कोविड-19 महामारीः जिंदगी में आने वाले बदलाव, इंसान का फिर से उठ खड़े होने का जज्बा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 14, 2021 04:54 PM2021-12-14T16:54:48+5:302021-12-14T16:57:10+5:30
स्कूल-कॉलेज की जगह ऑनलाइन लेक्चर ले लेंगे. डॉक्टर भी टेलीमेडिसिन के जरिये ही रोग का निदान करके उपचार पद्धति की जानकारी दे देंगे.
कोविड-19 महामारी गुजर जाने के बाद की दुनिया कैसी होगी? क्या स्थितियां सामान्य होंगी या फिर यह महामारी घर के बाहर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे आने-जाने को प्रभावित करहमारी जिंदगी में आधारभूत परिवर्तन ला चुकी होगी?
बाद की स्थिति के पक्षधरों की राय है कि महामारी के बाद की दुनिया में लोग मुख्य तौर पर अपने घरों से ही ऑनलाइन सेवा देंगे. स्कूल-कॉलेज की जगह ऑनलाइन लेक्चर ले लेंगे. डॉक्टर भी टेलीमेडिसिन के जरिये ही रोग का निदान करके उपचार पद्धति की जानकारी दे देंगे. मेरी राय में यह सोच महामारी के बाद हमारी जिंदगी में आने वाले बदलाव को लेकर अतिरेक के स्तर पर है.
जब भी कोई आपदा मानव जाति पर आती है तो हमारी मूल प्रवृत्ति एकजुट होने की, ऐसे संकट के खिलाफ रक्षा कवच तैयार करने की होती है. उसके बाद फिर से हमारा जनजीवन सामान्य हो जाता है. 2005 में कैटेगरी तीन के चक्रवात कैटरीना ने 125 मील प्रति घंटे की रफ्तार की हवाओं के साथ लूसियाना (अमेरिका) प्रांत के न्यू ओर्लियंस शहर को बुरी तरह से तबाह कर दिया था.
तूफान ने शहर की सुरक्षा प्रणाली को 50 से ज्यादा जगह पर ध्वस्त कर दिया. जिससे 80 शहर बाढ़ में डूब गया. बिजली और मोबाइल सेवाएं पूरी तरह से ठप हो गई थीं, जिसके कारण आपातकालीन सेवाओं से संपर्क साधने का जरिया 911, भी बंद हो गया था. प्रलयंकारी तूफान जब समाप्त हुआ तो 1800 लोगों की जानें जा चुकी थीं और शहर को 100 अरब डॉलर का भारी-भरकम नुकसान हो चुका था.
लेकिन तूफान के गुजर जाने के बाद न्यू ओर्लियंस शहर के लोगों ने शहर छोड़ने की बजाय उसके पुनर्निर्माण का बीड़ा उठाया. संघीय सरकार से मिली 14 अरब डॉलर की मदद से शहर ने दोबारा बाढ़ रोधी तंत्र को मजबूत किया. इस बार प्रयास किया गया कि तंत्र भविष्य में ऐसे किसी भी तूफान को झेलने के लायक हो. 911 आपातकालीन सेवा को भी नये सिरे से तैयार किया गया और चिकित्सा, पुलिस और फायर ब्रिगेड को भी अत्याधुनिक बनाया गया. इसके अलावा एक ऐसी योजना तैयार की गई जिससे भविष्य में कैटरीना जैसा तूफान आने पर लोगों को तत्काल बाहर निकाला जा सके.
जिंदगी दोबारा सामान्य हो गई. उसके बाद भी शहर ने कई तूफान झेले, लेकिन 150 मील प्रति घंटे वाले कैटरीना तूफान जैसी तबाही दोबारा नहीं हुई. कुछ मर्तबा बिजली और संचार प्रणाली प्रभावित हुई, लेकिन कैटरीना तूफान की तरह पूरी तबाह नहीं हुई. उसके बाद तूफान से मरने वालों की संख्या पूरे प्रांत में 33 तक ही सीमित रही.
9/11 के हमले पर अमेरिका की प्रतिक्रिया एक और बेहतरीन उदाहरण है. ऐसे और हमलों के खौफ में डूबने की बजाय अमेरिका ने सुरक्षा प्रणाली को और मजबूत किया, जिसमें एयरपोर्ट्स पर चेकिंग और कड़ी कर दी गई. उसके बाद जनजीवन फिर सामान्य हो गया. हमले से न्यूयॉर्क के तबाह हो जाने की सोच बेकार साबित हुई.
भारत की ही बात करें तो ओडिशा का अनुभव भी न्यू ओर्लियंस जैसा ही था. 1999 के सुपरसाइक्लोन में ओडिशा में 10,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. ओडिशा ने एक प्रभावी आपातकालीन प्रणाली विकसित की और जिंदगी दोबारा पटरी पर लौट आई. उसके बाद जब 2013 में 140 मील प्रति घंटे की रफ्तार का फेलिन तूफान आया तो मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के ‘शून्य मृत्यु’ के अभियान ने रंग दिखाया.
पूरे राज्य में इस तूफान से केवल 23 लोगों की मौत हुई. भुज के 2001 के भूकंप और मुंबई पर 26/1 के हमले के बाद जिंदगी पटरी पर लौटने के दौरान इंसान की दोबारा उठ खड़े होने का जज्बा फिर एक बार देखने को मिला. आकार और पहुंच की बात की जाए तो कोविड-19 पिछले 100 साल की सबसे गंभीर आपदा है.
अभूतपूर्व मौतों और आर्थिक नुकसान के बावजूद अब संकेत मिल रहे हैं कि हमारी मानव सभ्यता दोबारा उठ खड़े होने के प्रयासों में जुट चुकी है. महामारी गुजर जाने के बाद जीवन के फिर पटरी पर लौटने के साफ आसार हैं. भविष्य की चुनौती के लिए हम मास्क, वेंटिलेटर्स और सबसे अहम वैक्सीन्स के साथ पूरी तरह से तैयार होंगे.
जीवनशैली में इकलौता बदलाव होगा उत्पादक क्षमता में इजाफा, जो महामारी नहीं होने की दशा में भी होने ही वाला था. फर्क है तो इतना कि कोविड-19 आने से यह परिवर्तन ज्यादा तेजी से हुए. कोलंबिया यूनिवर्सिटी में छात्रों की क्लासेस में वापसी का हमारा अनुभव भी इसी तरह की उम्मीद को जगाने वाला है.
विद्यार्थियों और शिक्षकों को हालांकि मास्क पहनना पड़ता है और हम सभी को वैक्सीन के पूरे डोज लग चुके हैं. मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि 5 जी नेटवर्क के जरिये थ्री-डी इमेज में ऑनलाइन पढ़ाई की प्रौद्योगिकी आ भी गई तो भी वह विश्वविद्यालय की परंपरागत शिक्षा पद्धति की जगह नहीं ले पाएगी. भविष्य की कोई भी प्रौद्योगिकी वह ऊर्जा वह संवाद विकसित नहीं कर सकती जो कक्षा में विद्यार्थियों और शिक्षक के एक ही कमरे में एक साथ रहने के दौरान होता है.