सस्ती फुटबाल का उत्पादन होता है. उस सस्ती फुटबाल का भारत में आयात किया जाता है और हमारे उपभोक्ता को फुटबाल कम मूल्य पर उपलब्ध हो जाती है.

लेकिन साथ-साथ भारत में फुटबाल बनाने के उद्योग बंद हो जाते हैं क्योंकि उनके द्वारा बनाई गई फुटबाल महंगी पड़ती है. हमारे उद्योग में रोजगार उत्पन्न होना बंद हो जाता है. हमारे श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं. उनके हाथ में क्रयशक्ति नहीं रह जाती है और दुकान में रखी चीन की बनी सस्ती फुटबाल को खरीदने के लिए उनके पास रकम नहीं होती है.

इसके विपरीत यदि भारत में ही फुटबाल का उत्पादन करें तो भले ही इसका मूल्य चीन की तुलना में अधिक पड़ता हो, फिर भी लाभप्रद होता है. तब भारत में फुटबाल बनाने में रोजगार उत्पन्न होंगे, उस रोजगार से श्रमिक को वेतन मिलेंगे. उसके हाथ में क्रयशक्ति आएगी और वह फुटबाल को खरीद सकेगा, यद्यपि वह महंगी होगी. विश्व व्यापार के माध्यम से हमें सस्ता माल मिलता है लेकिन क्रयशक्ति समाप्त होती है और हम भूखे मरते हैं; जबकि घरेलू उत्पादन से हमें महंगा माल मिलता है लेकिन हाथ में क्रयशक्ति होती है और हम कम मात्ना में खरीदे गए महंगे माल से जीवित रहते हैं.

वर्तमान समय में कोविड के संकट के बाद वैश्विक स्तर पर अंतमरुखी अर्थव्यवस्था को अपनाया जा रहा है. तमाम देशों ने पाया कि कोविड संकट के दौरान विदेश से माल आना बंद हो गया और उनके उद्योग-रोजगार संकट में आ गए. इसलिए वर्तमान समय में हम निर्यातों को बढ़ा पाएंगे, इसमें संशय है. अर्थशास्त्न में मुक्त व्यापार के सिद्धांत का आधार यह है कि हर देश उस माल का उत्पादन करेगा जिसमें वह सफल है. जैसे यदि चीन में फुटबाल सस्ती बनती हो और भारत में दवा सस्ती बनती हो तो चीन और भारत दोनों के लिए यह लाभप्रद है कि भारत चीन से फुटबाल का आयात करे और चीन भारत से दवाओं का.

तब चीन में फुटबाल के उत्पादन में रोजगार बनेंगे और भारत में दवाओं के उत्पादन में रोजगार बनेंगे. ऐसी परिस्थिति में व्यापार दोनों के लिए लाभप्रद होता है. लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर देश किसी न किसी माल को बनाने में सफल हो ही. ऐसा भी संभव है कि चीन में फुटबाल सस्ती बने और चीन में ही दवा भी सस्ती बने.

ऐसी स्थिति में यदि भारत मुक्त व्यापार को अपनाता है तो चीन से फुटबाल और दवा दोनों का आयात होगा और भारत में उत्पादन समाप्तप्राय हो जाएगा तथा हमारे नागरिक बेरोजगार और भूखे रह जाएंगे. इसलिए पहले हमको यह देखना चाहिए कि किन क्षेत्नों में हम उत्पादन करने में सफल हैं. उन क्षेत्नों को बढ़ाते हुए हमें निश्चित करना चाहिए कि हम निर्यात बढ़ा सकें.

जब निर्यात हो जाए, तब हम उतनी ही मात्ना में आयात करें तो कांटे में संतुलन बनता है. लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि अपने देश से निर्यात कम और आयात ज्यादा हो रहे हैं. फलस्वरूप अपने देश में उत्पादन कम हो रहा है, रोजगार कम बन रहे हैं और हमारी आर्थिक विकास दर लगातार गिर रही है. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम हर प्रकार के आयातों पर प्रतिबंध लगाएं.

कुछ माल ऐसे होते हैं जिनका हम उत्पादन नहीं कर पाते हैं. जैसे मान लीजिए कि इंटरनेट के राउटर बनाने की हमारे पास क्षमता नहीं है. ऐसी परिस्थिति में हमें राउटर का आयात करना ही होगा और उस आयात को करने के लिए जितनी विदेशी मुद्रा हमें चाहिए, उतना निर्यात भी करना ही होगा. लेकिन अनावश्यक वस्तुओं जैसे चॉकलेट और आलू चिप्स जैसे विलासिता के माल के लिए यदि हम निर्यात करते हैं तो हम मुश्किल में आते हैं. जैसे मान लीजिए फुटबाल और दवा दोनों के उत्पादन में चीन हमसे अधिक सफल है. लेकिन हमें राउटर के आयात के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करनी ही है.

तब हमें अपने माल को औने-पौने दाम पर सस्ता बेचना पड़ता है. जैसे हम अपने बासमती चावल और लौह खनिज को सस्ते मूल्य पर बेचते हैं क्योंकि हमें सस्ती फुटबाल और दवा का आयात करना है. ऐसा करने से हमारा पानी, हमारा धान, हमारा चावल और हमारे खनिज का सस्ता निर्यात होता है और हम गरीब होते जाते हैं.

अपने देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ करने के लिए हमें अपने उत्पादन को सफल करना होगा और वैश्विक स्तर पर सस्ता माल बनाना होगा. फिलहाल ऐसी परिस्थिति नहीं दिख रही है कि भारत का माल सस्ता बन रहा हो इसलिए हमें आयातों से बचना चाहिए. क्योंकि बिना रोजगार सस्ती फुटबाल की तुलना में रोजगार के साथ महंगी फुटबाल को बनाना ज्यादा तर्कसंगत लगता है.

Web Title: economy covid  import-export Effective policy employment created production medicines in India

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